जल

हम जानते हैं कि हमारा पारितंत्र दो घटकों-जैविक और अजैविक, में विभाजित है। पेड़-पौधे और जीव-जन्तु जैविक घटक के भाग हैं। अजैविक घटक में जल, वायु, ऊष्मा, प्रकाश मृदा आदि शामिल हैं। ये अजैविक घटक जैविक घटकों को जिन्दा रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। किसी एक घटक की कमी से प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है। प्रकृति का संतुलन बनाये रखने के लिए ये दोनों घटक जैविक और अजैविक, आवश्यक हैं।


जल (Water)

पृथ्वी का लगभग तीन-चौथाई भाग (71%) जल से ढंका हुआ है। इस भाग को जलमंडल कहते हैं। पृथ्वी पर जल, जल चक्र के द्वारा प्राप्त होता है। जब समुद्रों, महासागरों, नदियों, तालाबों, झरनों का जल सूर्य की गर्मी (ताप) से गर्म हो कर आसमान में जाता है तब बादलों का निर्माण होता है। बादलों से फिर बारिश (वृष्टि) होती है। यह बारिश (वृष्टि) बर्फ के रूप में, ओलों के रूप में या फिर पानी (बारिश) के रूप में होती है। इस प्रकार जल पुनः समुद्रों, महासागरों, नदियों, तालाबों और झरनों में पहुँच जाता है। दुबारा से पानी का भाप बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और फिर बादलों के बनने के बाद वर्षा होती है। यही प्रक्रिया जिसमें जल, जल मण्डल से वायु मण्डल में जाता है और वायु मण्डल से जल मंडल में आता है, जल-चक्र कहलाता है।

जल का महत्व

  • जल सभी जीव-जन्तुओं की आधारभूत जरूरत है।
  • मनुष्य के शरीर का लगभग 70% भाग जल से बना है।
  • मनुष्य को अपने विभिन्न कार्यों, जैसे-खाना पकाने, कपड़े धोना, साफ-सफाई करना, आदि के लिए जल की जरूरत होती है।
  • मनुष्य को पाचन प्रक्रिया में, उत्सर्जन प्रक्रिया में और अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने के लिए जल की आवश्यकता होती है।
  • जानवरों को भी अपने विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए जल की जरूरत होती है।
  • पौधों को भी खाना बनाने, खनिजों के संवहन, बीजों के अंकुरण आदि के लिए जल की जरूरत होती है।
  • कुछ जीव-जन्तु, पेड़-पौधे तो जल में ही रहते हैं।
  • कृषि (खेती करने) के लिए जल की जरूरत होती है।
  • जल से बिजली बनाई जाती है।
  • कई उद्योग, जैसे कागज मिल, स्टील संयन्त्र, उर्वरक आदि को भी जल की जरूरत होती है।

जल के स्रोत

  • जल तीनों रूपों ठोस, तरल और गैस (भाप/ वाष्प) के रूप में पाया जाता है।
  • ठोस रूप में जल बर्फ के रूप में पाया जाता है।
  • तरल रूप में जल समुद्र. महासागरों, नदियों, तालाबों, झरनों, जमीन के अन्दर आदि में पाया जाता है।
  • भाप के रूप में जल आसमान में पाया जाता है। इसे आर्द्रता (नमी) कहते हैं। इसको हाइग्रोमीटर से नापा जाता है।

जल का वितरण

पृथ्वी का लगभग तीन-चौथाई भाग जल से ढंका हुआ है परन्तु फिर भी इस की कमी है क्योंकि जल का वितरण असमान है और इसका ज्यादातर भाग हमारे लिए उपयोगी नहीं है। जल का वितरण निम्नलिखित है:

  • महासागरों/समुद्रों में (लवणीय, अनुपयोगी)                   97.0%
  • बर्फ के रूप में (अलवणीय, अनुपयोगी)                         2.0%
  • भूमिगत, नदियाँ, झीलें आदि (अलवणीय, उपयोगी)        1%

नोट:

  • जो उपयोगी जल (1%) हमारे उपयोग के लिए उपलब्ध है उसका हम सिर्फ 0.006% ही उपयोग करते हैं।
  • पीने के लिय सुरक्षित पानी को पीने योग्य पानी कहते हैं।

जल प्रदूषणः कारक एवं हानि

जल में ऐसे पदार्थों का मिलना जिन से जीव-जन्तुओं और पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचे, जल प्रदूषण कहलाता है। जल प्रदूषण के कई कारण हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  • परों से निकलने वाला कचरा, मल-मूत्र इत्यादि।
  • उद्योगों, फैक्ट्रियों, कारखानों से निकलने वाला कचरा, रसायन, गर्म जल आदि।
  • कपड़े धोने के लिए डिटर्जेन्टस् (साबुन जो झाग बनाते है) का प्रयोग।
  • खेतों में रासायनिक खादों (उर्वरकों) का प्रयोग।
  • खरपतवारनाशकों और कीटनाशकों का प्रयोग।
  • जल स्रोतों में मरे हुए जीव-जन्तुओं का फेंकना। नदियों का प्रदूषक स्तर BOD (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) में मापा जाता है। BOD 5 का अर्थ है-बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड इन फाइव डेज

