वायु

वायु

वायु क्या है?

वायु गैसों का मिश्रण है। वायु में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, ऑर्गन आदि गैसों के अलावा धूल के कण और जल वाष्प (भाप) भी पाये जाते हैं।

वायु का संघटन

वायु के संघटन को पाई डायग्राम (चार्ट) के द्वारा दर्शाया जाता है।

नाइट्रोजन (78%)

  • यह गैस वायु में सर्वाधिक मात्रा (78%) में पाई जाती है।
  • यह गैस पौधों के लिए आवश्क है।
  • यह गैस आग जलने में सहायता नहीं करती।

ऑक्सीजन (21%)

  • वायु का 21% भाग ऑक्सीजन से बना है।
  • यह गैस सभी जीव-जन्तु और पेड़-पौधों के लिए आवश्यक है।
  • यह गैस जलने में सहायता करती है।

अन्य गैसें (1%)

  • वायु में मौजूद अन्य गैसें-कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, हीलियम, ओजोन, ऑर्गन और हाइड्रोजन हैं।
  • अन्य गैसों के अलावा वायु में धूल के कण और जल वाष्प भी पाये जाते हैं।
  •  इन सभी गैसों में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड एक महत्वपूर्ण गैस है।
  • वायु में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की मात्रा 0.03% होती है।
  • कार्बन-डाइ-ऑक्साइड गैस को पेड़-पौधे भोजन बनाने के लिए प्रयोग करते हैं।
  • कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस पृथ्वी को गर्म रखने में मदद करती है।
  • कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की अधिकता से पृथ्वी का तापमान जरूरत से ज्यादा बढ़ जाता है, जिसे हरित गृह प्रभाव कहते हैं।
हरित गृह प्रभाव/पृथ्वी का ऊष्मायन
जब पृथ्वी का तापमान जरूरत से अधिक हो जाता है, तो उसे हरित गृह प्रभाव (ग्रीन हाउस इफेक्ट) कहते हैं। सबसे पहले इसको जीन बैष्टीस्टे फ्यूरियर ने पहचाना था। कारण: हरित गृह प्रभाव वायुमंडल में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड (CO2) (मुख्य गैस), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और जल वाष्य की मात्रा बढ़ने से होता है। जुगाली करने वाले जानवर भी मीथेन गैस का उत्पादन करते हैं।
प्रभाव

  • पहाड़ों पर से बर्फ पिघलने की सम्भावना बढ़ जाती है।
  • बर्फ पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ सकता है, जिसके कारण समुद्र के आस-पास के क्षेत्र जल में डूब सकते हैं।
  •  इसके कारण पृथ्वी पर इन्फ्रारेड रेडियशन में बढ़ोतरी हो जाती है।

वायु के गुण

  • वायु हर जगह पाई जाती है अर्थात् यह सर्वव्यापी है।
  • वायु गधहीन, रंगहीन और पारदर्शी होती है।
  • वायु में भार होता है और वह जगह घेरती है।

वायुमण्डल

  • पृथ्वी के चारों तरफ पाई जाने वाली वायु की परत वायुमण्डल कहलाती है।
  • वायुमण्डल कई परतों में विभाजित होता है।

वायुमण्डल की परतें

वायुमंडल की पाँच परतें होती हैं। ये परतें हैं-क्षोभमण्डल (ट्रोपोस्फेयर), समतापमण्डल (स्ट्रेटोस्फेयर), मध्यमण (मिजोस्फेयर), आयन मण्डल (आयनोस्फेयर) और बर्हिमण्डल (एक्जोस्फेयर)।

वायुमण्डल की परतें
वायुमण्डल की परतें

1. क्षोभमण्डल (ट्रोपोस्फेयर)

