Table of Contents
Animal Tissues
उत्पत्ति, रचना एवं कार्यों में समान कोशिकाओं का समूह ऊतक कहलाता है। “ऊतक’ (tissue) शब्द का प्रयोग बिचैट (Bichat; 1771-1802) ने किया। इनको औतिकी का जनक’ (father of histology) कहा जाता है। ऊतकों का अध्ययन मारसेलो मैल्पीधी (Marcello Malpighi; 1694) ने किया।
जन्तु विज्ञान की वह शाखा, जिसके अन्तर्गत ऊतकों का अध्ययन किया जाता है, ऊतक विज्ञान या औतिकी कहलाती है।
कोशिकाओं की रचना, आकार, कार्य एवं अन्तराकोशिकीय पदार्थ के आधार पर जन्तु ऊतक चार प्रकार के होते हैं। उपकलीय ऊतक (epithelial tissue), संयोजी ऊतक (connective tissue), पेशीय ऊतक (muscular tissue) तथा तन्त्रिका ऊतक (nervous tissue) होते हैं।
I. उपकलीय ऊतक (Epithelial Tissue)
यह सरल तथा स्तरित एवं विशिष्ट उपकला ऊतक में विभाजित होता है।
1. सरल उपकला (Simple Epithelium)
इसकी संरचना सरल होती है एवं इसका निर्माण कोशिकाओं की एकल परत से होता है। यह पुनः निम्न प्रकार का होता है
(i) सरल शल्की उपकला (Simple Squamous Epithelium) इसकी कोशिकाएँ चपटी, बहुमुखी, शल्की (scaly) अथवा चौड़ी प्लेट के आकार की होती हैं। इसको आच्छादन उपकला (paverment epithelium) भी कहते हैं। यह फेफड़ों की वायु कूपिकाओं (alveoli). हृदय (पेरीकार्डियम), रुधिर वाहिनी (एण्डोथीलियम), बोमेन सम्पुट (Bowman’s capsule) का बाहरी व भीतरी स्तर, हेनले लूप की अवरोही भुजा, उदर गुहा का आवरण, आँख का लैंस, आन्तरिक कर्ण की कलागहन (membranous labyrinth), आदि में पाई जाती हैं।
(ii) सरल घनाकार उपकला (Simple Cuboidal Epithelium) इसकी कोशिकाएँ घनाकार (cuboidal) होती है। यह ऊतक, उन अंगों में मिलती है, जहाँ अवशोषण (absorption), उत्सर्जन (excretion) तथा सावण (secretion) की क्रियाएँ होती हैं।
यह ऊतक वृक्क नलिकाओं, जनदों (gonads), ब्रोकियोल्स (bronchioles) तथा स्वेद अन्थियों (sweat glands) में पाया जाता है।
(iii) सरल स्तम्भाकार उपकला (Simple Columnar Epithelium) इसकी कोशिकाएँ स्तम्भ (pillars) के समान लम्बी व एक-दूसरे से सटी होती हैं। ये ऊतक वृक्क, आमाशय, आँत, पित्ताशय वाहिनियों (pancreatic ducts), श्वास नाल, ब्रोन्कस, ब्रोन्काई, अण्डवाहिनी, यूरेटर, टिम्पेनिक गुहा, आदि में पाई जाती हैं।
सामान्य स्तम्भी रोमाभि उपकला (simple columnar ciliated epithelium) की कोशिकाएँ रोमाभि होती हैं। यह छोटी श्वसनियों (small bronchi), अण्डवाहिनियों (oviducts), मूत्रवाहिनियों (ureters), मस्तिष्क एवं सुषुम्ना की तन्त्रिका गुहा, गर्भाशयी नाल, आदि का दीवार का भीतरी स्तर बनाता है।
2. स्तरित उपकला ऊतक (Stratified Epithelium Tissue)
भौतिक रासायनिक एवं तापीय दबाव युक्त स्थानों पर पाया जाने वाला यह ऊतक निम्नलिखित प्रकार का होता है
(i) स्तरित शल्की उपकला (Stratified Squamous Epithelium) शरीर की अधिकाँश संयुक्त उपकला इसी प्रकार की होती हैं। इसमें सबसे बाहर के स्तर की कोशिकाएँ चपटी एवं शल्की होती हैं तथा सबसे भीतर के स्तर की कोशिकाएँ स्तम्भी (columnar) एवं घनाकार होती हैं। इन स्तरों के मध्य कोशिकाएँ बहुतलीय (polyhedral) होती है। त्वचा की उपचर्म, असिका, मलाशय, योनि, आदि की दीवार स्तरित शल्की उपकला की बनी होती हैं। यह दो प्रकार की होती है
(a) किरैटिन युक्त शल्की उपकला (Keratinised squamous epithelium) इसकी कोशिकाओं में किरैटिन नामक अघुलनशील तन्तुमय प्रोटीन जमा हो जाता है, किरैटिन त्वचा से जल की हानि को रोकता है। सतह पर पहुँचने तक प्रत्येक स्तर की कोशिकाओं का केन्द्रक नष्ट हो जाता है और ये मृत होकर मातृ किरैटिन की शल्के बन जाती हैं।