जल प्रदूषण को रोकना अत्यन्त जरूरी है। अगर हम उपरोक्त जल-प्रदूषण के कारकों को दूर कर दें तो जल-प्रदूषण नहीं होगा। अगर ऐसा नहीं होता है तब हमें जल-प्रदूषण से कई हानियाँ हो सकती हैं।

जल-प्रदूषण से हानियाँ

  • जल-प्रदूषण/दृषित जल से पेचिश, डायरिया, टायफॉइड (मियादी बुखार) पीलिया और हैजा, जैसे-रोग हो सकते हैं।
  • कुछ विशेष धातुओं के जल में घुल जाने से भी बीमारियाँ होती हैं जैसे-
    • मिनमाता रोग जल में पारे (मरकरी) के घुल जाने से होता है।
    • इटाई-इटाई रोग जल में कैडमियम धातु के घुल जाने से होता है।
  • दूषित जल से शारीरिक विकलांगता आ जाती है।
  • दूषित जल से मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है।
  • दूषित जल से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए हमें पानी उबाल कर पीना चाहिए। पानी में फिटकरी डालने से पानी में मौजूद अशुद्धियाँ नीचे बैठ जाती है। घरों में आने वाले पानी में क्लोरीन मिली होती है।

हानियाँ सिर्फ दूषित जल से ही नहीं होती, यदि जल की कमी हो जाए या फिर जल अधिक बरस जाए, तब भी हानियाँ होती है।
नोट: गंगा एक्शन प्लान का उद्देश्य गंगा नदी के जल की गुणवत्ता सुधारना है।

सूखा

जब बारिश बहुत कम होती है या फिर बिल्कुल नहीं होती, तब सूखा पड़ता है। इससे निम्नलिखित हानियाँ होती हैं:

  • जल के स्रोत सूख जाते हैं।
  • खेती नहीं होती है। पौधे सूख जाते हैं।
  • भूख-प्यास से जीव-जन्तु मर जाते हैं।

बाढ़

जब बारिश बहुत अधिक होती है तब बाद आ जाती है। इस से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं:

  • मिट्टी की ऊपर की उपजाऊ परत बह जाती है।
  • फसलें बह जाती हैं।
  • मलेरिया, डायरिया, हैजा जैसी बीमारियों के फैलने की सम्भावना बढ़ जाती है।
  • लोगों के घर बह जाते हैं।
  • जीव-जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है।

जल संरक्षण

जल एक अमूल्य वस्तु है। जल के बिना जीवन असंभव है। जल हमारे कई गतिविधियों के लिए आवश्यक है। हमने देखा कि जल का वितरण असमान है और सिर्फ 1% जल ही हमारे लिए उपयोगी है। इसलिए जल का संरक्षण आवश्यक है। वर्षा ही जल का मुख्य स्रोत है। इसलिए वर्षा के जल को हमें नालियों में व्यर्थ बहने नहीं देना चाहिए। इस जल को संग्रहीत करके रखना चाहिए।

प्राचीन काल में वर्षा रहित क्षेत्रों में लोग कुओं, सीढ़ीदार कुओं (बावड़ी), झीलों आदि में वर्षा के जल को सरक्षित करके रखते थे। इनका उपयोग पूरा समुदाय करता था।

वर्षा के जल को हम निम्नलिखित तरीकों से इकट्ठा करके रख सकते हैं:

छत के ऊपर वर्षा जल संग्रहण

  • इस विधि में हम छत के ऊपर इकठे हुए वर्षा के जल को पाईपों की मदद से जमीन में बने गड्ढे या टैंक में इकट्ठा करते हैं।
  • इकट्ठे किए गए पानी को हम बाद में उपयोग कर सकते हैं।
  • दूसरी विधि में हम सड़कों पर हुई बारिश के पानी को सड़कों के किनारे बनाये गए नालियों, गड्ढों के द्वारा जमीन में जाने देते हैं, जिससे जमीन के नीचे पानी का स्तर बढ़ जाए या फिर पातालतोड़ कुओं का निर्माण करते हैं।
  • जल को संरक्षित करने के लिए हम व्यक्तिगत तौर पर कम उपयोग, पुन: उपयोग और पुनः चक्रण तरीके अपना सकते हैं।

प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है।

  • जल प्रदूषण (निवारण व नियंत्रण) अधिनियम 1974 में पारित हुआ था।

जल संरक्षण से सम्बन्धित कुछ संस्थाएँ

तरुण भारत संघ

  • यह संस्था राजस्थान में कार्यरत है।
  • जल पुरुष राजेन्द्र सिंह (मैग्सेसे पुरस्कार विजेता) इस संस्था से संबंधित हैं।
  • इस संघ का कार्य जल संचयन संरचनाओं जैसे जोहड़, कुओं आदि का पुर्निमाण एवं निर्माण करना है।

भीम संघ

  • यह बच्चों की संस्था है जो कर्नाटक के होलगुंडी में कार्यरत है।
  • इस संघ ने अपने क्षेत्र के तालाब/सरोवर को पुनर्जीवित करके पानी की समस्या को किया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!