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गुणसूत्र (Chromosome)
‘गुणसूत्र’ शब्द का प्रतिपादन वाल्डेयर (सन् 1888) ने किया। हॉफमीस्टर (Hofmeister) ने सर्वप्रथम ट्रेडेकेन्शिया (Tradescantia) की पराग मातृ कोशिका में गुणसूत्र की खोज की। सटन एवं बोवेरी (सन् 1902) ने बताया कि गुणसूत्र भौतिक संरचना है तथा इनके द्वारा आनुवंशिक लक्षणों का पारगमन होता है। क्रोमेटिन पदार्थ, जो केन्द्रक पदार्थ, जो केन्द्रक की अन्तरावस्था (interphase) में पाया जाता है तथा विभाजन के समय छोटे तथा पतले धागों में संघनित हो जाता है, गुणसूत्र कहलाता है।
गुणसूत्र की संरचना (Structure of Chromosome)
गुणसूत्र क्रोमेटिन से बना होता है। क्रोमेटिन (cromatin) वास्तव में दो पदार्थों प्रोटीन एवं DNA के अणुओं के संयुक्त होने से बनता है। जिस समय कोशिका विभाजित होने लगती है, तब ये क्रोमेटिन सिकुड़कर अनेक मोटे एवं छोटे घागों के रूप में संगठित हो जाते हैं। इन्हें आसानी से सूक्ष्मदर्शी द्वारा भी देखा जा सकता है। प्रत्येक गुणसूत्र में जैली के समान एक मादा भाग होता है, जिसे मेट्रिक्स कहते हैं। मेट्रिक्स में दो परस्पर लिपटे महीन एवं कुण्डलित सूत्र दिखाई देते हैं, उन्हें क्रोमोनिमेटा (chromonemata) कहते हैं।
प्रत्येक क्रोमोनिमेटा एक अर्द्धगुणसूत्र (chromatid) कहलाता है। प्रत्येक गुणसूत्र दो क्रोमेटिडों का बना होता है। दोनों क्रोमेटिड्स एक निश्चित स्थान पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं, जिसे सेन्ट्रोमीयर (centromere) कहते हैं।
गुणसूत्रों पर बहुत से जीन (gene) स्थित होते हैं। एक पीदी से दूसरी पीढ़ी के जो लक्षण हस्तान्तरित होते हैं, वे जीन के माध्यम से होते है। जीन ही हमारे आनुवंशिक गुणों के लिए उत्तरदायी होते हैं। चूंकि ये जीन हमारे गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं, गुणसूत्रों के माध्यम से ही जीन पीढ़ी-दर-पीदी हस्तान्तरित होते हैं। इस प्रकार गुणसूत्रों में वे सब आवश्यक सूचनाएँ विहित होती हैं, जो कोशिका के कार्य करने एवं अगली पीदी में जनन के लिए आवश्यक होती है। इसलिए गुणसूत्रों को वंशागति का वाहक (vehicles of heredity) कहा जाता है।
गुणसूत्रों की संख्या (Number of Chromosomes)
प्रत्येक जाति के या जीनोम जीवधारियों की कोशिकाओं के केन्द्रकों में गुणसूत्रों की एक निश्चित संख्या होती है। प्रायः युग्मकों (gametes) में विभिन्न गुणसूत्रों का केवल एक प्रतिरूप होता है, जिसे अगुणित गुणसूत्र संख्या (haploid chromosome number) या जीनोम (genome) कहते हैं। एक ही प्रकार के दो गुणसूत्रों को समजात गुणसूत्र (homologous chromosome) कहते हैं तथा कोशिका की इस दशा को द्विगुणित (diploid) कहते हैं। इसे ‘2n’ या ‘2x’ से प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण के लिए मनुष्य की कायिक कोशिकाओं में 46 गुणसूत्र होते हैं। वास्तव में यह द्विगुणित ‘2n’ स्थिति है। इन गुणसूत्रों में से 23 गुणसूत्र पिता के शुक्राणु से आते हैं। जीवाणुओं में उपस्थित वृत्ताकार, द्विरज्जुकीय, हिस्टोन रहित, परन्तु अन्य क्षारीय प्रोटीन युक्त DNA को गुणसूत्र के समान माना गया है।
