Economic Zoology

Economic Zoology

आर्थिक जन्तु विज्ञान

आर्थिक जन्तु विज्ञान के अन्तर्गत पशुपालन (डेयरी फार्मिंग), मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन, लाख एवं रेशम कीट पालन, एक्वाकल्चर, मोती पालन एवं मुर्गी पालन का अध्ययन किया जाता है।

कृषि विज्ञान की वह शाखा, जिसके अन्तर्गत पालतू पशुओं के भोजन, आवास एवं प्रजनन का अध्ययन किया जाता है, पशुपालन (animal husbandry) कहलाती है। जानवरों को मानव द्वारा अपने कार्य के लिए साधना, पालना तथा पालतू बनाना घरेलूकरण (domestication) कहलाता है। प्रथम पालतू पशु कुत्ता था।

सभी लाभदायक एवं पालतु पशु; जैसे-गाय, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़ा, सुअर, आदि पशुधन कहलाते हैं। दुग्ध उत्पादन हेतु डेयरी फार्मिंग में गाय, भैंस, बकरी (दुधारु.पशु) का पालन किया जाता है। भारी कार्य में प्रयोग किए जाने वाले पशुओं को बोझा ढोने वाले या भारकस पशु कहा जाता है; जैसे-घोड़ा, खच्चर,भैंसा, बैल, कुत्ता, बिल्ली एवं अन्य पालतू पशु सामान्य उपयोग पशु कहलाते हैं।

Fisheries Pisciculture (मत्स्य पालन)

मछली उपयोग में भारत का विश्व में सातवौं स्थान, जबकि मछली उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। मछलियाँ एक प्रोटीनयुक्त, अत्यन्त पौष्टिक तथा आसानी से प्राप्त किये जाने वाला भोजन का स्रोत है। अलवणजलीय मछलियों के पालन को मीठा जल मत्स्य पालन (inland fisheries) कहते हैं। एक्वाकल्चर (aquaculture) में जलीय प्राणियों के साथ उपयोगी पौधों का भी संवर्धन शामिल है।

समुद्री मत्स्य पालन (marine fisheries) में मुख्यता समुद्र, समुद्र तट तथा यूस्वरी (Eustary) से मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। मछलियों में प्राकृतिक जनन तथा उत्प्रेरित जनन पाया जाता है। निषेचित अण्डों को बीज कहते हैं, जिनसे प्रस्फुटित छोटी मछलियों अर्थात् फ्राई (try) प्राप्त होती हैं, जो बाद में मछली में रूपान्तरित हो जाती हैं। मछलियों से विटामिन-A एवं D युक्त तेल (वसा) , फिश मील (fish meal) तथा खाद प्राप्त होते हैं।

  1. भारत की मुख्य खाद्य मछलियाँ
    (Some Important Edible Fishes of India)

1. अलवणजलीय मछलियाँ (Freshwater Fishes)

कटला-कटला कटला (Catla-Catla catla)
रोहू-लेबियो रोहिता (Rohu Labeo rohita)

मागुर-क्लेरियस मैट्रेकस (Magur-Clarias batrachus)
सिंघाड़ा-मिस्टस सिंघाला (Singhara-Mystus singhala)
लाची या माली-वैलेगो अटू (Lachi or Malli-Wallago attu)

2. लवणजलीय मछलियाँ (Marinewater Fishes)

पॉम्फ्रेट-स्ट्रोमेटियस (Pomphret-Stromateus)
हिल्सा–हिल्सा इलिसा (Hilsa-Hilsa ilisha)
बॉम्बे डक-हारपोडॉन (Bombay duck-Harpodon)
सारडीन-सार्डीनेला (Sardine Sardinella)
साल्मॉन-एल्यूथीरोनीमा (Salmon Aluitheronema)
ईल-एंगुइला जातियाँ (Eel Anguille sp)

3. कुछ आयातित मछलियाँ (Some Ipmorted Fishes)

कार्प-साइप्रिनस कार्पिओ (Carp-Cyprinus carpio)
टेंच-टिका टिका (Tench-Tinca tinca)
गोरामी-ऑस्क्रोनीमस गोरामी (Goramy-Osphronemus goramy)
कुशिअन कार्प-कैरेसिअस कैरेसिअस (Carassius carassius)
तिलापी-तिलापिआ मोजम्बिका (Tilapi-Tilapia mussambica)

Poultry Farming (मुर्गीपालन )