(b) किरैटिन-विहीन शल्की उपकला (Non-keratinised squamous epithelium) इस प्रकार की उपकला की कोशिकाएँ चपटी व शल्की होती हैं, परन्तु इनमें किरैटिन का जमाव नहीं होता है। यह नेत्र की कॉर्निया (cornea). मुखगुहा, असनी, असिका तथा योनि में पाई जाती है।
(ii) स्तरित घनाकार उपकला (Stratified Cuboidal Epithelium) इसमें सबसे बाहर के स्तर की कोशिकाएँ घनाकार होती है। यह स्तर स्वेद ग्रन्थियों व स्तन ग्रन्थियों की बड़ी नलिकाओं में पाया जाता है।
(ii) स्तरित स्तम्भी उपकला (Stratified Columnar Epithelium) इसमें सबसे बाहर के स्तर की कोशिकाएँ स्तम्भी होती है। यह स्वर कोष्ठ (larynx), पैरोटिड ग्रन्थियों, स्तन ग्रन्थियों की वाहिनियों में पाई जाती है।
3. विशिष्ट उपकला ऊतक (Special Epithelial Tissue)
विशिष्ट उपकला ऊतक निम्न प्रकार का होता है
(i) कूट स्तरित उपकला (Pseudostratified Epithelium) इसकी कोशिकाएँ लम्बी तथा एक परत मोटी होती है, इसके आधार भाग में उसी आधार कला पर सधी छोटी-छोटी आधार कोशिकाओं का एक अतिरिक्त स्तर होता है, जिसके कारण यह द्विस्तरीय दिखायी देती हैं। ऐसी कोशिकाएँ घाण गुहा की श्लेष्मिक झिल्ली, श्वास-नली, नासिका गुहाओं, नर जनन वाहिनियों, नर मूत्रमार्ग, ग्रन्थियों की बड़ी वाहिनियों, ग्रसनी, आदि में पाई जाती है।
(ii) अन्तर्वर्ती उपकला (Transitional Epithelium) यह स्तरित उपकला के समान होती है। यह एक महीन आधार कला तथा मोटे एवं लचीले संयोजी ऊतक पर सधी होती हैं। इसकी सभी कोशिकाएँ जीवित, लचीली व पतली होती है। यह उपकला मूत्राश्य और उत्सर्गी नलिकाओं में पाई जाती है।
(iii) संवेदी उपकला (Sensory Epithelium) घाण अंगों (nasal organs) की श्लेष्मिका कला अर्थात् श्नीडेरियन कला (Schneiderian membrane), अन्तःकर्णों की उपकला, स्वाद कलिकाओं तथा आँखों की रेटिना (retina) में संवेदी उपकला पाई जाती हैं।
(iv) वर्णक उपकला (Pigment Epithelium) आँखों की दृष्टि पटल में आधार स्तर पर एक ऐसी उपकला होती है, जिसकी कोशिकाओं में रंगा-कण होते हैं।
(v) ग्रन्थिल उपकला (Glandular Epithelium)
यह स्तम्भी उपकला का एक रूपान्तरण है। इसकी कोशिकाओं में एक स्पष्ट केन्द्रक (nucleus) होता है। इसकी कोशिकाओं से विशेष प्रकार का पदार्थ स्रावित होता है। विभिन्न अन्तःस्रावी ग्रन्थियौं, बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ तथा चषक कोशिकाएँ अन्थिल उपकला का उदाहरण है।
शरीर की सभी ग्रन्थियाँ उपकला ऊतक की बनी होती हैं। ये एककोशिकीय (चषक या गोब्लेट कोशिकाएं), बहुकोशिकीय (अन्तःस्रावी एवं बहिःस्रावी ग्रन्थि), प्रकार की होती है।
बहिः स्रावी ग्रन्थियों (Exocrine glands) ये सामान्य एवं संयुक्त, कूपिकीय, कोष्ठकीय एवं नालवत, एपोक्राइन, मीरोक्राइन, होलोक्राइन सीरमी श्लेष्मी एवं मिक्षित, आदि प्रकार की होती हैं।
(a) सामान्य एवं संयुक्त ग्रन्थियाँ (Sirople and compound glands) – ये रचनात्मक सरलता तथा जटिलता के आधार पर वर्गीकृत हैं
- सामान्य ग्रन्थि में स्रावी कोशिकाएँ (secretory cells) एक या एक से अधिक समूह में व्यवस्थित होती हैं तथा इनसे उत्पन्न स्रावी एक अशाखीय नलिका (unbranched duct) द्वारा बाहर निकलता है।
- सयुंक्त ग्रन्थि में स्रावी कोशिकाएँ अनेक समूहों में व्यवस्थित होती है। तथा इनका स्राव (secretion) अनेक शाखान्वित नलिकाओं द्वार बाहर निकलता है; जैसे यकृत, अग्न्याशय, लार ग्रन्थियौं, आदि।
