विकलांग बालक की परिभाषा, शिक्षा, एवं निदान

विकलांग बालक (Physically Handicapped)

कुछ बालकों में जन्म से शरीर के किसी अंग में दोष होता है, बाद में किसी बीमारी, दुर्घटना, आघात या चोट लग जाने के कारण उनके शरीर में अंग दोष आ जाता है, उन्हें विकलांग बालक कहते हैं। क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, एक व्यक्ति जिसमें कोई इस प्रकार का शारीरिक दोष होता है, जो किसी भी रूप में उसे सामान्य क्रियाओं में भाग लेने से रोकता है या उसे सीमित रखता है, हम उसे विकलांग व्यक्ति कह सकते हैं।

1. अपंग
(अंधे, लूले, लंगड़े,गूगे बहरे)

2. अंधे या अर्ध अंधे
(दृष्टि)

3. बहरे व अर्ध बहरे
(श्रवण शक्ति कमजोर)

4. दोषयुक्त वाणी वाले
(हकलाना, तुतलाना)

5. अत्यधिक कोमल व दुर्बल
(रक्त की कमी, शक्तिहीन,पाचन-क्रिया में गड़बड़ी)

विकलांग बालकों की शिक्षा

विकलांग बालकों को शिक्षा या नियोजन इस प्रकार होना चाहिए-

1. अपंग बालकों को शिक्षा : अपंग बालकों में शारीरिक दोष होता है, किन्तु उनकी मानसिक योग्यता या तो साधारण होती है या तीव्र। वे मन्द-बुद्धि हों, यह आवश्यक नहीं । शारीरिक कमी के कारण-हीन भावना जागृत हो जाती है। इनकी शिक्षा हेतु निम्न वार्ता पर ध्यान दें-

  • विशिष्ट प्रकार के विद्यालयों का संगठन करें, कमरे उपयुक्त हो, उचित प्रकार की बैठने की व्यवस्था हो ताकि वे आराम से बैठ सको
  • डाक्टरों व विशेषज्ञों की राय लें उसको संभव चिकित्सा हेतु यंत्रों व साधनों का प्रयोग करें
  • सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें।
  • पाठ्यक्रम साधारण व कम हो, उपयुक्त व्यावसायिक शिक्षा दें।
  • मानसिक विकास के पूर्ण अवसर दें।
  • शिक्षण विधि सरल व रोचक, क्रियात्मक ढंग से, धीमी गति में शिक्षा दें।

2.अंधे व अर्ध-अंधे बालकों की शिक्षा : पूर्ण अंधे बालकों के लिए सामान्य प्रणाली काम नहीं आती, विशेष शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की गई है जहाँ ब्रेल (Brail) प्रणाली से शिक्षा दी जाती है।

  • समाज व जीवन में समायोजन हेतु संगीत या हस्तकला की शिक्षा दें।
  • अर्ध -अंधों के उपचार की व्यवस्था, कक्षा में उचित रोशनी, पुस्तक ठीक से पकड़ने की आदत डालें । कक्षा में आगे बैठायें।

3. बहरे या अर्ध -बहरे : कुछ बालक जन्म से बहरे व गूंगे होते हैं। इनके लिए अलग विद्यालय की स्थापना की जाये
जहां गूगे व बहरे शिक्षा प्राप्त कर सकें।

  • जो बालक कुछ बहरे हैं, उन्हें साधारण बालकों के साथ बैठाकर शिक्षा दी जा सकती है। उन्हें कक्षा में आगे
    बैठाएं, विशेष ध्यान दें व कर्ण यंत्रों का प्रयोग करायें।

4.दोषयुक्त वाणी वाले बालकों की शिक्षा : वाणी दोष के शारीरिक व मनोवैज्ञानिक दोनों कारण हैं। इन्हें दूर करने के निम्न उपाय अपनाएँ:

  • शल्य चिकित्सा द्वारा भी दोष निवारण संभव है।
  • घर का वातावरण दोषपूर्ण ना हो, उचित पौष्टिक भोजन की व्यवस्था ।
  • अभिभावकों व शिक्षकों को विशेष ध्यान देना चाहिए । अशुद्ध उच्चारण को प्यार से ठीक करायें, चिढ़ाना वा हंसना नहीं चाहिये।

5. कोमल व निर्बल बालकों की शिक्षा : ये रोग से ग्रस्त नहीं होते, बल्कि परिश्रम करने से ऐसा बन जाते हैं, अपने
स्वास्थ्य के प्रति सदा सचेत रहते हैं। निम्न बातों पर ध्यान दें-

  • परिवार में विशेष ध्यान, पौष्टिक भोजन का प्रबंध।
  • शारीरिक जांच समय-समय पर कराई जाये व उचित चिकित्सा व्यवस्था हो।
  • बालक की शक्तिनुसार पाठ्यक्रम व खेलकूद की व्यवस्था हो ।
  • शिक्षण में खेल विधि तथा दृश्य-श्रव्य विधियों का प्रयोग करें।
  • अभिभावक व शिक्षक स्नेह व सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें।

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