मुर्गीपालन में मुर्गे, फीजेण्ट, बत्तख तथा टर्की पालन आते हैं। मुगों की भारतीय किस्में हैं-असील, बसरा, धैगस, ब्रह्मा, काराकन्त, आदि। यूरोपीय प्रजातियाँ हैं-प्लाइमाउथ रॉक (plymouth rock), सफेद लैंगहॉर्न (white leghon), रोडे आइलैण्ड रैड (thode island red) तथा न्यू हैम्पशायर (newhampshire)|

मुर्गीपालन द्वारा अण्डे एवं माँस का उत्पादन किया जाता है। वर्तमान में भारत प्रथम छः अण्डा उत्पादक देशों में सम्मिलित है। पॉल्ट्री रोगों के अन्तर्गत चेचक, रानीखेत, कोराइजा, एस्परजिलोसिस एवं अतिसार, आदि आते हैं।

Poultry Farming

 

Apiculture (मधुमक्खी पालन)

मधुमक्खियों के पालन तथा रख-रखाव की वैज्ञानिक विधि को एपीकल्चर कहते हैं। मधुमक्खियों का मुख्य उत्पाद शहद है, जबकि मोम सहउत्पाद (byproduct) है।

Apiculture

भारत में मधुमक्खी की चार जातियाँ हैं

(i) एपिस फ्लोरिया (Apis florea)-लिटिल
(ii) एपिस इण्डिका (Apis indica)-भारतीय
(iii) एपिस डॉरसेटा (Apis dorsata)-रॉक
(iv) एपिस मेलिफेरा (Apis mellifera)-यूरोपियन

मधुमक्खी के छत्ते में एक रानी मक्खी, अमिक तथा ड्रोन होते हैं, अर्थात् इनमें बहुरूपता (polymorphism) तथा कार्य विभाजन (division of labour) की क्षमता पाई जाती है।

रानी मक्खी अण्डे देती है, जबकि श्रमिक, भ्रूण की देखभाल, भोजन का संचय, छत्ता निर्माण एवं छत्ते की सफाई करते हैं। ड्रॉन का कार्य केवल अण्डों के निषेचन का होता है, उसके पश्चात् इसकी मृत्यु हो जाती है। रानी मक्खी कई वर्ष तक जीवित रहती है, जबकि श्रमिक केवल एक या दो महीने तक ही जीवित रहती हैं। सामान्यता एक कालोनी में एक रानी पाई जाती है और यह रॉयल जैली (royal jelly) से अपना पोषण प्राप्त करती है।

श्रमिक द्विगुणित बन्ध्य मादाएँ (sterile female) हैं और इनमें जननांगों का विकास नहीं होता, जबकि ड्रॉन (drone) अनिषेकजनन द्वारा उत्पन्न अगुणित नर होते हैं। श्रमिक मक्खियों में स्टिंग (sting) एवं मोम ग्रन्थियाँ (wax glands) पाई जाती हैं, जबकि नर में ये अनुपस्थित होती हैं।

शहद (pH 3-4) में जल (15-20%), फ्रक्टोज (40-45%), ग्लूकोज (32-37%), सुक्रोज (12%) तथा विटामिन, खनिज एवं प्रोटीन पाए जाते हैं।

प्रो के वॉन फ्रिश (Prof. KVon Fritsch) ने बताया, कि मधुमक्खियों में नाच (dancing) आपस में सूचना देने का एक माध्यम है।

Lac Culture(लाख कीट पालन )

लाख एक चिपचिपा रेसिन (resin) है, जो टेकारडिया लक्का (Tachardia lacca) नामक, लाख-कीट से प्राप्त होता है। यह कीट बबूल, बेर, पलाश, कुसुमी, पीपल, गूलर, शीशम, साल, आदि पर परजीवी है। पलास एवं बेर के पादप से प्राप्त लाख को कुसुमी लाख (kusumilac) कहते हैं।

लाख, लाख कीट के शरीर से स्रावित होता है, इसमें 68-90% रेजिन, 2-10% डाई, 6% मोम, 5-10% एल्यूमिनस पदार्थ तथा 3-7% खनिज होते हैं।

Lac Culture

भारत में बिहार, देश का सबसे अधिक लाख उत्पादक राज्य है, इसके बाद मध्य प्रदेश, पश्चिमी बंगाल तथा महाराष्ट्र हैं। भारत संसार की कुल उत्पादकता का लगभग 75% उत्पादन करता है।

