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शिक्षण विधियाँ
1.आगमन विधि
- इसमें विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर सामान्य सिद्धान्तों की ओर लाया जाता है।
- इसमें निम्न सूत्रों का प्रयोग किया जाता है-
- विशिष्ट से सामान्य की ओर
- स्थूल से सूक्ष्म की ओर
- ज्ञात से अज्ञात की ओर
इस विधि के चार चरण हैं-
- उदाहरण प्रस्तुत करना
- उदाहरणों का अवलोकन कर परिणाम निकालना
- सिद्धान्तों का निर्माण करना
- उदाहरणों द्वारा सिद्धान्तों की पुष्टि करना
इस विधि के लाभ
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इस विधि के दोष
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इस विधि के उपयोग-
- रेखागणित शिक्षण हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- आयत का परिमाप और क्षेत्रफल ज्ञात करने के लिए सूत्र की स्थापना करना।
- बीजगणित के सूत्र की स्थापना करना।
- साधारण ब्याज निकालने के सूत्र का निर्माण
- रूढ़ संख्याओं का ज्ञान देना।
- त्रिभुज के कोणों का योग ज्ञात करना।
2.निगमन विधि
- इसमें पहले सामान्य नियम बताये जाते हैं, फिर उदाहरण दिये जाते हैं।
- इसमें निम्न सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।
- सामान्य से विशिष्ट की ओर
- सूक्ष्म से स्थूल की ओर
- सिद्धान्त से उदाहरण की ओर
इस विधि के निम्न चरण हैं:
- सिद्धान्त का ज्ञान देना
- विभिन्न उदाहरणों में सिद्धान्तों का प्रयोग करना
- सिद्धान्तों की सत्यता का परीक्षण करना
- अन्य उदाहरणों के आधार पर सिद्धान्तों का पूर्ण सत्यापन करना
इस विधि के लाभ
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इस विधि के दोष
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इस विधि के उपयोग-
- यह विधि बीजगणित, रेखागणित एवं त्रिकोणमिति के शिक्षण में उपयोगी है।
- सूत्रों की मदद से परिमाप, क्षेत्रफल, व्यास, परिधि, व्याज आदि ज्ञात करना।
3.विश्लेषण विधि
- इस का प्रयोग प्राचीन काल से हो रहा है।
- यह तर्क प्रधान विधि है।
- इस विधि में किसी समस्या को छोटे-छोटे भागों में विभक्त किया जाता है।
- इस विधि का सूत्र है- अज्ञात से ज्ञात की ओर।
इस विधि के निम्न चरण/सोपान है-
- समस्या की प्रस्तुति
- समस्या की अनुभूति
- समस्या का विश्लेषण
इस विधि के लाभ
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इस विधि के दोष
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इस विधि का उपयोग-
- जब किसी साध्य (थ्योरम) को हल करना हो।
- जब रेखागणित में कोई रचना कार्य करना हो।
- जब अंकगणित में किसी नवीन समस्या को हल करना हो।
4.संश्लेषण विधि/मनोवैज्ञानिक विधि
- यह विधि विश्लेषण के बिल्कुल विपरीत है।
- इसमें छोटे-छोटे खण्डों को जोड़ा जाता है।
- इसमें ‘ज्ञात से अज्ञात’ की ओर अग्रसर होते हैं।
इसके निम्न चरण/सोपान हैं-
- समस्या के आधार का ज्ञान कराना
- समस्या का ज्ञान कराना
- समस्या का हल प्रस्तुत करना
इस विधि के लाभ
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इस विधि के दोष
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विश्लेषण-संश्लेषण, दोनों विधियाँ परस्पर विरोधी होते हुए भी अध्ययन और शिक्षण की दृष्टि में एक-दूसरे की पूरक हैं। विश्लेषण विधि में ज्ञात खोजों को संश्लेषण विधि द्वारा उपयोग करना चाहिए। विद्यार्थी जब संश्लेषण विधि से समस्याओं को हल करते हैं तब वे क्रिया के प्रत्येक पद के बारे में यह जानना चाहते हैं कि उसे क्यों किया जाए? उनकी इच्छा की पूर्ति विश्लेषण द्वारा ही हो सकती है। विश्लेषण करने से उनको अपने आप सोचने-विचारने और तर्क करने का मौका मिलता है, जिससे वे अपने आप प्रश्न हल करने में पूर्ण समर्थ हो जाते हैं।
अत: किसी समस्या की खोज में दोनों विधियों का प्रयोग करते हुए ही हम उसका हल ज्ञात करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए गणित विषय में अधिकतर विश्लेषण-सश्लेषण विधियों का प्रयोग किया जाता है।
5.समस्या समाधान विधि
- समस्या समाधान से तात्पर्य हमारे द्वारा किसी परिस्थिति में किए जाने वाले उन प्रयासों से है जब हमें यह नहीं मालूम कि हमें क्या करना चाहिए।
