Fate Map and Germ Layers

Fate Map and Germ Layers

 

नियति मानचित्र (Fate Map)

नियति मानचित्र के अन्तर्गत परिपक्व अण्डे (matured ova) अर्थात् प्रारम्भिक परिवर्धित भ्रूण (earty developing embryo) का अध्ययन किया जाता है, जो परिवर्धन के साथ-साथ विभिन्न संरचनाओं तथा क्षेत्रों के विशिष्ट भागों की कार्बनिक संरचना में परिवर्तन को दर्शाते हैं। अतः नियति चार्ट या मानचित्र द्वारा एक विकसित होते भ्रूण के परिवर्धित भाग का भविष्य दर्शाया प्रदर्शित किया जाता है। नियति मानचित्र भ्रूणीय परिवर्धन के दौरान निर्मित युग्मनज, ब्लास्टुला (कोरक) अवस्था, कन्दुकन अवस्था (गेस्टुलेसन) में की जाती है तथा इसकी सहायता से विकसित होते भ्रूण के विभिन्न क्षेत्रों का मानचित्रिकरण करके सम्भावित निर्मित अगों का पूर्व अनुमान लगाया जाता है।

 

fate map

 

नियति मानचित्र निर्माण की विधियाँ (Methods of Fate Mapping)

नियति मानचित्र के निर्माण की कुछ कृत्रिम विधियों निम्न हैं
(i) सर्वप्रथम वोग्ट (Vogt) ने वाइटल डाइ स्टेनिंग विधि का विकास किया। इस विधि के अन्तर्गत एम्फीबियन में ब्लास्टुला प्रावस्था का वाइटल डाइज द्वारा स्टैनिंग किया जाता है।
(ii) कार्बन पार्टिकल मार्किंग का आविष्कार स्पाट द्वारा किया गया। इस विधि में कार्बन कणों को चिन्हित करने में प्रयोग किया जाता है।
(iii) रेडियोएक्टिय नामांकन (radioactive labelling) इस आधुनिक विधि में रेडियोएक्टिव पदार्थों के उपयोग द्वारा भविष्य मानचित्र को दर्शाते हैं।

जनन स्तरों का निर्माण (Formation of Germ Layers)

कन्दुकन (gastrulation) प्रक्रिया के अन्तर्गत सम्पन्न परिवर्तन या संरचना विकास गति, योक प्लम अवस्था (yolk plug stage) में आद्यान्त्र गुहा (archenteron) का निर्माण होता है। इस गुहा के निर्माण तथा विस्तार के कारण ब्लास्टोसील गुहा का विलोपन होता है। यह कन्दुकन की पूर्णतया को दर्शाती है। प्राथमिक जनन स्तर का निर्माण गेस्टुला की निम्न प्रकार की कोशिकाओं से होता है 

 

formation of germ layer

1. बाह्यचर्म (Ectoderm)

बाह्यचर्म के निमार्ण में सक्रिय ध्रुव (anirnal pole) पर स्थित माइक्रोमियर्स सूक्ष्म तथा काले रंग की कोशिकाएँ भाग लेती हैं। ये कोशिकाएँ फैलकर बाह्यधर्म स्तर का
निर्माण करती हैं।

2. अन्तःचर्म (Endoderm)

आद्यान्त्र गुहा को घेरने वाले स्तर को अन्तःचर्म कहते हैं। इसका निर्माण प्रतिपृष्ठ तल पर उपस्थित मेगाभियर्स कोशिकाओं द्वारा होता है।आद्यान्त्र गुहा के निचले तल पर उपस्थित मीसेण्डोडर्मल तथा कोशिकाओं द्वारा होता है, आद्यान्त्र गुहा के निचले तल पर उपस्थित मीसेण्डोडर्मल तथा प्रिजम्टिव बाह्यचर्म कोशिकाएँ (मेगामियर्स कोशिकाओं के भाग) अन्तःधर्म का निर्माण करते हैं।

3. मध्यचर्म (Mesoderm)

अन्तःचर्म तथा बाह्मचर्म के मिलने वाले स्थान पर बाह्यचर्म की कोशिकाओं की मोटाई में वृद्धि के कारण एक आदि रेखा (primitive streak) की उत्पत्ति होती है. इस रेखा के दोनों ओर तीन विभाजन के फलस्वरूप एकस्तरीय मीसोडर्म निर्मित होती है। यह पुनः विभाजन से दो स्तरों का निर्माण करती है। मध्यधर्म के ये दो स्तर कायिक मध्यचर्म (somatic mesodem) तथा स्पलैंचिक मध्यचर्म (splanchnic mesoderm) कहलाते हैं। कायिक स्तर बाहरी होता है, जबकि स्पलैंचिक भीतरी स्तर होता है।