(b) कूपिकीय, कोष्ठकीय एवं नालवत्-ग्रन्थियाँ (Aveolar, acinus and tubular glands)- ये ग्रन्थियाँ स्त्रावी इकाइयों की आकृति के अनुसार वर्गीकृत की गई हैं। जैसे-कूपिकीय ग्रन्थियों में फ्लास्क के आकार की, कोष्ठकीय ग्रन्थियों में गोल तथा नालवत् अन्थियों में नावत् स्रावी इकाई होती है।
इनके उदाहरण निम्नलिखित हैं
- सामान्य कूपिकीय (Simple alveolar) स्तनियों की कुछ तेल ग्रन्थियाँ।
- संयुक्त कूपिकीय (Compound alveolar) स्तनियों की अधिकाँश तेल ग्रन्थियाँ तथा सभी लार ग्रन्थियाँ।
- सामान्य कोष्ठकीय (Simple acinar) मेंढक की त्वचा ग्रन्थियाँ।
- सामान्य नालवत् (Simple tubular), आंत्रीय (intestinal) ग्रन्थियाँ, तथा स्तनियों में स्वेद ग्रन्थियौं।
- संयुक्त कोष्ठकीय (Compound acinar) यकृत तथा जठर ग्रन्थियाँ (gastric glands)
- संयुक्त नालवत् (Compound tubular) वृक्क एवं कुछ जठर ग्रन्थियाँ।
- संयुक्त नालवत्-कूपिकीय (Compound tubulo-alveolar) अग्न्याशय, सक्रिय स्तन ग्रन्थियाँ तथा बार्थोलिन एवं काउपर की ग्रन्थियाँ (Bartholin’s and Cowper’s glands)
(c) एपोक्राइन, मीरोक्राइन तथा होलोक्राइन ग्रन्थियाँ (Apocrine, merocrine and holocrine glands) – ये ग्रन्थियाँ स्रावण की विधि के अनुसार वर्गीकत की जाती हैं।
- स्तनधारियों की स्तन ग्रन्थियाँ एपोक्राइन होती हैं।
- आंत्र एवं तेल ग्रन्थियाँ होलोक्राइन होती हैं।
- स्वेद ग्रन्थियाँ एवं लार ग्रन्थियाँ मीरोक्राइन या एक्राइन होती हैं।
(d) सीरमी, श्लेष्मल एवं मिश्रित ग्रन्थियाँ (Serous, mucous and mixed glands) – इस प्रकार की बाहिः स्रावी ग्रन्थियों का वर्गीकरण स्रावी पदार्थ (स्रावण) की प्रकृति के अनुसार किया जाता है
- स्वेद ग्रन्थि तथा आंत्र ग्रन्थि सीरमी होती हैं।
- चषक कोशिका तथा कार्डियक ग्रन्थियाँ श्लेष्मल होती हैं।
- अग्न्याशय एक मिश्रित ग्रन्थि है
II. संयोजी ऊतक (Connective Tissue)
संयोजी ऊतक भूणीय मीसोडर्म (embryonic mesoderm) से बनता है। हर्टविग (Hertwig) ने 1883 में मीसोडर्म से बनने वाले सभी ऊतकों को मीसेनकाइमा (mesenchyma) के नाम से सम्बोधित किया। संयोजी ऊतक शरीर का लगभग 30% भाग बनाता है।
यह विभिन्न कोशिकाओं, ऊतकों व अंगों के बीच रहता है तथा इनको परस्पर बाँधने या जोड़ने का कार्य करता है। संयोजी ऊतक मूल रूप से तीन घटकों in (constituent), मैट्रिक्स (matrix), कोशिकाएँ (cells) तथा तन्तुओं का बना होता है।
तन्तु तीन प्रकार के होते हैं
(i) श्वेत कोलेजन तन्तु (White collagenous fibres) ये सफेद व लोचरहित तन्तु होते हैं।
(ii) पीले इलास्टीन तन्तु (Yellow elastin fibres) ये पीले व लोचयुक्त (elastic) तन्तु होते हैं।
(iii) श्वेत रेटिकुलर तन्तु (White reticular fibres) ये तन्तु जाली के समान परस्पर एक-दूसरे से उलझे रहते हैं। ये लोचरहित होते हैं। मेट्रिक्स तथा तन्तुओं की रचना के आधार पर संयोजी ऊतक वास्तविक संयोजी ऊतक, कंकालीय संयोजी एवं द्रव या तरल संयोजी ऊतक (रुधिर) प्रकार के होते हैं।
वास्तविक संयोजी ऊतक (Connective Tissue Proper) इसके संगठन में मैट्रिक्स तथा तन्तु के अलावा निम्न कोशिकाएँ पाई जाती हैं
(i) फाइब्रोब्लास्ट (Fibroblast)
ये संख्या में अधिक व चपटी होती है। ये कोशिकाएँ कोलेजन तन्तुओं का निर्माण करती है तथा घाव भरने के समय सर्वाधिक क्रियाशील होती है। स्कर्वी नामक रोग में इनकी क्रियाशीलता कम हो जाती है।
