जीन की सूक्ष्म संरचना
Fine Structure of Gene
जोहानसन (Johansen, 1909) ने सर्वप्रथम जीन(Gene) शब्द का प्रयोग किया था. जीन्स (Genes) प्रोटीन(Protein) तथा न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic acid) DNA का बना होता है. DNA के एक खण्ड को जिसमें आनुवंशिक कूट (Genetic code) निहित होता है उसे जीन (Gene) कहते हैं.
सिलिजिनस्की (Selegenoske) तथा स्टेनले (Stanley) के अनुसार, “जीन्स (Genes) बेलनाकार (Cylindrical) छड़ (Rod) के समान सूक्ष्म इकाइयाँ (Minute Units) हैं, जो गुणसूत्रों (Chromosomes) के क्रोमोनिमेटा (Chromonemata) पर रेखित क्रम (Linear sequence) में स्थित होती हैं.”
वाटसन तथा क्रिक (Watson and Crick, 1953) एवं विल्किन्स (Wilkins, 1962) के अनुसार, “जीन (Gene) एक वृहत अणु (Macro molecule) या कार्बन (C),m नाइट्रोजन (N), हाइड्रोजन (H), ऑक्सीजन (O) तथा फॉस्फोरस (P) का बना एक बड़ा रासायनिक मूलक है, जो क्रोमोनिमेटा (Chromonemata) नामक प्रोटीन तन्तु (Protein fibres) से जुड़ा रहता है तथा बिना किसी संरचनात्मक (Structural) एवं आकारिकी (Morphologically) परिवर्तन के एक पीढ़ी (Generation) से दूसरी पीढ़ी में पहुँच जाता है.”
• जीन थ्योरी (Gene Theory)
थॉमस मार्गन (Thomas Morgan, 1914) ने ड्रोसोफिला मेलानोगेस्टर (Drosophila melanogaster) में अध्ययन करके ज्ञात किया कि इसके चार जोड़े क्रोमोसोम (Chromosome) में अनेक आनुवंशिकी लक्षण (Heredi- tary traits) पाए जाते हैं.
इस आधार पर मॉर्गन (Morgan) ने जीन थ्योरी (Gene theory) प्रस्तुत की, जिसके अनुसार-
1. प्रत्येक गुणसूत्र (Chromosome) में अनेक आनुवंशिकी इकाइयाँ (Hereditary units) होते हैं. जिन्हें जीन (Gene) कहते हैं.
2. जीन (Gene) क्रोमोसोम्स में सदैव रेखीय क्रम (Linear sequence) में स्थित रहते हैं.
• जीन धारणा (Gene concept)
जीन धारणा (Gene concept) को सटन (Sutton), ब्रिजेस (Bridges), मुलर (Muller) तथा मॉर्गन (Morgan) ने प्रतिपादित किया था जिनके अनुसार, जीन्स (Genes) में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(a) जीन्स (Genes) जीवों की फिजियोलॉजिकल लक्षणों (Physiological characters) का निर्धारण करते हैं.
(b) ये गुणसूत्रों (Chromosomes) में स्थित होते हैं.
(c) ये विशिष्ट लक्षणों (Specific characters) वाली क्रियात्मक इकाई (Functional units) कहलाते हैं.
(d) इनमें स्वयं के अनुलिपीकरण (Self transcription) करने की क्षमता होती है.
(e) इनमें उत्परिवर्तन (Mutation) होता है.
(f) ये जनकों (Parents) से संततियों (Offspring’s) में पीढ़ी (Generation) दर पीढ़ी पहुँचते हैं.
(g) विशिष्ट गुणसूत्र (Chromosome) पर जीन्स (Genes) विशिष्ट स्थान पर स्थित होते हैं जिसे लोकस (Locus) कहते हैं.
(h) प्रत्येक गुणसूत्र में जीन्स (Genes) एकरेखीय क्रम (Linear sequence) में विन्यस्त (Arranged) होते हैं.
(i) जीन्स द्वारा एन्जाइम्स (Enzymes) या प्रोटीन (Protein) का निर्माण होता है.