- इसमें अध्यापक शिक्षार्थियों के सामने समस्याओं को रखता है तथा शिक्षार्थी सीखे हुए ज्ञान, नियमों तथा प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या का समाधान ज्ञात करते हैं।
इस विधि के चरण-
- समस्या में दिये गये तथ्यों एवं उनके संबंधों को समझना
- समस्या का विश्लेषण करना
- सम्भावित हल खोजना
- हल ज्ञात करने के लिए गणना करना
- समस्या का हल ज्ञात कर उत्तर की जांच करना
- स्वीकृत समाधान का प्रयोग करना
इस विधि के लाभ
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इस विधि के दोष
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6.अनुसंधान विधि
- इस विधि के जन्मदाता एच. ई. आर्मस्ट्रांग थे।
- यह अत्यन्त प्रभावशाली विधि है।
- इसमें शिक्षक एक मार्गदर्शक की तरह होता है।
- छात्रों को स्वयं ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
- इस विधि का मुख्य उद्देश्य छात्रों को अनुसंधानकर्ता या खोजी बनाना है।
इस विधि के लाभ
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इस विधि के दोष
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सूक्ष्म शिक्षण
सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षण की कोई विधि नहीं है। यह भावी अध्यापकों के शिक्षण कार्य को प्रभावशाली बनाने की एक क्रिया है। इसके अन्तर्गत पाठ की लम्बाई कम कर दी जाती है, पाठ पढ़ाने का समय कम कर दिया जाता है एवं विद्यार्थियों की संख्या कम कर दी जाती है।
“सूक्ष्म शिक्षण’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले ड्वाइट एलिन ने 1963 में किया था।
गणित के शिक्षण हेतु गतिविधियाँ
- इस स्तर पर गणित का परिचय मूर्त वस्तुओं के माध्यम से कराया जाना चाहिए ताकि बच्चों को दैनिक जीवन में प्रयोग किए जाने वाले गणितीय चितन का तार्किक तरीके से संबंध स्थापित करने में मदद मिल सके।
- इस स्तर पर, गणित के शिक्षण में गणितीय खेल, पहेलियाँ और कहानियाँ, जिसमें संख्याएं शामिल हो. को सम्मिलित करना चाहिए।
- गणितीय खेल छात्रों को शिक्षा के न्यूनतम हस्तक्षेप से सीखने में मदद करते हैं।
- बच्चों को पहले ठोस वस्तुओं का अनुभव, फिर चित्र और अंत में प्रतीक चिह्नों से सीखने का अवसर देना चाहिए।
- बच्चों के अलग-अलग तरीके से सवाल को हल करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
- बच्चों में व्यवहारिक गणित की समझ विकसित करनी चाहिए।
- बच्चों को कोई भी गणित सीखाते समय मौखिक/ इबारती प्रश्नों से शुरुआत करनी चाहिए।
- इस स्तर पर निम्नलिखित छः मुद्दों पर बल देना चाहिए-
- सुनें- प्रश्न को ध्यान से सुनें।
- पढ़े- प्रश्न को समझ कर पढ़े।
- बोलें- प्रश्न में क्या पूछा गया है, उसके बारे में बतायें।
- करें- वस्तुओं का उपयोग कर प्रश्न हल करें।
- लिखें- प्रश्न में क्या पूछा है? यह समझ कर संख्याओं में लिखें।
- हल करें: लिखे हुए प्रश्न को स्थानीय मान का ध्यान रखते हुए हल करें।
- बच्चों को अमूर्तता, परिमाणन, सादृश्यता, स्थिति विश्लेषण, समस्या को सरल रूप में बदलना, अनुमान लगाना व उसकी पुष्टि करना आदि युक्तियों से समस्या समाधान के लिए प्रेरित करना चाहिए।
- अनुमान लगाने के कौशल हैं- सन्निकटता (Approixmation) और इष्टीकरण (Optimization)
- बच्चे अमूर्त का प्रयोग संबंधों के समझने, संरचनाओं को देख पाने, चीजों का विवेचन करने, कथनों की सतयता या असत्यता को जाँचने में करते हैं। शुरुआत में गुणा की अवधारणा को बार-बार योग के रूप में समझाना चाहिए।
- पूछताछ आधारित गतिविधियों को अपनाना चाहिए क्योंकि इससे बच्चों के विचार एवं आलोचनात्मक सोच का पता चलता है। आकार की अवधारणा को समझाने के लिए सर्वाधिक प्रभावशाली विधि है क्षेत्र भ्रमण।
- विद्यार्थियों में तकनीकी आधारित खेलों का प्रयोग करना जिसे उनमें अन्वेषण, प्रेक्षण एवं निष्कर्ष पर पहुँचने के कौशल का विकास हो।
- बच्चों में समस्या समाधान एवं अन्वेषण कौशल को प्रोत्साहित करने हेतु और अन्तर्विषयी अनुबन्धों को सिद्ध करने हेतु परियोजना कार्य देना।