(ii) मेक्रोफेज (Macrophage)
ये स्वभाव में फैगोसाइटिक (phagocytic) होती है तथा अपमार्जक कोशिकाएँ (scavenger) भी कहलाती है। मस्तिष्क की ग्लीयल कोशिका (glial cells), यकृत की कुप्फर कोशिका (Kupffer cells) तथा रुधिर की मोनोसाइट (monocyte) इसी प्रकार की कोशिकाएं हैं।
(iii) मास्ट कोशिकाएँ (Mast Cells)
यह एलर्जी क्रियाओं में भाग लेती हैं तथा शरीर की रक्षा में कार्य करती है। यह निम्नलिखित उत्पाद बनाती हैं
- हिपेरिन यह रुधिर को जमने से रोकता है।
- हिस्टामिन यह एलर्जी की अवस्था में उत्तेजना पैदा करता है।
- सिरोटोनिन वह वाहिका संकीर्णक है।
(iv) लसिका कोशिकाएँ (Lymphocytes)
ये शरीर में प्रतिरक्षियों के संश्लेषण एवं संवहन का कार्य करती है। ये ऊतकों की जीवाणुओं और हानिकारक पदार्थों से रक्षा करती है।
(v) प्लाज्मा कोशिकाएँ (Plasma Cells)
ये लसिका कोशिकाओं के समान प्रतिरक्षी (antibodies) पदार्थों का संश्लेषण करती हैं। वास्तविक संयोजी ऊतक पुनः निम्न प्रकार का होता है
(a) अन्तराली संयोजी ऊतक (areolar connective tissue) यह त्वचा के नीचे, खोखले अंगों व धमनी तथा शिराओं की भित्तियों पर पाया जाता है। यह ऊतक विभिन्न ऊतकों के बीच का स्थान भरने तथा उन्हें जोड़ने व अंगों को उनके स्थान पर बनाये रखने में सहायता करता है।
(b) वसा ऊतक (adipose tissue) मुख्य कोशिकाएँ वसा कोशिका या एडिपोसाइट (adipocyte) होती हैं, जिनमें वसा संग्रहित रहती है। व्हेल का ब्लबर (blubber), ऊँट का कूबड़ तथा मैरीनो भेड़ की मोटी पूछं मुख्यतया वसा ऊतक की बनी होती है।
(c) श्वेत तन्तुमय ऊतक (White fibrous tissue) मैट्रिक्स में केवल कोलेजन तन्तु एवं मुख्यतया या फाइब्रोब्लास्ट कोशिकाएँ पाई जाती हैं। यह टेण्डन्स या कण्डराओं का निर्माण करता है, जो पेशी को अस्थि से जोड़ता है।
(d) पीत लोचदार ऊतक (Yellow elastic tissue) यह इलास्टिन तन्तुओं का बना होता है, जिसके कारण यह लचीला होता है। यह लिगामेन्ट का निर्माण करता है, जो एक अस्थि को दूसरी अस्थि से जोड़ते हैं। इसमें तन्यता पाई जाती है।
(e) जालिकामय संयोजी ऊतक (Reticular connective tissue) इस ऊतक में मुख्य-कोशिका मैक्रोफेज होती है। यह ऊतक प्लीहा में लाल पल्प (red pulp) तथा सफेद पल्प (white pulp) के रूप में, थाइमस, अस्थि मज्जा तथा आंत्र के पेयर के चकतों (Peyer’s patches) में पाया जाता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा में सहायक है।
(f) श्लेष्मी संयोजी ऊतक (mucous connective tissue) यह मुर्गे की कलंगी, भूण की ऑवल तथा आँख के विट्रस ह्यूमर में पाया जाता है।
कंकालीय संयोजी ऊतक (Skeletal Connective Tissue)
यह ऊतक शरीर का अन्तः कंकाल बनाता है तथा मीजोडर्म से विकसित होता है। यह विभिन्न अंगों को आधार प्रदान करता है। यह उपास्थि तथा अस्थि दो प्रकार का होता है
I. उपास्थि (Cartilage)
यह ऊतक भ्रूणीय (embryonal) अवस्था का निर्माण करता है। वयस्क अवस्था में यह केवल शरीर के कुछ भागों; जैसे-लेरिंक्स (larynx), ट्रेकिया (trachea), ब्रोंकाई (bronchi), आदि में ही मिलता है तथा शेष भाग में अस्थियों पाई जाती है। उपास्थि की रचना तीन घटकों पेरीकॉण्ड्रियम, मैट्रिक्स (कॉण्ड्रिन) तथा कॉण्ड्रियोसाइट्स द्वारा होती है तथा रचना के आधार पर उपास्थि चार प्रकार की होती हैं।
(a) प्रभासी उपास्थि (Hyaline Cartilage)
यह उपास्थि नीले रंग की तथा पारदर्शी होती है तथा यह उपास्थि सबसे अधिक लचीली होती है। यह उपास्थि श्वास नली की दीवार, पसलियों के सिरों, टाँगों की अस्थियों, लौरिक्स, आदि में पाई जाती हैं।