लाख का प्रयोग छपाई उद्योग में, ग्रामोफोन के रिकार्ड तथा बिजली का सामान बनाने में, विद्युत धारा का विलगाव पदार्थ, वार्निश पोलिश में, चूड़ी उद्योग में, प्रसाधनों में तथा सील लगाने वाले पदार्थ के रूप में होता है।

सन् 1925 में राँची में नामकुम में भारतीय लाख अनुसन्धान केन्द्र (Indian Lac Research Institute)’ की स्थापना हुई थी।

Sericulture(रेशमकीट पालन )

रेशम प्राप्ति के लिए रेशम कीटों के पालन को रेशमकीट पालन या सेरीकल्चर कहते हैं। भारत का रेशम उत्पादन में विश्व में पाँचबा स्थान है।

भारत में रेशमकीट की चार जातियों पाई जाती हैं-

(i) बॉम्बिक्स मोराई या शहतूत का रेशमकीट (Bombyx mori), इससे मलबेरी रेशम (mulberry silk) प्राप्त होता है।
(ii) एन्थेरिया पैफिया (Antheria paphia) या टसर रेशमकीट, इससे टसर रेशम प्राप्त होता है।
(iii) फ्लोसामिया रिसिनी (Phlosamiaricini) या ऐरी रेशमकीट, इससे एरी (eri) रेशम प्राप्त होता है।
(iv) ऐन्धीरीया असामा (Antheraea assama) या भूगा रेशमकीट, इससे मूगा रेशम (muga silk) प्राप्त होता है।

रेशम का उत्पादन लारवा करता है। लारवा या कैटरपिलर (catterpillar) की लार ग्रन्थियों द्वारा एक द्रव का स्रावण होता है, जो स्पिनरेट (spinneret) द्वारा बाहर निकलता है। यह द्रव सूखकर, कड़ा होकर रेशम के धागे का निर्माण करता है। ये धागे कैटरपिलर के चारों ओर लिपट कर कोकून (cocoon) बनाते हैं। कोकून के भीतर कैटरपिलर प्यूपा (pupa) में बदल जाता है। प्यूपा को उबालकर मार देते हैं (स्टिफलिंग-stiffling) तथा रेशम प्राप्त कर लेते हैं। यदि प्यूपा वयस्क में बदल जाता है, तब यह कोकून को काटकर बाहर आ जाता है तथा रेशम खराब हो जाता है।

3 दिन में कोकून में 1000-1200 मी लम्बे धागे का निर्माण हो जाता है। 25000 कोकून से एक पौण्ड (454 ग्राम) रेशम प्राप्त किया जा सकता है।

Composition of Silk(रेशम का संघटन )

रेशम दो प्रकार की प्रोटीन से बना होता है
(i) फाइब्रोइन (Fibroin)-रेशम धागे का 75%
(ii) सेरिसिन (Sericin)-रेशम धागे का 27%

भारत में पहला रेशम अनुसन्धान केन्द्र पश्चिमी बंगाल में बरहमपुर में सन् (1943) में स्थापित हुआ था। कोकून से सिल्क प्राप्त करना पश्च कोकून क्रियाविधि (post cocoon processing) कहलाती है तथा मृत कोकून से घागा प्राप्त करना रिलिंग (reeling) कहलाता है। कायान्तरण के दौरान हिस्टोलाइसिस (histolysis) व हिस्टोजेनेसिस (histogenesis) होता है और प्यूपा वयस्क में बदल जाता है।

Pearl Culture(मोती पालन )

मोती एक जीव उत्पाद है तथा यह मोलस्का संघ के पर्ल ओस्टर (pearl oyster मस्सल) नामक जन्तु का सवित पदार्थ है। पर्ल ओस्टर (pearl oyster) का जन्तु वैज्ञानिक नाम पिंकटाडा बुल्गेरिस (Pinctada vulgaris) है, जब कोई बाहरी कण मेन्टल (mantle) के सम्पर्क में आता है, तो इसे एक सेक (sac) बनाकर घेर लेता है, इसके चारों ओर एपीथीलियम द्वारा अनेक संकेन्द्रित (concentric) परतों का निर्माण होता है, जिसके फलस्वरूप मोती का निर्माण होता है। रासायनिक प्रकृति के आधार पर मोती CaCO, तथा कोलकाइटिन का बना होता है।

कोकिची मिकीमोटो (Kokichi Mikimoto) को मोती उद्योग का पिता कहा जाता है। जापान का मोती उद्योग में विश्व में प्रथम स्थान है।

Pearl Culture

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!