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Cell Cycle and Cell Division
कोशिका चक्र (Cell Cycle)
कोशिका के निर्माण से लेकर उसके विभाजन द्वारा पुनःसन्तति कोशिकाएँ (daughter cells) बनने तक होने वाली प्रक्रियाओं के योग को कोशिका चक्र कहते हैं। इसमें दो अवस्थाएँ; अन्तरावस्था (interphase) तथा M-अवस्था (mitotic phase) होती है।
सूत्री विभाजन के प्रारम्भ से पहले एक अन्तरावस्था (interphase) होती है, इसमें केन्द्रक उपायचयी रूप से सक्रिय होता है, इसमें तीन उप-अवस्थाएँ होती है।
G,- उपअवस्था प्रोटीन एवं RNA का संश्लेषण होता है। G. उपअवस्था में कोशिकाएँ विभेदित हो जाती हैं।
S- उपअवस्था इसमें DNA का द्विगुणन एवं हिस्टोन प्रोटीन का संश्लेषण होता है।
G2- उपअवस्था तुर्क (spindle) हेतु प्रोटीन संश्लेषण एवं कोशिकांगों की वृद्धि।
M- अवस्था (mitotic phase) इस अवस्था मे कोशिकाद्रव्य विभाजन (cytokinesis) एवं केन्द्रक विभाजन होते हैं। इसमें कोशिका विभाजन होता है।
कोशिका विभाजन (Cell Division)
कोशिका विभाजन का आशय उस प्रक्रिया से है, जिसके अन्तर्गत एक कोशिका से दो कोशिकाओं का निर्माण होता है, जिससे जीवों में प्रजनन और वृद्धि सम्भव हो पाती है। इस घटना में पहले DNA का द्विगुणन और फिर केन्द्रक तथा कोशिकाद्रव्य का विभाजन होता है। विभाजन प्रमुख रुप से तीन प्रकार का होता है
(i) असूत्री विभाजन (amitosis) प्रोकैरियोटिक जीवों में
(ii) सूत्री विभाजन (mitosis) कायिक कोशिकाओं में
(iii) अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) जननिक कोशिकाओं में
1. असूत्रीय विभाजन (Amitosis)
(Gk. amitos-धागा रहित; osis-अवस्था) इसे प्रत्यक्ष कोशिका विभाजन भी कहा जाता है। इसे रॉबर्ट रीमेक (सन् 1855) ने चूजे के भ्रूण (embryo) की RBC में खोजा था। इस विभाजन में गुणसूत्र एवं स्पिण्डल का विभेदीकरण नहीं होता है। इसमें केन्द्रकीय आवरण का विघटन नहीं होता है। इसमें केन्द्रक लम्बा होकर एवं मध्य में सिकुड़कर (constrict) दो पुत्री केन्द्रकों का निर्माण करता है, इसके बाद कोशिकाद्रव्य के एक सेन्ट्रीपिटल संकीर्णन (constriction) से दो पुत्री कोशिकाएँ निर्मित होती हैं।
यह एक प्राचीन प्रकार का विभाजन है, जो प्रोकैरियोट्स, प्रोटोजोअन्स यीस्ट, स्तनियों की गर्भ कला (foetal membrane) एवं कार्टिलेज, रोगी ऊतकों में पाया जाता है।
2. सूत्री कोशिका विभाजन (Mitosis)
सभी जन्तुओं और पौधों में, जनन कोशिकाएँ एवं अन्य सारी कोशिकाएँ सूत्री विभाजन से विभाजन करती हैं। इस कोशिका विभाजन की खोज डब्ल्यू फ्लेमिंग ने की। यह सभी प्रकार के कायिक कोशिकाओं (vegetative cells) में होती है। इसमें एक द्विगुणित मातृ-कोशिका से दो समान सन्तति कोशिकाएँ बनती हैं। सूत्री विभाजन की प्रक्रिया दो भागों में सम्पन्न होती है, जो निम्न प्रकार हैं
(I) केन्द्रक विभाजन (Karyokinesis)
इस विभाजन की प्रक्रिया चार अवस्थाओं में सम्पन्न होती है
(i) पूर्वावस्था (Prophase) वास्तविक कोशिका विभाजन की शुरूआत इसी अवस्था से होती है। इसमें प्रत्येक गुणसूत्र लम्बाई में पूरी तरह से दो बराबर भागों में बँट जाती है। इस आधे भाग को अर्द्धगुणसूत्र कहा जाता है। ये अर्द्धगुणसूत्र सेन्ट्रोमीयर पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और केन्द्रक कला तथा केन्द्रिका नष्ट हो जाती है। कोशिका विभाजन का यह सबसे लम्बा चरण होता है।