(b) श्वेत तन्तुमय उपास्थि (White Fibro Cartilage)
ये उपास्थियाँ कशेरुकाओं (vertebrae) के मध्य स्थित अन्तरा कशेरुक गद्दियों (intervertebral discs) तथा स्तनियों की श्रोणी मेखला (pelvic girdle) के प्यूबिक सिमफाइसिस (pubic symphysis), आदि में पाई जाती हैं।
(c) लचीली तन्तुमय उपास्थि (Elastic Fibro-Cartilage)
यह उपास्थि प्रभासी उपास्थि के समान होती है, परन्तु इसके मैट्रिक्स में पीले एवं लचीले इलास्टिन तन्तुओं का जाल फैला रहता है। यह अपारदर्शक उपस्थि नाक के सिरे पर एपीग्लोटिस तथा कान के पिन्ना (pinna), आदि में पाई जाती है।
(d) केल्सीफाइड उपास्थि (Calcified Cartilage)
यह आरम्भ में प्रभासी उपास्थि के समान होती है, परन्तु इसके मैट्रिक्स में कैल्शियम लवण (calcium salts) जमा हो जाते हैं, जिसके कारण यह उपास्थि अस्थि के समान कठोर हो जाती है और इसका लचीलापन समाप्त हो जाता है। मेंढक की अंश-मेखला (pectoral girdle) की सुप्रास्केपुला (supra scapula) और श्रोणि मेखला इसी उपास्थि की बनी होती है।
II. अस्थि (Bone)
मीसोडर्मी कोशिकाएँ अर्थात् ऑस्टिओसाइट (osteocyte) अस्थि का निर्माण करती है। अस्थि निर्माण की प्रक्रिया को ऑस्टियोजेनेसिस या अस्थिभवन (osteogenesis or ossification) कहते हैं।
अस्थि के मैट्रिक्स को ओसीन (ossein) कहते हैं। मैट्रिक्स का लगभग 62% भाग अकार्बनिक लवणों का तथा 38% भाग कार्बनिक पदार्थ का बना होता है। अस्थि संयोजी ऊतक की परत-पैरीऑस्टियम (periosteum) से ढकी रहती हैं। स्नायु तथा कण्डरा अस्थि से इसी झिल्ली द्वारा जुड़े रहते हैं। ( स्तनधारियों की लम्बी अस्थियों के मैट्रिक्स में एक हैवर्सियन नलिका (Haversian canal) के चारों ओर संकेन्द्रित लैमेली के बीच, पंक्तियों में ऑस्टियोसाइट होती हैं। अस्थि की 4-20 तक संकेन्द्रीय लैमेली (concentric Jamellae) प्रत्येक हैवर्सियन नलिका को गोलाई में घेरती हैं। ऐसी एक पूरी संरचना को हैवर्सियन तन्त्र या ऑस्टिऑन (Haversian system or osteon) कहते हैं। हैवर्सियन नलिकाएँ मुख्य अक्ष के समानान्तर होती हैं तथा क्षतिज वोल्कमैन नलिकाओं (Volkman’s canal) द्वारा जुड़ी रहती हैं। हैवर्सियन तन्त्र का मुख्य कार्य रुधिर द्वारा अस्थि के भीतर पोषक पदार्थों तथा ऑक्सीजन का परिवहन करना है, जिन अस्थियों में हैवर्सियन तन्त्र पाया जाता है, उन्हें संहत (compact) अस्थि कहते हैं। यदि किसी अस्थि को जलाया जाये, तो कार्बनिक पदार्थ जल जाता है तथा अकार्बनिक पदार्थ राख के रूप में शेष रह जाता है।
द्रव या तरल संयोजी ऊतक (Fluid Connective Tissue)
रुधिर एवं लसीका द्रव या तरल संयोजी ऊतक होते हैं। वास्तव में तरल ऊतक संयोजी ऊतक का रूपान्तरण (modification) होता है। यह ऊतक शरीर में भ्रमण (circulation) करता है, जिसके कारण इसको तरल ऊतक (fluid tissue) भी कहते हैं।
यह शरीर का लगभग 8% भाग होता है। रुधिर की श्यानता (viscosity) 4.7 होती है। मनुष्य का रुधिर जल से 5 गुना अधिक चिपचिपा होता है। यह हल्का क्षारीय प्रकृति का होता है, जिसकी pH 7.36-7.54 तक होती है (औसत pH 7.4)| ऑक्सीकृत रुधिर चमकीले लाल रंग का होता है, जबकि अनॉक्सीकृत रुधिर गुलाबी नीले रंग का होता है।
रुधिर का संघटन (Composition of Blood)
रुधिर दो भागों प्लाज्मा तथा रुधिर कणिकाओं का बना होता है।
1.प्लाज्मा (Plasma)