कशेरुकियों में प्राथमिक जनन स्तरों के भविष्य की एक तालिका नीचे दी गयी है।

कशेरुकियों में जनन स्तरों का भविष्य (Fate of germinal layers in vertebrates)

स्तर

भ्रूण वयस्क

एक्टोडर्म

कायिक एक्टोडर्म एपिडर्मिस, त्वचीय व्युत्पाद, घ्राण अंग, नेत्र का लैंस, आन्तरिक कर्ण, अग्र पिट्यूटरी, एवं मुख
तन्त्रिका शिखर क्लोमीय कंकाल, गैंग्लिया, संवेदी तन्त्रिकाएँ एवं एड्रीनल मेड्यूला
तन्त्रिका नाल मस्तिष्क, रीद-रज्जु, प्रेरक तन्त्रिकाएँ, रेटिना, दृष्टि तन्त्रिका एवं पश्च पिट्यूटरी

एण्डोडर्म

आर्केन्टेरॉन अग्न्यशय, श्वसन तन्त्र, मूत्राशय (असतर), थायरॉइड, पैराथायरॉइड, थाइमस, एवं मध्य कर्ण

मीसोडर्म

नोटोकॉर्ड, एपिमीयर, डर्मेटोम, स्क्लेरोटोम, मायोटोम, मीजोमीयर, हाइपोमीयर, सोमैटिक स्तर लघुकृत या विलोपन डर्मिस (अंश), कशेरुकदण्ड, कंकाल पेशियों, अनुबन्धी कंकाल,

उत्सर्जन तन्त्र, जनद-वाहिनियाँ एवं पैराइटल पेरिटोनियम

स्प्लैंक्निक स्तर विसरल पेरिटोनियम, मेसेन्टरीज, परिवहन तन्त्र, जनद एवं विसरल पेशियाँ
सीलोम देह-गुहाएँ

 

बाह्य या अतिरिक्त भ्रूण झिल्लियाँ

(Extra-embryonic Membranes)

पक्षी भूमि पर अण्डे देते हैं, सकोशी (cleidoic) अण्डों का कैल्शियम कार्बोनेट से बना कवच यान्त्रिक आघात एवं निर्जलीकरण जैसे खतरों से रक्षा करता है, जबकि विशेष रूप से विकसित गर्भ कलाएँ (झिल्लियाँ) भूण को पोषण श्वसन, उत्सर्जन जैसी जैविक क्रियाओं के अतिरिक्त सुरक्षा भी प्रदान करती हैं। गर्भ झिल्लियों भ्रूण बाह्य ब्लास्टोडर्म से विकसित होती हैं और वास्तविक भ्रूण के निर्माण में भाग नहीं लेती हैं, अतः इन्हें भ्रूण बाह्य कलाएँ (extra embryonic membranes) भी कहते हैं। भ्रूणकलाएँ पीतक कोष (yolk sac), उल्ब या एम्निऑन (amnion), जरायु या कोरियॉन (chorion) तथा अपरापोषिका (allantois) प्रकार की होती हैं।

पीतक कोष (Yolk Sac)

भ्रूण के भोजन का मुख्य स्रोत पीतक (yolk) है। यह एक कोषसमान वेण्टन कला (investing membrane) द्वारा घिरा होता है, जिसे पीतक कोष कहते हैं। पीतक कोष पीतक की रक्षा करता है, उसे सही स्थिति में बनाए रखता है, उसे पचाता और अवशोषित करता है। इस प्रकार यह भ्रूण के पोषण का प्राथमिक अंग होता है।

उल्ब और जरायु (Amnion and Chorion)

उल्ब और जरायु साथ-साथ विकसित होती है। आन्तरिक स्तर वास्तविक उल्ल (true amnion) कहलाता है तथा बाहा स्तर सीरमी कला (orous membrane) या जरायु कहलाता है। उल्ब एवं जरायु के बीच की भूण बाहा प्रगुहा कोरियॉनिक गुहा (chorionic cavity) कहलाती है। उल्ब भूण के चारों ओर एक जलाशय प्रदान करके उसके निर्जनल को दूर करता है एवं उल्य तरल (amniotic fluid) एक रखी गद्दी (protective cushion) की भाँति कार्य करती है। जरायु, अपरापोषिक के साथ श्वसन के लिए कार्य करती है।

अपरापोषिका (Allantois)

उलय एवं जरायु के बीच भ्रूण थाहा प्रगुहा में अपरापोषिका पाई जाती है। यह एक आशय के समान संरचना होती है, जो ऊष्मायन के लगभग चौथे दिन (28 कायखण्ड अवस्था) में प्रकट होती है। अपरापोषिका भूणीय श्वसन अंग (embryonic respiratory organ) ) तथा भूणीय मूत्राशय (ormbryonic urinary bladder) का कार्य करती है।

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