  • यह वायुमण्डल की सबसे निचली परत है।
  • यह ध्रुवों पर 8 किमी, विषुवत रेखा (भूमध्य रेखा) पर 18 किमी. तक की ऊँचाई तक पाई जाती है।
  • इसकी औसत ऊँचाई 13 किमी है।
  • सभी तरह के जलवायु परिवर्तन बादलों का बनना, आँधियों का चलना, बर्फ का गिरना इत्यादि इसी मण्डल में होते हैं।
  • इस मंडल में 165 मीटर ऊपर जाने पर 1ºC तापमान कम हो जाता है।

2. समतापमण्डल (स्ट्रेटोस्फेयर)

  • इस मंडल का तापमान स्थिर रहता है।
  • इस मंडल में किसी तरह का जलवायु परिवर्तन नहीं होता है इसलिए यह मण्डल वायुयान उड़ाने के लिए उपयुक्त है
  • इस मण्डल में ओजोन गैस की परत पाई जाती है जो सूर्य की हानिकारक पैराबैंगनी (अल्ट्रा वायलेट) किरणों को पृथ्वी पर पहुँचने से रोक लेती है। अगर पैराबैगनी किरणें पृथ्वी पर आ जायेंगी तब मनुष्यों को त्वचा कैंसर हो जायेगा। अल्ट्र वायलेट A किरणें अधिक हानिकारक होती हैं।

प्रत्येक वर्ष 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है।

3. मध्यमण्डल (मिजोस्फेयर)

  • इस मंडल का तापमान सबसे ज्यादा ठण्डा तापमान (-100°C) होता है।
  • इस मण्डल में उल्का पिण्ड जल कर राख हो जाते हैं।

4. बाह्य/आयन मण्डल (आयनोस्फेयर)

• यह मण्डल रेडियो तरंगों को परावर्तित कर देता है, जिससे हम रेडियो, टेलीविजन और फोन का उपयोग कर पाते हैं।
• इस मण्डल में उल्का पिंड जलने शुरू हो जाते हैं।

5. बर्हिमण्डल (एक्जोस्फेयर)

  • यह वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत है।
  • इस मण्डल में हाइड्रोजन और हीलियम गैस की अधिकता पाई जाती है।
  • इस मण्डल के बाद अंतरिक्ष शुरू हो जाता है।

वायु का उपयोग

  • वायु में मौजूद नाइट्रोजन पौधों के लिए उपयोगी होती है।
  • वायु में मौजूद कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का प्रयोग पौधे भोजन बनाने के लिए करते हैं।
  • वायु में मौजूद कार्बन-डाइ-ऑक्साइड पृथ्वी को गर्म रखती है।
  • वायु में मौजूद ऑक्सीजन पेड़-पौधे, जीव-जन्तुओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है। समुद्री गोताखोर और पर्वतारोही अपने साथ ऑक्सीजन सिलेंडर ले कर जाते हैं क्योंकि उन्हें इन स्थानों पर ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है
  • वायु में ही पक्षी और वायुयान उड़ते हैं।
  • वायु की वजह से हमारे कपड़े सूखते हैं। चलती हुई वायु पानी को भाप में बदल देती है, जिसकी वजह से हमारे कपड़े सूख जाते हैं।
  •  वायु की वजह से हम एक-दूसरे की आवाज सुन पाते हैं।
  • वायु से पवन चक्की चलती है, जिस से बिजली का उत्पादन होता है।
  • वायु पौधों के बीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है, जिससे पौधे दूर क्षेत्रों में भी उग जाते हैं।
  • आजकल तो गाड़ियों ओर ट्रेनों के ब्रेकों में भी वायु का उपयोग होता है।
  • वायु का प्रयोग तकियों में, गुब्बारों में और टायरों में भी होता है। जीव- -जन्तु वायु में मौजूद ऑक्सीजन को लेते हैं, जिससे वे जिन्दा रहते हैं। मनुष्य के नाक में मौजूद बाल और श्लेष (चिकना पदार्थ) धूल के कणों को अन्दर जाने से रोक देते हैं।
  • मछली घर (अक्वेरियम) में पंप लगाया जाता है  ताकि वायु (ऑक्सीजन) पानी में घुल जाए।