प्लाजा पीले रंग का निर्जीव द्रव है। यह हल्का क्षारीय एवं चिपचिपा होता है। यह रुधिर के सम्पूर्ण आयतन का लगभग 55-60% भाग होता है। प्लाज्मा में 90-92% जल, 1-2% अकार्बनिक लवण, 6-7% प्लाज्मा प्रोटीन एवं 1-2% अन्य कार्बनिक यौगिक पाए जाते हैं।
इसका कार्य सरल भोज्य पदार्थों (ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, आदि) का आँत एवं यकृत से शरीर के अन्य भागों में परिवहन करना है। यह उपापचयी वर्ण्य पदार्थों (metabolic wastes); जैसे-यूरिया, यूरिक अम्ल, आदि का ऊतकों से वृक्कों तक उत्सर्जन हेतु परिवहन करता है।
यह अन्तः स्त्रावी ग्रन्थि से लक्ष्य अंगों तक हॉर्मोनों का परिवहन करता है तथा रुधिर की pH को स्थिर रखने में सहायक है।
प्लाज्मा में उपस्थित रुधिर प्रोटीन एवं फाइब्रिनोजन जख्म अथवा क्षति पहुँचने पर रुधिर का थक्का जमाने में सहायक होते हैं। यह ऊतक द्रव्य (tissue fluid) का निर्माण करता है, जो ऊतक को आई रखता है और रुधिर एवं कोशिकाओं के मध्य पदार्थों के आदान-प्रदान में सहायक है।
2. रुधिर कणिकाएँ या रुधिर कोशिकाएँ (Blood Corpuscles or Blood Cells)
ये रुधिर का 40-45% भाग बनाती हैं। रुधिर कणिकाओं का प्रतिशत हीमेटोक्रिट मूल्य (haematocrit value) अथवा पैक्ड सैल वॉल्यूम (packed cell volume) कहलाता है। मनुष्य में सामान्य हीमेटोकिट मूल्य अथवा पैक्ड सैल वॉल्यूम 40-50% होता है। रुधिर कणिकाएँ तीन प्रकार की होती है
1. लाल रुधिर कणिकाएँ (RBCs)
ये स्तनधारियों के अलावा सभी कशेरुकियों में अण्डाकार (oval), द्विउत्तल (biconvex) एवं केन्द्रकीय (nucleated) होती है। स्तनियों में ऊँट एवं लामास को छोड़कर सभी की RBCS गोलाकार, द्विअवतल (biconcave) और केन्द्रकविहीन होती है।
हेमरेज (haemorrhage) एवं हीमोलाइसिस (haemolysis) से RBCs की संख्या घट जाती है, जिसे रक्ताल्पता (anaemia) कहते हैं। RBCS की संख्या में सामान्य स्तर से अधिक वृद्धि पॉलीसाइथीमिया (polycythemia) कहलाती है।
एकल RBC पीले रंग की दिखाई पड़ती है, परन्तु RBCs का गुच्छा हीमोग्लोबिन के कारण लाल रंग का दिखाई पड़ता है।
गर्भस्थ शिशु में RBCs का निर्माण यकृत (liver) एवं प्लीहा (spleen) में होता है, जबकि शिशु के जन्म के उपरान्त RBCs का निर्माण मुख्यतया अस्थि मज्जा (bone marrow) में होता है।
RBC का परिपक्वन फोलिक अम्ल एवं विटामिन-B, द्वारा नियन्त्रित होता है। RBCs की अतिरिक्त मात्रा प्लीहा (spleen) में संग्रहित होती है, जो रुधिर बैंक (blood bank) की भाँति कार्य करती है। मनुष्य की RBC का औसत जीवनकाल 120 दिन होता है, जबकि मेंढक एवं खरगोश की RBC का जीवनकाल क्रमशः 100 दिन एवं 50-70 दिन होता है।
2. सफेद रुधिर कणिकाएँ (WBCs)
ये गोल अथवा अमीबाकार, केन्द्रकयुक्त, वर्णकविहीन कोशिकाएँ हैं। WBCS आकार में RBCS से बड़ी होती हैं, जबकि इनकी संख्या में RBCS से कम होती है (1:600)
ल्यूकीमिया (रुधिर कैंसर) में WBCs की संख्या बढ़ जाती है।
सफेद रुधिर कणिकाओं को ग्रेन्यूलोसाइट्स एवं एग्रेन्यूलोसाइट में वर्गीकृत करते हैं।
(i) ग्रेन्यूलोसाइट्स (Granulocytes) ये कोशिकाएँ लाल अस्थि मज्जा में बनती हैं एवं कुल ल्यूकोसाइट्स की लगभग 65% होती हैं। ये केन्द्रक के आकार एवं उनके कणों (granules) की अभिरंजक क्रियाओं (staining reactions) के आधार पर पुनः निम्न प्रकार विभाजित की जा सकती हैं