(j) प्रोटीन संश्लेषण (Protein synthesis) हेतु mRNA का निर्माण जीन्स (Genes) द्वारा होता है.
(k) गैमीट्स (Gametes) के वनते समय ये गुणसूत्रों (Chromosomes) से पृथक् होकर बनने वाली नई संतति (Offsprings) में प्रवेश करते हैं.
- जीन्स की रासायनिक प्रकृति
(Chemical Composition of Genes)
जीन (Genes) DNA का ही एक सूक्ष्म भाग होते हैं, अतः जीन की रासायनिक प्रकृति (Chemical composition) DNA के समान होती है, DNA पॉलीन्यूक्लिओटाइड शृंखला (Polynucleotide Chain) का बना होता है. प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड (Nucleotide) निम्नलिखित भागों या घटकों (Components) से मिलकर बना होता है-
(i) शर्करा (Sugar)-यह पेन्टोज (Pentose) डी ऑक्सीराइवोज (Deoxyribose) शर्करा होती है. यह फॉस्फेट अणु (Phosphate molecule) से जुड़कर सुगर फॉस्फेट श्रृंखला (Sugar phosphate chain) बनाती है.
(ii) नाइट्रोजन क्षारक (Nitrogen bases)-यह निम्नलिखित प्रकार से होते हैं-
(a) प्यूरीन्स (Purines)-ये डबल रिंग (Doublering) वाले नाइट्रोजन क्षारक हैं तथा दो प्रकार के होते हैं-
एडीनीन (Adenine)-A तथा
ग्वानीन (Guanine)-G
(b) पिरिमीडीन्स (Pyrimidines)-ये एक रिंग वाले नाइट्रोजन क्षारक हैं तथा DNA तथा जीन में निम्नलिखित दो प्रकार के पाए जाते हैं-
थाइमीन (Thymine) -T तथा
साइटोसीन (Cytosine)-C
प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड (Nucleotide) में फॉस्फेट अणु (Phosphate molecule) से एक ओर डी ऑक्सीराइबोज शर्करा का अणु तथा दूसरी ओर प्यूरीन एवं पिरीमिडीन्स निम्नलिखित प्रकार से जुड़े होते हैं-
A = T एवं
C ≡ G
प्रत्येक प्यूरीन एवं पिरीमिडीन के मध्य हाइड्रोजन बंध (Hydro Bonds) पाया जाता है-
Fig.: A small unit of DNA-gene (showing pairing
of Nitrogenous bases and sugar phosphate chain)
- जीन की आणविक संरचना
(Molecular Structure of Gene)
जीन की आणविक संरचना (Molecular structure) का अध्ययन बेन्जर (Benzer) ने किया था जिनके अनुसार, ‘सक्रियात्मक रूप में’ (Actively) जीन (Gene) गुणसूत्रीय (Chromosomal) DNA की एक छोटी इकाई (Small unit) होता है जिसमें विभिन्न प्रकार की क्रियात्मक इकाइयाँ (Functional units) पाई जाती हैं.
कॉमिंग (Coming) के अनुसार, जीन्स (Genes) का एक समूह (Group) एक क्रोमोमियर (Chromomere) कहलाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार की इकाइयाँ (Units) निम्नलिखित प्रकार से होती हैं-
(1) रिकॉन (Recon) यह DNA का सबसे छोटा (Segment) है, जो क्रॉसिंग ओवर (Crossing over) के समय दो न्यूक्लिओटाइड्स (Nucleotides) को दो गुणसूत्रों (Chromosomes) में DNA अणुओं के मध्य पारस्परिक विनिमय (Exchange) करता है.
इसे रिकॉम्बिनेशन (Recombination) की इकाई (Unit) भी कहते हैं. यह DNA के एक या दो जोड़े न्यूक्लिओटाइड्स (Nucleotides) का बना होता है.