वायु प्रदूषण

जब वायु में अनचाहे कण आ जाते हैं तब वायु प्रदूषण होता है। ये अनचाहे कण हमें नुकसान पहुंचाते हैं।

वायु प्रदूषण के कारक

  • वायु प्रदूषण जंगल में आग लगने (दावानल), ज्वालामुखी फटने और धुल भरी आँधियों से होता है।
  • वायु प्रदूषण जंगलों को काटने से (वनोन्मूलन) शहर बनने से (शहरीकरण) और उद्योगों के लगने (औद्योगीकरण) से होता है।
  • वायु प्रदूषण कारखानों, वाहनों से निकलने वाले कार्यन-मोनो-ऑक्साइड (CO), सल्फर-डाई-ऑक्साइड (SO) आदि गैसों से होता है।
  • वायु प्रदूषण फ्रिज, एयर कण्डिशनर से निकलने वाली सी.एफ.सी. (CEC) गैस फेयान से होता है।
  • धूमपान से भी वायु प्रदूषण होता है।
  • लकड़ी उपले आदि जलाने से भी वायु प्रदूषण होता है।

NOTE : लकड़ी, उपले. कोयले से निकलने वाले धुएं को गैसीय अपशिष्ट कहते हैं।

वायु प्रदूषण के प्रभाव

प्रदूषित वायु से जीव-जन्तुओं के साथ-साथ इमारतें भी प्रभावित होती हैं। वायु प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • प्रदूषित वायु से मनुष्य में थकावट, मंदबुद्धिता, फेफड़ों का कैंसर और सांस की बीमारियों हो जाती है।
  • वायु में मौजूद विभिन्न कणों से होने वाली बीमारियाँ—

 

धूल कण  बीमारी
सिलिका-कण               
लोह-कण                     
कोयला-कण               
ऐस्बेटॉस-कण             
कपास-कण                 
गन्ना-धूल कण             
अनाज-धूल कण        
ऊन-कण 
सिलिकोसिस
सीडिरोसिस
ऐन्धाकोसिस
एम्बेस्टोसिस
बिसिनोसिस (श्वेत फेफड़ा कैसर)
बेगासोसिस
कृषक फुस्फुस
सोटर्स रोग

• वायु में मौजूद CO अब मनुष्य के रक्त के होमोग्लोबिन में मिल जाती है तब मनुष्य को ऑक्सीजन प्राप्त नहीं हो पाती है, जिससे उसकी मौत हो जाती है। इसलिए हमें बन कमरे में अंगीठी या हीटर जला कर नहीं सोना चाहिए।

सी.एफ.सी. गैसें ओजोन परत को पतला कर देती है, जिसे ओजोन छिद्र (ओजोन होल) कहते है। ओजोन छिद्र के पतला होने से पैराबैंगनी किरणे पृथ्वी पर आ जाती हैं जिससे मनुष्य में त्वचा कैंसर जैसी बीमारियां उत्पन होती है। ओजोन परत का सबसे अधिक
नुकसान दक्षिणी ध्रुव पर हुआ है।

ओजोन छिद्र को डाबसन इकाई (DU) में मापा जाता है। यदि ओजोन को परत 200 DU से नीचे होतो है तब इसे ओजोन छिद्र कहा जाता है।

अम्ल वर्षा (एसिड रेन)