(a) न्यूट्रोफिल्स (neutrophils) ये WBCs की कुल संख्या का लगभग 62% होती हैं। इनके कोशिकाद्रव्य में महीन कण (tine granules) पाए जाते हैं, जो अम्लीय एवं क्षारीय अभिरंजकों द्वारा अभिरंजित होते हैं तथा बैंगनी रंग के दिखाई देते हैं। केन्द्रक 3-5 पालीयुक्त (lobed) होता है। इनका जीवनकाल रुधिर में 10-12 घण्टे तथा ऊतक में 4-5 दिन होता है। ये शरीर के रक्षक की भाँति कार्य करती हैं।
(b) बेसोफिल्स (Basophils) ये सायनोफिल्स (Cyanophils) भी कहलाती हैं। कोशिकाद्रव्यी कण बड़े होते हैं, जो नीले रंग के दिखाई पड़ते हैं। केन्द्रक दो अथवा तीन पालीयुक्त अथवा S के आकार का होता है। इनका जीवनकाल 12-15 दिन होता है। ये हिपेरिन ( (heparin) एवं हिस्टेमाइन (histamine) को सावित कर केशिकाओं में रुधिर का थक्का जमने से रोकती है।
(c) एसिडोफिल्स (Acidophils) ये इओसीनोफिल्स (eosinophils) भी कहलाती हैं। इनका केन्द्रक द्विपालीयुक्त (bilobed) होता है। इनका जीवनकाल 14 घण्टे होता है। एलर्जी में इनकी संख्या बढ़ जाती है। ये घावों को भरने में सहायक होती हैं।
(ii) एग्रेन्यूलोसाइट्स (Agranulocytes) ये कुल WBCs का लगभग 35% भाग होती है। एग्रेन्यूलोसाइट्स को मोनोसाइट्स एवं लिम्फोसाइट्स में विभाजित किया जा सकता है।
(a) मोनोसाइट्स (Monocytes) ये सबसे बड़ी ल्यूकोसाइट्स (WBCs) है। ये कुल ल्यूकोसाइट्स का लगभग 5.3% भाग बनाती हैं। इनका केन्द्रक अण्डाकार, वृक्क अथवा घोड़े की नाल के आकार का और बाह्य केन्द्रीय (excentric) होता है। इनका निर्माण लिम्फनोड एवं प्लीहा में होता है। ये अत्यधिक चल (motile) होती है तथा जीवाणु एवं अन्य रोगकारक जीवों का भक्षण करने का कार्य करती हैं। इनका जीवनकाल कुछ घण्टों से लेकर कई दिनों तक हो सकता है।
(b) लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) ये ल्यूकोसाइट्स का लगभग 30% भाग बनाती हैं। इनका केन्द्रक बड़ा और गोल होता है तथा कोशिकाद्रव्य पतली परिधीय परत (peripheral layer) बनाता है। इनका निर्माण थाइमस, लिम्फनोड, प्लीहा तथा टॉन्सिल्स में होता है। इनका जीवनकाल 3-4 दिन होता है। ये प्रतिरक्षियों (antibodies) का निर्माण कर शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
3. रुधिर प्लेटलेट्स (Blood Platelets)
ये रंगहीन, अण्डाकार, चक्रिक (discoidal) तथा कोशिकाद्रव्यी भाग हैं, जो अकेन्द्रकीय होते हैं। रुधिर में प्लेटलेट्स की संख्या में कमी प्रॉम्बोसाइटोपीनिया (thrombocytopenia) कहलाती है। इनका जीवनकाल लगभग एक सप्ताह होता है। ये रुधिर के थक्का निर्माण (blood clotting) में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
लसिका (Lymph)
लसिका अर्द्धपारदर्शी क्षारीय तरल है, जो रुधिर कोशिकाओं तथा ऊतक के बीच उपस्थित होता है। लसिका में RBC अनुपस्थित एवं प्लाज्मा प्रोटीन की मात्रा कम होती है। इसमें कैल्शियम एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है। लसिका में प्लाज्मा तथा ल्यूकोसाइट पाई जाती है।
III. पेशीय ऊतक (Muscular Tissue)
पेशीय ऊतक भूणीय मीसोडर्म (mesoderm) से विकसित होता है। पेशियाँ शरीर का लगभग 50% भाग बनाती हैं। इस ऊतक का विशिष्ठ गुण संकुचनशीलता (contractility) है। पेशी में संकुचन तथा शिथिलन होता है, लेकिन इनमें प्रसार (expand) नहीं होता है।
पेशी कोशिका को पेशी तन्तु भी कहते हैं। पेशी तन्तु की प्लाज्मा झिल्ली को सारकोलेमा (sarcolemma) कहते हैं। पेशी तन्तु के एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम को सारकोप्लाज्मिक रेटिकुलम (sarcoplasmic reticulum) कहते हैं। पेशी तन्तु के कोशिका द्रव्य को सारकोप्लाज्म (sarcoplasm) कहते हैं। इसकी संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई सारकोमियर (sarcomere) कहलाती है।