पौधों में न्यूनतम गुणसूत्र म्यूकर हीमेलीस (Mucor heimalis) कवक 2n=2 तथा अधिकतम ऑफियोग्लोसम (Ophioglossum) में 2n = 1262 ,जबकि जन्तुओं में न्यूनतम ऑर्फियोरटोका (Ophryortocha) में 2n = 4 तथा अधिकतम एलाकेन्था (Aulacantha) में 2n = 1600 पायी जाती हैं।
कुछ जीवों में गुणसूत्रों की संख्या
(Number of chromosomes in some organisms)
जीव गोलकृमि मच्छर मटर प्याज मक्का चावल मेंढक सूरजमुखी चूहा मनुष्य आलू कुत्ता कबूतर गोल्डफिश अमीबा |
प्रत्येक कोशिका में गुणसूत्र संख्या 2 6 14 16 20 24 26 34 42 46 48 78 80 100 250 |
गुणसूत्रों का परिमाण (Size of Chromosomes)
गुणसूत्रों का परिमाण प्रायः समसूत्री विभाजन की मध्यावस्था (metaphase) में मापा जाता है। कवकों एवं पक्षियों में यह सबसे छोटा (लगभग 0.25μ) तथा कुछ पौधों (जैसे-ट्रिलियम, Trillium) में यह सबसे लम्बा (लगभग 30μ) होता है। ड्रोसोफिला तथा मनुष्य में ये क्रमशः 3μ एवं 5μ लम्बे होते हैं।
उन जीवधारियों में, जिनमें लैंगिक भिन्नता पाई जाती हैं, कोई गुणसूत्र विशेष या गुणसूत्रों को कोई जोड़ा लिंग-निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन्हें X, Y, Z, आदि से प्रदर्शित करते हैं। अन्य गुणसूत्र, जो शरीर के कायिक लक्षणों को निर्धारित करते हैं, ऑटोसोम्स (autosomes) कहलाते हैं।
विशेष प्रकार के गुणसूत्र (Special Types of Chromosomes)
लैंपब्रश (Lampbrush) गुणसूत्र कशेरुकी (vertebrates) के अण्डक (oocyte) में पाए जाते हैं। ये केन्द्रक में डिप्लोटीन (diplotene) बनने के कारण जुड़े होते हैं। बहुपट्टीय (polytene) गुणसूत्र की खोज बालबियानी (Balbiani) ने विरोनोमस (Chironomus) के लारवा की लार प्रन्थियों (salivary glands) में की थी। यह गुणसूत्र झोसोफिला (Drosophila) की लार ग्रन्थि में सामान्यतया पाए जाते हैं। इन गुणसूत्रों में गहरे रंग वाले भागों को बेण्ड्स (bands) तथा हल्के रंग वाले भागों को इण्टरबेन्ड्स (interbands) कहते हैं।
गुणसूत्र प्रारूप (Karyotype)
प्रत्येक जाति के जीवधारियों में एक ही प्रकार के विशिष्ट गुणसूत्रों का समुच्चय (set) पाया जाता है। इन गुणसूत्रों के कुछ स्थाई लक्षण होते हैं, जिससे उस जाति विशेष की पहचान की जा सकती हैं। विशिष्ट लक्षणों के इस समूह को गुणसूत्र प्रारूप (karyotype) कहते हैं।
गुणसूत्र के प्रकार (Types of Chromosomes)
गुणसूत्र बिन्दु की उपस्थिति के आधार पर गुणसूत्र चार प्रकार के होते हैं
(a) अन्तःकेन्द्री (telocentric) में सेन्ट्रोमीयर गुणसूत्र के सिरे पर होता है।