  • वायु में मौजूद सल्फर डाइ-ऑक्साइड (SO2) पानी के साथ मिल कर सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) पानी के साथ मिल कर नाइट्रिक अम्ल (HNO3) का निर्माण करते हैं।
  • जब H2SO4 और HNO3 बारिश के साथ पृथ्वी पर आते हैं, तो इसे अम्ल वर्षा कहते हैं।
  • अम्ल वर्षा से पौधों को हानि पहुंचती है। यह वर्षा प्रकाश-संश्लेषण को धीमा कर देती है।
  • यह वर्षा मिट्टी को अम्लीयता बढ़ा देती है. जिससे जोवों को भी हानि होती है।
  • यह वर्षा भवनों/इमारतों का रंग उड़ा देती है या फिर उन्हें गला देती है। इसे स्टोन कैंसर/मार्बल कैंसर स्टोन लेप्रोसी कहते हैं। ताजमहल भी मार्बल कैंसर का शिकार हुआ था. और उसका रंग पीला हो गया था इसलिए उसके आस-पास के कारखाने बन्द कर दिये गए हैं।

लंदन धूम्र

  • सर्दियों के दिनों में सुबह-सुबह दिखने वाला कोहरा जो धुएँ और कुहासे से बना होता है, लन्दन धूम्र कहलाता है।
  • इसमें दृष्टता बहुत कम होती है और दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है।
  • इससे सांस की बीमारियाँ भी हो जाती है।

भोपाल गैस त्रासदी

  • यह घटना यूनियन कार्बाइड नामक कारखाने में 2 दिसम्बर, 1984 को घटित हुई।
  • इस काण्ड में मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे 8000 से ज्यादा लोग मर गए, और अनेक लोगों को श्वास और आँख सम्बन्धी गम्भीर बीमारियाँ हो गई।
  • बच्चों में अजीबो-गरीब विकृतियाँ पैदा हो गई।

वायु प्रदूषण रोकने के उपाय

वायु प्रदूषण को निम्नलिखित उपायों से दूर किया जा सकता है:

  • कोयला, पेट्रोल, लकड़ी, उपले आदि का ईंधन के रूप में कम प्रयोग करना/या प्रयोग न करना।
  • ज्यादा-से-ज्यादा सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना।
  • LPG और CNG का उपयोग करना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा (जिसका प्रयोग बार-बार किया जा सके) के स्रोतों, जैसे-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायो गैस आदि का प्रयोग करना।
  • साइकिल, रिक्शा, ई-रिक्शा आदि, जैसे-प्रदूषण रहित वाहनों का ज्यादा-से-ज्यादा प्रयोग करना।

भारत में प्रदूषण मापने से सम्बन्धित एजेन्सी है- केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड।

वायु दाब

  • पृथ्वी की सतह पर वायु के भार के कारण लगने वाला दाब वायु दाब कहलाता है।
  • जहाँ तापमान अधिक होता है वहाँ हवा गर्म हो कर ऊपर उठ जाती है, जिससे वहाँ पर निम्न दाब क्षेत्र बन जाता है। इस क्षेत्र में बादल बनते हैं और बारिश होती है।
  • जहाँ तापमान कम होता है वहाँ हवा ठंडी होती है, जिसके कारण वहाँ पर उच्च दाब क्षेत्र बन जाता है। इस क्षेत्र में मौसम साफ रहता है।
  • वायुमंडल में ऊपर जाने पर वायु दाब घटने लगता है।
  • समुद्री सतह पर सबसे ज्यादा वायु दाब रहता है।
  • वायु दाब की इकाई है बार || 1बार = 105N/m²
  • वायु दाब को बैरोमीटर से मापा जाता है।

पवन

  • जब वायु उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर चलती है, तो उसे पवन कहते हैं।
  • पवनों के प्रकारः पवनें तीन प्रकार की होती है:

1. स्थायी पवन

  • ये पवनें एक निश्चित दिशा में चलती है।
  • उदाहरण: पूर्वा हवा, पछुआ हवा

2. मौसमी पवनें

  • ये पवनें अलग-अलग ऋतुओं में अलग-अलग दिशाओं से चलती है।
  • उदाहरण: मानसून पवन

3. स्थानीय पवनें

  • ये पवनें एक विशेष क्षेत्र में एक विशेष समय पर चलती हैं।
  • उदाहरण: लू. चिनूक, सिरोक्को आदि।

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