पेशीय ऊतक को रेखित पेशियों, अरेखित पेशियों तथा हृदय पेशियों में विभाजित किया जाता है।
IV. तन्त्रिका ऊतक (Nervous Tissue)
तन्त्रिका ऊतक का निर्माण एक्टोडर्म (ectoderm) से होता है। तन्त्रिका ऊतक में दो प्रकार की कोशिकाएँ अर्थात् तन्त्रिका कोशिकाएँ तथा न्यूरोग्लिया कोशिकाएँ उपस्थित होती हैं।
तन्त्रिका कोशिका एक तन्त्रिका कोशिका में कोशिकाकाय (cell body) साइटॉन एवं पैरिकैरिऑन पाए जाते हैं, कोशशिकाद्रव्य के बने पतले प्रवर्ध डेन्ड्राइट तथा एक लम्बा प्रवर्ध एक्सॉन, एक न्यूरॉन से निकलता है।
एक्सॉन की कोशिका कला को एक्सोलेमा (axolemma) तथा कोशिकाद्रव्य को एक्सोप्लाज्म (axoplasm) कहते हैं। एक्सॉन दूरस्थ छोर पर छोटी-छोटी शाखाओं में विभाजित हो जाता है, जिन्हें टीलोडेन्ड्रिया (telodendria) कहते हैं। टीलोडेन्ड्रिया के सिरे पर घुण्डीनुमा अन्तः बटन (end button) होते हैं, जिनमें न्यूरोट्रान्समीटर (neurotransmitter) संचित रहत है।
न्यूरोग्लिया कोशिकाएँ (Neuroglia Cells)
न्यूरोग्लिया कोशिकाएँ छ: प्रकार की होती हैं, जिनमें चार प्रकार की केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (CNS) में तथा दो प्रकार की परिधीय तन्त्रिका तन्त्र (PNS) में होती हैं
(i) एस्ट्रोसाइट्स (Astrocytes) ये मस्तिष्क के ऊतक में पाई जाती हैं। इनमें चारों ओर कई प्रवर्ध निकले होते हैं, अतः इनकी आकृति सितारे जैसी होती है। ये तन्त्रिसंचारी पदार्थों के उपापचय (metabolism) में भाग लेती है, तन्त्रिकीय प्रेरणाओं की उत्पत्ति के लिए K’ आयनों का सन्तुलन बनाए रखती हैं तथा रुधिर से पदार्थों के आदान-प्रदान एवं मस्तिष्क की वृद्धि में सहायता करती हैं।
(ii) ऑलिगोडेन्ड्रोसाइट्स (Oligodendrocytes) ये मस्तिष्क के ऊतक में सबसे अधिक पाई जाने वाली, परन्तु कुछ छोटी न्यूरोग्लिया कोशिकाएँ होती हैं। इनमें प्रवर्ष भी कम होते हैं। ये तन्त्रिका तन्तुओं के चारों ओर एक मायलिन खोल (myelin sheath) बनाकर इनकी सुरक्षा करती हैं।
(iii) माइक्रोग्लिया (Microglia) ये रुधिर की मोनोसाइट कोशिकाओं से व्युत्पन्न छोटी नक्षी कोशिकाएँ (phagocytic cells) होती हैं, जो CNS के ऊतक में पहुंचने वाले रोगाणुओं तथा कोशिकीय भलवे का भक्षण करके इनका विघटन करती हैं।
(iv) इपेन्डाइमल कोशिकाएँ (Ependymal cells) ये घनाकार या स्तम्भी, प्रायः रोमामि (ciliated) कोशिकाएँ होती हैं, जो CNS की गुहाओं के चारों ओर आच्छादित इकहरी एपिथीलियम बनाती हैं। ये इन गुहाओं में भरे सेरेब्रोस्पाइनल तरल (cerebrospinal fluid) का स्त्रावण करती हैं।
(v) अनुचर कोशिकाएँ (Satellite cells) कुछ तन्त्रिका कोशिकाएँ CNS के बाहर छोटे-छोटे समूहों में पाई जाती हैं, जिन्हें गुच्छक (ganglia) कहते हैं। इन गुच्छकों के ऊतक में उपस्थित अवलम्ब कोशिकाओं को अनुचर कोशिकाएँ कहते हैं।
(vi) न्यूरोलेमोसाइट्स या श्वान कोशिकाएँ (Neurolemmocytes or Schwann Cells) ये PNS के तन्त्रिका तन्तुओं के चारों ओर मायलिन खोल बनाती हैं।
तन्त्रिका ऊतक के कार्य (Functions of Nervous Tissue)
- यह ऊतक प्रेरणाओं (impulses) का संवहन करता है, जिससे उपवाहक अंग (effector organs) प्रतिक्रिया करते हैं।
- यह ऊतक शरीर के विभिन्न अंगों के मध्य पारस्परिक समन्वयन (coordination) स्थापित करता है।
- ये स्मृति की प्रक्रियाओं (memory processes) में सहायता करती हैं।