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Higher Non-Chordates
उच्य अकशेरुकी के अन्तर्गत संघ-ऐनेलिडा, आर्थोपोडा, मोलस्का, इकाइनोडर्मेटा, आदि का अध्ययन किया जाता है। संघ-ऐनेलिडा, आर्थोपोडा एवं मोलस्का को प्रोटोस्टोमिया के उप-प्रभाग-शाइजोसीलोमेट्स के अन्तर्गत रखा गया है।
संघ-इकाइनोडर्मेटा को ड्यूटेरोस्टोमिया के उप-प्रभाग-एन्टरोसीलोमेट्स में रखा गया है।
संघ-ऐनेलिडा (Phylum-Annelida)
लैमार्क (Lamarck) ने 1801 में ‘ऐनेलिडा’ शब्द का प्रयोग किया।
लक्षण (Characteristics)
इस संघ के सदस्यों के सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं
- ऐनेलिडा वास्तविक देहगुहा (true coelom) वाले जन्तु हैं।
- इस संघ के जन्तु त्रिस्तरीय (triploblastic) तथा द्विपार्श्व (bilateral) सममिति वाले होते हैं।
- इनमें अंगतन्त्र स्तर का शरीर संगठन पाया जाता है।
- इनके उत्सर्जी अंग नेफ्रिडिया (nephridia) कहलाते हैं। नेफ्रिडिया देह खण्डों में विन्यासित होते हैं।
- ये जन्तु प्रायः द्विलिंगी (bisexual), उभयलिंगी (hermaphrodite), द्विलिंगाश्रयी (monoecious) होते हैं। उदाहरण-जोंक, नेरीस।
- प्रचलन अंग शूक (setae) होते हैं, जो मुख्यतया काइटिन (chitin) के बने होते हैं।
- इनमें बन्द प्रकार का रुधिर परिसंचरण तन्त्र पाया जाता है। रुधिर में हीमोग्लोबिन नामक श्वसन वर्णक पाया जाता है, जो प्लाज्मा में घुला रहता है।
- इनमें श्वसन के लिए पार्श्वपाद (parapodia) होते हैं अथवा नम त्वचा द्वारा ही गैसों का आदान-प्रदान होता है।
- इनमें जनन अंगों का विकास देहगुहीय एपीथीलियम से होता है।
- कुछ ऐनेलिड्स में लारवा अवस्था अनुपस्थित होती है तथा कुछ में ट्रोकोफोर लारया (trochophore larva) पाया जाता है।
वर्गीकरण (Classification)
प्रचलन अंग शूक के आधार पर इस संघ को चार वर्गों में बाँटा गया है
(i)पोलीकीटा (Polychaeta) उदाहरण-नेरीस।
(ii) ओलिगोकीटा (Oligochaeta) उदाहरण-फेरेटिमा ।
(iii) हिरुडीनिया (Hirudinea) उदाहरण-हिरुडिनेरिया (Hirudinaria)|
(iv) आर्किएनेलिडा (Archiannelida)|
उदाहरण-पोलीगोर्डियस (Polygordius)|
कुछ ऐनेलिड्स तथा उनके प्रचलित नाम (Some annelids and their papular name) |
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सामान्य नाम नेरीस एफ्रोडाइट स्याइनोकोलस एरीनोकोला |
प्रचलित नाम रेतकृमि या सीपी कृमि या चीर कृमि सी माउस पीनट कृमि लग वार्म |
संघ-आर्थोपोडा (Phylum-Arthropoda)
वॉन सीबॉल्ड (Von Seibold) ने 1845 में आर्थोपोडा संघ का नाम दिया। आर्थोपोडा जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है। इसमें लगभग 9 लाख जातियों हैं। सम्पूर्ण जन्तु जगत में आर्थोपोडा संघ के जन्तुओं की सबसे अधिक संख्या कीट वर्ग (class-Insecta) में हैं।
संघ आर्थोपोडा के सदस्यों में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं।
- आर्थोपोडा संघ के जन्तुओं में काइटिन युक्त क्यूटिकल का बना बाहा कंकाल पाया जाता है।
- प्रत्येक खण्ड पर मूलतः एक जोड़ी पार्षीय सन्धित उपांग पाए जाते हैं।