(ii) मध्यावस्था (Metaphase) यह अवस्था काफी छोटी होती है, इस अवस्था में गुणसूत्र मध्य रेखा पर आकर एकत्र हो जाते हैं। गुणसूत्र के सेन्ट्रोमीयर से कुछ तन्तु (टेक्टाइल तन्तु) ध्रुवों से जुड़े रहते है। उच्च पादपों में अतारकीय (anastral) और जन्तुओं में तारकीय (astral) सूत्री विभाजन होता है।
(iii) पश्चावस्था (Anaphase) सूत्री विभाजन के अन्तर्गत इस अवस्था में 6. सर्वाधिक कम समय (2-3 मिनट) लगता है। इस अवस्था में अर्धगुणसूत्र अलग हो जाते हैं और सन्तति गुणसूत्रों (daughter chromosomes) के मध्य प्रतिकर्षण बल या टेक्टाइल तन्तुओं के ध्रुवों की ओर खिंचाव के कारण ये विपरीत ध्रुवों की ओर गति करते हैं।
(iv) अन्त्यावस्था (Telophase) इस चरण में नवजात गुणसूत्र के प्रत्येक जोड़े के चारों ओर एक केन्द्रक झिल्ली का निर्माण होता है और एक पूर्ण कोशिका का निर्माण होता है। इसके साथ ही सन्तति गुणसूत्र ध्रुवों पर एकत्र हो जाते हैं। इस सम्बन्ध में जन्तु कोशिकाओं में सन्तति कोशिकाओं को पृथक करने के लिए संकुचन होता है, परन्तु पादप कोशिकाओं में संकुचन के स्थान पर कोशिका प्लेट बनती हैं।
(II) कोशिकाद्रव्य विभाजन (Cytokinesis)
केन्द्रक विभाजन के बाद कोशिकाद्रव्य का विभाजन होता है। यह पादप कोशिकाओं में फ्रेग्मोप्लास्ट से, कोशिका के मध्य से बाहर की ओर कोशिका प्लेट के निर्माण द्वारा तथा जन्तुओं में कोशिका कला के मध्यवर्ती स्थान से अन्तर्वलन (invagination) द्वारा होता है।
सूत्री कोशिका विभाजन का महत्त्व (Importance of Mitosis)
सूत्री विभाजन के कारण जीवों की वृद्धि तथा विकास सम्भव हो पाता है। यह अलैंगिक जनन का आधार है। इससे सन्तति कोशिकाओं (daughter cells) में गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका के समान होती हैं। इसके साथ ही सन्तति कोशिकाओं के गुण भी मातृ कोशिका के ही समान होता है।
3. अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis)
‘मियोसिस’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम फॉर्मर एवं मूरे ने किया। यह विभाजन केवल जनन कोशिकाओं (reproductive cells) में होता है। इस विभाजन में गुणसूत्रों की संख्या कम होकर आधी रह जाती है, इसलिए इसे न्यूनकारी कोशिका विभाजन (reduction division) भी कहा जाता है।
अर्द्धसूत्री विभाजन केन्द्रक विभाजन का रूप है। सूत्री विभाजन की तरह इसमें मुख्य कोशिका में अन्तरावस्था के क्रम में ही DNA रेप्लीकेशन होता है, परन्तु यह केन्द्रक विभाजन (nucleus division) तथा कोशिका विभाजन (cell division) के दो चरणों में पूरा होता है, जिसे अर्द्धसत्री-1 और अर्द्धसूत्री-|| के नाम से जाना जाता है। यह विभाजन जन्तु में शुक्राणु और अण्डाणु के बनने (gametogenesis) के दौरान और पौधों में बीजाणु (spore) बनने के क्रम में होता है।
यह विभाजन द्विगुणित (diploid) जनन कोशिकाओं में होता है, जिसके परिणामस्वरूप चार अगुणित कोशिकाएँ (haploid cells) बनती हैं। .
