भाषा व लिपि

भाषा व लिपि

 

भाषा

प्राणी जगत में मानव को विशिष्ट प्राणी का दर्जा मिला है, इसका श्रेय मानव के एक विशिष्ट गुण को जाता है। वह है भाषा, मानव परस्पर विचारों का आदान-प्रदान कर सकता है और न केवल आदान-प्रदान अपितु विचारों का संधारण व नई पीढ़ी के लिए उनका संरक्षण करने की भी क्षमता रखता है। मानव द्वारा विचारों के आदान-प्रदान के लिए जिस साधन का प्रयोग किया जाता है उसे भाषा कहते हैं। अन्य शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि “भाषा वैचारिक विनिमय का साधन है।”

भाषा के रूप

विचारों के परस्पर संप्रेषण के लिए भाषा रूपी साधन का प्रयोग मानव कई प्रकार से कर सकता है, जैसे-मौखिक प्रयोग, लिखित प्रयोग व सांकेतिक प्रयोग। इसी आधार पर हम भाषा को तीन अलग-अलग रूपों में विभाजित कर सकते हैं।
भाषा के रूप
1. मौखिक भाषा
2. लिखित भाषा
3. सांकेतिक भाषा

1.मौखिक भाषा

भाषा के जिस रूप का प्रयोग हम स्वरतंत्री व वाणी की सहायता से करते हैं, वह भाषा का मौखिक रूप कहलाता है। सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि बोलकर प्रयोग की गई भाषा मौखिक भाषा कहलाती है। भाषा के मौखिक रूप का प्रयोग हम अपने जीवन
काल में सबसे पहले करना सीखते हैं इसलिए मौखिक भाषा, भाषा का ‘मूल’ रूप कहलाती है। मौखिक भाषा को संरक्षित नहीं कर सकते कारण विश यह मूल रूप तो है; परंतु अस्थायी है। यद्यपि वर्तमान में तकनीकी ने इस कथन को झुठला दिया है।

2.लिखित भाषा

भाषा का वह रूप जिसमें विचार-विनिमय के लिए हम लिखित चिह्नों या संकेतों का प्रयोग करते हैंवह भाषा का लिखित रूप कहलाता है। लिखित भाषा सदैव मौखिक भाषा के उपरांत ही सार्थक हो सकती है। लिखित रूप भाषा को स्थायित्व प्रदान करता है। अतः यह भाषा का स्थायी रूप कहलाता है।

3.सांकेतिक भाषा

कई बार अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए हम ध्वनि व चिह्नों का प्रयोग न करके शारीरिक संकेतों व हाव-भाव का प्रयोग करते हैं भाषा का यही रूप सांकेतिक भाषा कहलाता है। बहुत-से व्याकरण शास्त्री सांकेतिक भाषा को भाषा के रूपों में स्थान नहीं देते। इसके पीछे उनका तर्क है कि शारीरिक संकेत विकृत अर्थ संप्रेषित कर सकता है।

लिपि

किसी भी भाषा को लिखित/स्थायी रूप देने के लिए जिन चिह्नों अथवा लिखित संकेतों का प्रयोग किया जाता है वे लिपि कहलाते हैं। एक ही लिपि का प्रयोग एक से अधिक भाषाओं को लिखने के लिए किया जा सकता है, जैसे-हिंदी व संस्कृत दोनों को लिखने के लिए एक ही लिपि देवनागरी का प्रयोग होता है। देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। विभिन्न लिपियों को लिखने के तरीके भी भिन्न होते हैं, जैसे-हिंदी को बाएँ से दाएँ लिखा जाता है व उर्दू को दाएँ से बाएँ।

लिपि व भाषा का सम्बन्ध विचित्र है, किसी भी भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिए हम किसी भी लिपि का प्रयोग कर सकते हैं। उदाहरणतः हिंदी भाषा को व्यक्त करने के लिए यदि रोमन लिपि का प्रयोग किया जाये तो वह कुछ इस प्रकार होगा-MAIN
EK SACHCHA BHARTIYA HOON |

इस प्रकार यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कोई भी भाषा किसी लिपि विशेष की पराधीन नहीं है। किसी भी भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिए हम किसी भी लिपि का प्रयोग कर सकते हैं। परन्तु फिर भी प्रत्येक भाषा को (लिखित रूप में) व्यक्त करने के लिए एक मानक लिपि का प्रयोग किया जाता है, जिसे निम्नलिखित तालिका में सूचीबद्ध किया गया है-

भाषा        मानक     संकेत (उदाहरण)
हिंदी        देवनागरी      क
संस्कृत    देवनागरी       क
पंजाबी    गुरुमुखी         —
अंग्रेजी    रोमन             K

भाषा परिवार

मानव के परिवार की तरह ही भाषाओं के परिवार होते हैं। एक ही मूल भाषा से जन्मी भाषाएँ एक ही परिवार की भाषाएँ कहलाती हैं। एक ही मूल स्रोत के कारण इन भाषाओं में बहुत सारी समानताएं पायी जाती हैं। विश्व की लगभग 7000 भाषाओं को 12 मुख्य भाषा
परिवारों में विभक्त किया जाता है। ये परिवार हैं-1. भारोपीय, 2. द्रविड़, 3. चीनी, 4. सेमेटिक, 5. हेमेटिक, 6. आग्नेय, 7. यूराल-आल्टाइक, 8. बाँटू, 9. अमेरिकी, 10. काकेशस, 11. सूडानी, तथा 12. बुशमैन।

भारत में संसार के चार भाषा परिवारों की भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से भारोपीय भाषा परिवार व द्रविड़ भाषा परिवार मुख्य हैं। उत्तर-भारत की अधिकांश भाषाएँ, अंग्रेजी, जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी, फारसी, एवं ग्रीक आदि भाषाओं को भारोपीय भाषा परिवार की भाषाएँ माना जाता है। दक्षिण भारत में बोली जाने वाली भाषाएँ द्रविड़ कुल की भाषाएँ हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!