(2) म्यूटॉन (Muton)-यह DNA की वह छोटी इकाई (Small unit) है जिसमें उत्परिवर्तन (Mutation) हो सकता। है एवं जिसके कारण आनुवंशिक लक्षणों (Hereditary I characters) में परिवर्तन होने से प्रकृति में जीवों में विभिन्नताएँ (Variations) उत्पन्न हो जाती हैं.
(3) सिस्ट्रॉन (Cistron)-सिस्ट्रॉन (Cistron) DNA का सबसे बड़ा भाग या खण्ड होता है, जोकि प्रोटीन संश्लेषण की क्रियात्मक इकाई (Functional unit of protein synthesis) प्रदर्शित करता है. इसे ट्रांसमिशन की इकाई (Transmission unit) भी कहते हैं
बेन्जर (Benzer) के अनुसार, एक सिस्ट्रॉन (Cistron) द्वारा एक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला (Polypeptide chain) की धारणा (Concept) का अभिज्ञान होता है.
सिस्ट्रॉन में 30,000 तक न्यूक्लिओटाइड्स के जोड़े (Pairs) हो सकते हैं.
(4) कॉम्पलॉन (Complon)-यह सिस्ट्रॉन (Cistron) की पूरक (Complementary) इकाई कहलाती है.
(5) ओपेरॉन (Operon)-ओपेरॉन (Operon) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जैकोब एवं मोनाड (Jacob and Monad) ने किया था जिनके अनुसार, यह ऑपरेटर जीन (Operator gene) होते हैं, जोकि संरचनात्मक (Structural) एवं परिचालक जीन (Conductor gene) द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं.
ओपेरॉन (Operon) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जैकोब एवं मोनाड (Jacob and Monad) ने किया था जिनके अनुसार, यह ऑपरेटर जीन (Operator gene) होते हैं, जोकि संरचनात्मक (Structural) एवं परिचालक जीन (Conductor gene) द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं.
ओपेरॉन (Operon) DNA से प्राप्त आनुवंशिक सूचनाओं (Genetic message) को परिवर्तित करके कम या अधिक करने में समर्थ होते हैं.
(6) रिप्लिकॉन (Replicon)-यह रिप्लीकेशन (Replication) की इकाई होती है जिससे DNA में द्विगुणन (Replication) होता है तथा नए संतति (Daughter) DNA अणुओं का निर्माण होता है.
- जीन्स का वर्गीकरण (Classification of genes):
मुलर (Muller, 1932) के अनुसार, जीन्स (Genes) को उनकी संख्या एवं फीनोटाइप (Phenotype) के आपस में सम्बन्ध के आधार पर अग्रलिखित पाँच श्रेणियों (Categories) में विभाजित किया जा सकता है-
(1) हाइपोमॉर्फ जीन्स (Hypomorphs genes)-इन जीन्स (Genes) का किसी विशिष्ट लक्षण पर सामान्य जीन्स के समान ही प्रभाव होता है, किन्तु इनकी कार्यक्षमता अन्य जीन्स की अपेक्षा कम होती है.
(2) एमॉर्फ जीन्स (Amorphs genes)-ये जीन सामान्य जीन्स से प्रभावित लक्षणों को ही प्रभावित करती हैं, किन्तु इनका प्रभाव लगभग नगण्य होता है,
(3) नियोमॉर्फ जीन्स (Neomorphs genes)-ये जीन्स एमॉर्फ जीन्स (Amorphs genes) के विपरीत कार्य करते हैं, इस जीन्स की उपस्थिति में सामान्य जीन्स का प्रभाव लगभग पूर्णतया रूपान्तरित हो जाता है.
(4) हाइपरमॉर्फ जीन्स (Hypermorphs genes)-ये हाइपोमॉर्फ (Hypomorphs) के विपरीत होती हैं तथा सामान्य जीन्स की भाँति ही कार्य करती हैं, किन्तु इनका प्रभाव अन्य जीन्स की अपेक्षा अधिक होता है.
(5) एन्टीमॉर्फ जीन्स (Antimorphs genes)-इस जीन्स का प्रभाव सामान्य जीन्स के प्रभाव के बिल्कुल विपरीत (Opposite) होता है.