पिछड़े बालक

पिछड़े बालक (Backward Child)

विशिष्ट बालकों में एक वर्ग पिछड़े बालकों का भी होता है। पिछड़े बालक को स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित परिभाषाएँ दी गई हैं-

सीरिल बर्ट ने अपनी पुस्तक ‘दी बैकवर्ड चाइल्ड’ में कहा है-
“पिछड़ा हुआ बालक वह है जो खुद के जीवन के मध्य में अपनी आयु स्तर का कक्षा से एक नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थ है-‘
बर्ट के अनुसार, ऐसे बालक जिनकी 85 से कम शैक्षणिक उपलब्धि E.Q. है, वे पिछड़े होते हैं। शैक्षणिक लब्धि को जानने का सूत्र निम्नलिखित है-

E.Q= E.A./C.A ×100

यहां-

E.Q. = Educational Quotient (शैक्षणिक लब्धि)
EA. = Educational Age (शैक्षणिक आयु)
C.A. = Chronological Age (वास्तविक आयु)

पिछड़े बालकों के प्रकार

1. शारीरिक दोष के कारण पिछड़े हुए बालक : इनकी ज्ञानेन्द्रियाँ ठीक से कार्य नहीं करती जैसे- आँख को कमजोरी, बहरापन, ऊंचा सुनना, हकलाना आदि शारीरिक दृष्टि से पिछड़ेपन के दोष हैं।

2. मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालक : इनकी I.Q. बुद्धि-लब्धि 60 से कम होती है। इसके अन्तर्गत मन्दमूढ़ व जड़बुद्धि बालक आते हैं।

3. संवेगात्मक दृष्टि से पिछड़े बालक : माता-पिता, शिक्षकों, व मित्रों से स्नेह व सहानुभूति न मिलकर तिरस्कार मिलता है। अत: बालक में चिन्ता, तनाव, निराशा व उदासीनता दिखाई देती है।

4. शिक्षा के अभाव में पिछड़े बालक : सामान्य बुद्धि के होते हुए भी कुछ कारणों से विद्यालय में शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते, इनका पढ़ाई का कार्य असुविधाजनक व अभाव के कारण पिछड़ जाता है।

5. वातावरण और परिस्थितियों के कारण पिछड़ापन : कुछ बालक आर्थिक स्थिति, सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण ठीक न होने के कारण सामान्य बुद्धि स्तर के बने होने के बावजूद भी पिछड़ जाते हैं।

 

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पिछड़े बालकों की विशेषताएँ

पिछड़े बालकों की प्रमुख विशेषताएँ हैं-
1.पिछड़े बालक मन्दगति से सीखते हैं। इनका अधिगम तीव्र व शीघ्र नहीं होता।
2. अपनी उम्र के वर्ग के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए होते हैं। एक ही कक्षा में कई साल भी लगा देते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में इस दोष को प्रवाह विहीन (Stagnation) कहा जाता है जिसके कई अन्य कारण और होते हैं।
3. पिछड़ेपन व बुद्धि-लब्धि में सम्बन्ध होना आवश्यक नहीं। पिछड़े बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए बुद्धि-लब्धि (1.Q) शब्द का प्रयोग नहीं होता, केवल शैक्षणिक लब्धि (E.Q.) का प्रयोग होता है।
4.इन बालकों का ध्यान व रुचि थोड़े समय के लिए बनी रहती है।

5. शैक्षणिक व सामाजिक क्रिया-कलापों में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थ नहीं पाते।
6.समस्या पर सूक्ष्म रूप में विचार नहीं कर सकते।
7. साधारण-सी बातों व नियमों को भी समझ नहीं पाते।
8.वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते।
9. अन्तर्मुखी होते हैं, मित्र कम होते हैं।
10. दूरदर्शिता की कमी होती है।
11. समाज के स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं अपनाते।
12. निराशावादी होते हैं।

पिछड़े बालकों की शिक्षा

पिछड़े बालकों के लिए शिक्षकों, अभिभावकों, समाजसेवकों तथा विद्यालय, चिकित्सकों को मिलकर एक साथ काम करना चाहिए ताकि पिछड़ेपन के कारणों की खोज कर उन बालकों के लिए उचित उपचारों का प्रयोग किया जा सके। इनकी उपचार व शिक्षा हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए-

1.उपचार : दोष व रोगों का उपचार कम सुनाई व दिखाई देता हो तो, कक्षा में आगे बैठायें।
2.आर्थिक सहायता : निर्धन परिवारों के छात्रों हेतु छात्रसुत्ति व निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करें।
3.हस्त उद्योग: शैक्षणिक तौर पर पीछे रहने के कारण उच्च शिक्षा पाने में असमर्थ रहते हैं, अतः हस्त उद्योगों का प्रशिक्षण दें ताकि व्यवसाय प्रारम्भ कर सके।
4.विशेष पाठ्यक्रम : पाठ्यक्रम में विषय सरल, सरस व रुचि के अनुसार हो, पाठ्यक्रम अधिक लचीला जीवनोपयोगी व व्यावसायिक उद्देश्यपूर्ण करें।
5.विशेष शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग : सरस, रुचिकर शिक्षण विधियों का प्रयोग।

  • दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग।
  • पढ़ाने की गति धीमी व कम पाठ्य-वस्तु एक बार में पढ़ाई जाये।
  • मौखिक शिक्षण विधि का प्रयोग कम।
  • अर्जित ज्ञान का अभ्यास बार-बार कराएँ।
  • सरस्वती यात्राओं पर बल।

6. निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था : स्कूलों में निर्देशन सेवाओं का गठन हो। शैक्षिक व व्यावसायिक निर्देशन की व्यवस्था । इसके द्वारा शैक्षिक व व्यावसायिक समस्याओं का समाधान कर सामान्य बालकों की पंक्ति में शामिल किया जा सकता है।

7. विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना : इस प्रकार के विद्यालयों में उन्हें अपनी त्रुटियों का ज्ञान नहीं हो पाता तथा उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।

8. विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना : विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना न हो पाये तो विशिष्ट कक्षाओं की व्यवस्था होनी चाहिए । जहां अध्यापक इन बालकों के शिक्षण पर विशेष ध्यान दें।

9.व्यक्तिगत ध्यान : अध्यापक व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखकर शिक्षण करें। इसके लिए छात्रों की संख्या कक्षा में कम होनी चाहिए।

10.स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना : अरुचि व असफलता के कारण पिछड़े बालक स्कूल से भागना प्रारम्भ कर देते हैं। उन्हें उचित राह पर लाकर इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण करें।

 

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