(i) अर्द्धसूत्री विभाजन-I ( Meiosis-I )
इसे न्यूनकारी विभाजन (reduction division) भी कहा जाता है। इसकी चार अवस्थाएँ होती हैं
(a) पूर्वावस्था-1 (Prophase-) यह सबसे लम्बी अवस्था है, जो पाँच उप-अवस्थाओं में होती है, ये निम्न हैं
- लेप्टोटीन (Leptotene) इसमें केन्द्रक जाल संघनित होकर गुणसूत्र बनाते हैं। एक ही प्रकार के गुण रखने वाले गुणसूत्र समजात गुणसूत्र कहलाते हैं।
- जाइगोटीन (Zygotene) इस उप-अवस्था में समजात गुणसूत्र युग्म बनाते हैं। इस क्रिया को सिनेप्सिस (synapsis) कहते हैं।
- पैकेटीन (Pachytene) इस उप-अवस्था में गुणसूत्र के लम्बाई में फटने के कारण समजात गुणसूत्र जोड़े में चार क्रोमैटिड दिखाई देते हैं। इस स्थिति को चतर्सयोजक (tetrad) कहा जाता है। समजात गुणसूत्रों के अवहन अर्द्धगुणसूत्रों के मध्य विनियम (crossing over) भी होता है।
- डिप्लोटीन (Diplotene) इसमें समजात गुणसूत्र का प्रत्येक अर्द्धगुणसूत्र एक-दूसरे से अलग होने लगता है, परन्तु कुछ स्थानों पर एक-दूसरे के साथ क्रॉस बनाए रखता है, जिसे किएज्मेटा कहते हैं।
- डाइकाइनेसिस (Diakinesis) इस उप-अवस्था में केन्द्रक तथा केन्द्रक कला लुप्त हो जाती है तथा किएज्मेटा (chiasmata) गुणसूत्र के सिरे की ओर खिसकने लगते हैं, जिसे टर्मिनेलाइजेशन (terminalisation) कहते हैं।
(b) मध्यावस्था -I (Metaphase-I) इसमें तर्कु उपकरण बन जाता है तथा तर्कु तन्तु गुणसूत्रों के सेन्ट्रोमीयर से जुड़ जाते हैं।
(c) पश्चावस्था -I (Anaphase-I) तर्कु तन्तुओं के संकुचन के कारण समजात गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों पर जाने लगते हैं और प्रत्येक ध्रुव पर गुणसूत्र की न संख्या आधी हो जाती है।
(d) अन्त्यावस्था- I (Telophase-I) इस अवस्था में केन्द्रक तथा केन्द्रक कला (nuclear membrane) प्रकट हो जाती है। कोशिकाद्रव्य विभाजन द्वारा दो कोशिकाएँ बनती हैं, जो अन्त्यावस्था में प्रवेश करती है, परन्तु इसमें DNA का द्विगुणन नहीं होता है।
अर्द्धसूत्री विभाजन-II (Meiosis-II)
अर्द्धसूत्री प्रथम के बाद यह अवस्था शुरू होती है। दोनों के मध्य की अवस्था विरामावस्था (resting stage) कहलाती है। इस चरण में चार अवस्थाएँ होती हैं, जो सूत्री विभाजन के समान होता है।
(a) पूर्वावस्था-II (interphase-II) इसमें केन्द्रिका और केन्द्रक आवरण बिखर जाते हैं, साथ ही अर्द्धगुणसूत्र छोटे और मोटे हो जाते हैं तथा तर्कु (spindie fibre) बन जाते हैं।
(b) मध्यावस्था-II (Metaphase-II) इसमें केन्द्रिका और केन्द्रक झिल्ली विलुप्त हो जाती है। तर्कु बन जाते हैं और गुणसूत्र तर्क के मध्य रेखा (equator) पर सेन्ट्रोमीयर द्वारा चिपक जाते हैं।