- इनमें परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार का होता है और रुधिर से भरी एक हीमोसील गुहा (haemocoel cavity) पाई जाती है।
- इनमें रुधिर का रंग नीला होता है। यह नीला रंग रुधिर वर्णक हीमोसायनिन की उपस्थिति के कारण होता है, जिसमें कॉपर उपस्थित होता है।
- द्विपार्वीय (bilateral), त्रिस्तरीय (triploblastic) एवं यूसीलोमेट (eucoelomate) होते हैं।
- जलीय जन्तुओं में श्वसन क्लोम (gills) या बुक क्लोम (book gills) से होता है तथा स्थलीय जन्तुओं में श्वासनलियों (trachea) या बुक लंग्स (book lungs) से होता है।
- इनमें उत्सर्जी अंग ग्रीन ग्रन्थियाँ (greenglands) या मैल्पीघियन नलिकाएँ (Malpighian tubules) होती हैं। कुछ में कोक्सल ग्रन्थि (coxal glands) पाई जाती हैं।
- ये जन्तु एक लिंगी होते हैं और लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) प्रदर्शित करते हैं और इनमें निर्मोचन पाया जाता है। जीवन चक्र में कई लारवा अवस्थाएँ पाई जाती हैं; जैसे-नॉप्लियस (Nauplius), मैगालोपा (Megalopa), एलिमा (Alima), आदि।
- इनमें निषेचन आन्तरिक होता है।
- इनमें सरल नेत्र-ऑसिलाई (ocelli) प्रकाश ग्रहण करते हैं तथा संयुक्त नेत्र (compound eyes) दृष्टि के लिए होते हैं।
- कुछ आर्थोपोड्स विशेषकर कीट फीरोमोन (pheromones) सावित करते हैं।
- कुछ जन्तुओं में अनिषेकजनन (parthenogenesis) पाया जाता है; जैसे-मधुमक्खी, ततैया, आदि।
वर्गीकरण (Classification)
शरीर विभाजन तथा कुछ उपांगों की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर संघ-आर्थोपोडा को चार उपसंघों में विभाजित किया गया है
1. उप-संघ-ट्राइलोबाइटोमोरफा (Trilobitomorpha) – इसके अन्तर्गत मुख्यतया अधिकांश प्राचीन विलुप्त समुद्री आर्थोपोडा, जीवाश्म कैम्ब्रियन से परमियन कल्प की चटटानों से प्राप्त। उदाहरण-डेलमेनिटिस (Dalmanites), ट्राइआर्थस (Triarthrus)|
2. उप-संघ-केलिसिरैटा (Chelicerata) – इसके अन्तर्गत मुख्यतया स्थलीय, स्वतन्त्र जीवी एवं छोटे आकार के होते हैं यह निम्न वर्गों में विभक्त होता है
(i) मीरोस्टोमेटा (Merostomata) उदाहरण-लिम्यूलस ।
(ii) एरैक्नाइडा (Arachnida) उदाहरण-बिच्छू, मकड़ी।
3. उप-संघ-मैन्डीबुलेटा (Mandibulata)
यह निम्न वर्गों में विभक्त होता है
इसके अन्तर्गत मुख्यतया शरीर सिर एवं धड़ में या सिर, वक्ष एवं उदर भागों में विभेदित होता है।
(i) क्रस्टेशिया (Crustacea) उदाहरण-क्रेफिश, केकड़ा, झींगा।
(ii) इन्सेक्टा (Insecta) उदाहरण-कॉकरोच, मक्खी, मच्छर, टिड्डी।
(iii) डिप्लोपोडा (Diplopoda) उदाहरण-स्पाइरोबोलस (Spirobolus), जूलस (Julus)|
(iv) वर्ग-काइलोपोडा (Chilopoda) उदाहरण-स्कोलोपेण्ड्रा (Scolopendra) कानखजूरा या शतपाद (centipede)|
(v) वर्ग-सिम्फाइला (Symphyla) उदाहरण-स्कूटीजेरेला (Scutigerella)|
(vi) वर्ग-पॉरोपोडा (Pauropoda) उदाहरण-पौरोपस (Pauropus)|
4. उप-संघ-ओनाइकोफोरा (Onychophora)
इसके अन्तर्गत मुख्यतया स्थलीय चलने वाले कृमि होते हैं। उदाहरण-पेरिपेटस (Peripatus),