(b) अग्रबिन्दुक (acrocentric) में सेन्ट्रोभीयर गुणसूत्र के किनारे के समीप होता है।
(c) उपमध्यकेन्द्री (submetacentric) में सेन्ट्रोमीयर मध्य भाग से थोड़ा
(d) मध्य केन्द्री (metacentric) में सेन्ट्रोमीयर मध्य में स्थित होता है।
गुणसूत्र का रासायनिक संघटन (Chemical Composition of Chromosomes)
DNA, RAN, हिस्टोन प्रोटीन तथा हिस्टोन रहित (non-histone) मोटीन, गुणसूत्रों के मुख्य अवगव होते हैं। DNA और हिस्टोन से बनी संरचना को न्यूक्लिओसोम कहलाती है। प्रत्येक न्यूक्लिओसोम में चार प्रकार की हिस्टोन (H2A, H2B, H3, H4) के दो-दो अणु तथा इनके चारों और DNA स्थित होता है। DNA (37%) गुणसूत्रों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अवयव होता है। DNA की मात्रा को पिकोग्राम (picogram, 10–12 ग्राम) में मापा जाता है। इसे pg से प्रदर्शित करते हैं।
आनुवंशिकता एवं विभिन्नताएँ (Heredity and Variations)
आनुवंशिकी के अन्तर्गत कतिपय कारकों का विशेष रूप से अध्ययन किया जाता है।
- प्रथम कारक आनुवंशिकता विभिन्नताएँ है। किसी जीव की आनुवंशिकी उनके जनकों (पूर्वजों या माता पिता) की जनन कोशिकाओं द्वारा प्राप्त रासायनिक सूचनाएँ होती हैं, जैसे-कोई प्राणी किस प्रकार परिवर्धित होगा, इसका निर्धारण उसकी आनुवंशिकता ही करेगी।
- दूसरा कारक विभेद है, जिसे हम किसी प्राणी तथा उसकी सन्तान में पा सकते हैं। प्रायः सभी जीव अपने माता पिता या कभी बाबा, दादी या उनसे पूर्व के लक्षण प्रदर्शित करते हैं ऐसा भी हो सकता है कि उसके कुछ लक्षण सर्वथा नवीन है। इस प्रकार के परिवर्तनों या विभेदों के अनेक कारण होते हैं।
- जीवों का परिवर्धन तथा उसके बाद का जीवन उनके परिवेश पर निर्भर करता है। प्राणियों के परिवेश अत्यन्त जटिल होते हैं। इसके अन्तर्गत आनुवंशिकता के कारण जीवों तथा उनके पूर्वजों (या सन्ततियों) में समानता तथा विभेदों, उनकी उत्पत्ति के कारणों और विकसित होने की संभावनाओं का अध्ययन किया जाता है।
- वंशागतिक व अवंशागतिक विभिन्नताएँ (heritable and non-heritable variations) कई बार विभिन्नताएँ वातावरण के कारकों के कारण सन्तानों में उत्पन्न हो जाती है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी जनन द्वारा संचरित नहीं होती। इन्हें अवंशागतिक विभिन्नताएँ कहते हैं। जैसे कि एक पहलवान की सुडौल मांसपेशियाँ उसकी सन्तानों में संचारित नह ती, एक प्रोफेसर, डॉक्टर या इन्जीनियर द्वारा प्राप्त विद्या उनकी सन्तानों में अपने आप नहीं पहुँच जाती। इसके विपरीत, अनेक विभिन्नताएँ जो पीड़ी दर पीड़ी पहुँचती रहती हैं।
गुणसूत्र द्वारा वंशागति का सिद्धान्त (Chromosomal Theory of Inheritance)
सटन एवं बोबेरी ने वर्ष 1902 में विचार रखा कि गुणसूत्र ही मेण्डल के कारकों के वाहक हैं। उनके द्वारा प्रतिपदित यह सिद्वान्त ही गुणसूत्र द्वारा वंशागति का सिद्धान्त कहलाता है