(c) पश्चावस्था-II (Anaphase-II) इसमें सेन्ट्रियोल पहले सेन्ट्रोमीयर्स को और फिर क्रोमैटिड्स को विपरीत ध्रुवों पर खींचते हैं।
(d) अन्त्यावस्था-II (Telophase-II) इसमें चार नई कोशिकाओं का निर्माण होता है। गुणसूत्र कुण्डली से खुलकर, सीधे, लम्बे और एक समान हो जाते हैं। तर्कु (spindle fibre) विलुप्त हो जाते हैं और सेन्ट्रियोल दोहरे हो जाते हैं। केन्द्रक आवरण केन्द्रक के चारों ओर फिर से बनते हैं, जहाँ गुणसूत्र की संख्या अविभाजित कोशिका में मौजूद गुणसूत्रों की संख्या की आधी (haploid) होती है। जीव की एक अविभाजित कोशिका से चार नए कोशिकाओं का निर्माण करते हैं।
मुख्यतया अगुणित जीवन चक्र वाले पौधों; जैसे-यूलोथिक्स में युग्मनज अर्द्धसूत्री विभाजन, द्विगुणित जीवन चक्र वाले पौधों में युग्मकी अर्द्धसूत्री विभाजन तथा उच्च वर्ग के पौधों में बीजाणुक अर्द्धसूत्री विभाजन (sporic meiosis) होता है।
अर्द्धसूत्री विभाजन का महत्त्व (Importance of Meiosis)
अर्द्धसूत्री विभाजन में विनिमय (crossing over) द्वारा नई किस्मों का विकास होता है। चूंकि एक जाति के समस्त जीवों में पीढ़ी दर पीदी गुणसूत्रों की संख्या सदैव स्थिर रहती है, जो अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा ही सम्भव हो पाता है।
अर्द्धसूत्री विभाजन के मौलिक लक्षण (Basic Characters of Meiosis)
सूत्री तथा अर्द्धसूत्री विभाजन में अन्तर (Difference between mitosis and meiosis)
सूत्री विभाजन | अर्द्धसूत्री विभाजन |
यह शरीर की कायिक कोशिकाओं एवं लैंगिक कोशिकाओं में होता है। | यह केवल लैंगिक कोशिकाओं में होता है। |
कोशिका के गुणसूत्रों में कोई परिवर्तन नहीं होता है। | इसमें सन्तति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है। |
यह प्रक्रिया चार अवस्थाओं में सम्पन्न होती है। | यह दो उप-विभाजनों में पूरा होता है, जिसमें पहला न्यूनकारी (reductional) तथा प्रत्येक विभाजन में 4-5 अवस्थाएँ होती हैं। |
गुणसूत्रों के आनुवंशिक पदार्थ में आदान-प्रदान नहीं होता है, इसलिए सन्तति कोशिकाओं कोशिकाओं में भी उसी प्रकार के गुणसूत्र होते हैं, जैसे जनक कोशिका में। | सन्तति गुणसूत्रों के बीच आनुवंशिक पदार्थ का आदान-प्रदान होता है,इसलिए के गुणसूत्र में कुछ भाग पितृ कोशिका से तथा कुछ भाग मातृ कोशिका से आ जाता है अतःसन्तति कोशिका के गुणसूत्र, जनकों के गुणसूत्र से भिन्न होते हैं। |
सन्तति कोशिका में जनक जैसे गुणसूत्र होने के कारण आनुवंशिक विविधता नहीं होती है। | सन्तति कोशिकाओं में जनकों से भिन्न गुणसूत्र होने के कारण आनुवंशिक विविधता होती है। |
एक जनक से दो सन्तति कोशिकाएँ बनती हैं। | एक जनक से चार सन्तति कोशिकाएँ बनती हैं। |