आर्थोपोड्स एवं उनके प्रचलित नाम
(Arthropods and their popular names)
सामान्य नाम एस्टॉकस लेपिस्मा बोम्बेक्स मोराई एडीज एजिटाई |
प्रचलित नाम क्रेफिश रजत मीन रेशम कीट टाइगर मच्छर |
संघ-मोलस्का (Phylum-Mollusca)
‘मोलस्का’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले जॉनस्टन (Jonston) ने 1650 में किया था। मोलस्क जन्तुओं के अध्ययन को मोलस्क विज्ञान (Malacology) कहते हैं। मोलस्का के कवच (shell) के अध्ययन को शंख विज्ञान या कॉन्कोलोजी (Conchology) कहते हैं।
लक्षण (Characteristics)
संघ-मोलस्का के जन्तुओं के सामान्य लक्षण निम्न हैं
- मोलस्का संघ के जन्तुओं में देहगुहा रुधिर प्रगुहा (haemocoel) होती है।
- इनमें द्विपार्श्व सममिति पाई जाती है।
- इनमें श्वसन वर्णक हीमोसायनिन होता है और श्वसन क्लोम या टिनिडिया या फेफड़ों द्वारा होता है।
- शरीर अखण्डित, त्रिस्तरीय (triploblastic) होता है तथा मुखगुहा में चबाने वाला अंग रेडुला (radula) होता है।
- इनमें उत्सर्जन एक जोड़ी वृक्क या मेटानेफ्रिडिया (metanephridia) के द्वारा होता है।
- इस संघ के जन्तुओं में वैलिजर (velliger), ग्लोकीडियम (glochidium) तथा ट्रोकोफॉर (trochophore) नामक लारवा अवस्थाएँ पाई जाती हैं।
- मोलरक में मेण्टल (mantle) के द्वारा एक कठोर कैल्केरस खोल सावित होता है।
- कुछ मोलस्कों में विमोटन या टॉरशन (torsion) होता है (शरीर 180° पर घूम जाता है)।
- मोलस्क में रुधिर परिवहन तन्त्र का कुछ भाग बन्द तथा कुछ खुला होता है।
- मोलस्क संघ के जन्तुओं में तन्त्रिका तन्त्र जोड़ों में लगी गुच्छिकाओं (ganglia), संयोजकों (connectives) तथा तन्त्रिकाओं (nerves) का बना होता है।
- संवेदी अंग नेत्र सन्तुलनपुटी (statocysts), स्पर्शक (tentacles) और कुछ में ऑस्फेडियम (osphradium) पाया जाता है।
- इनमें लिंग प्रायः पृथक होते हैं, परन्तु कुछ उभयलिंगी (hermaphrodite) भी होते हैं।
वर्गीकरण (Classification)
पाद, मेण्टल तथा कवच की रचना एवं स्थिति के आधार पर संघ-मोलस्का को छ: वर्गों में बाँटा गया है
(i) मोनोप्लेकोफोरा (Monoplacophora) उदाहरण-नियोप्लाइना (Neopilina)|
(ii) एम्फीन्यूरा (Amphineura) उदाहरण-काइटन (Chiton)।
(iii) स्कैफोपोडा(Scaphopoda) उदाहरण- डेण्टेलियम (Dentalium)|
(iv) गैस्ट्रोपोडा (Gastropoda) उदाहरण-पाइला (Pila)|
(v) पेलेसीपोडा (Pelecypoda) उदाहरण-यूनिओ (Unio)|
(vi) सिफेलोपोडा (Cephalopoda) उदाहरण-ऑक्टोपस (Octopus)|
पर्ल ओइस्टर (pearl oyster) पिंकटाडा ब्लगेरिस (Pinctada vulgaris) से मोती प्राप्त होता है।
जापान के कोकीची मिकीमोटो (Kokichi Mikimoto) को मोती उद्योग (pearlindustry) का जनक कहा जाता है।
मोलस्का एवं उनके प्रचलित नाम
(Molluscs and their popular names)
सामान्य नाम पिंक्टाडा काइटन सिमिया ऐप्लीसिया इओलिस लोलिगो डोरिस हेलिक्स टेरिडो सीपिया ऑक्टोपस |
प्रचलित नाम भारतीय मोती समुद्री चुहिया कौडीं समुद्री खरगोश समुद्री स्लग स्क्विड समुद्री नींबू उद्यान घोंघा जलयान कृमि कटल फिश डेविल फिश |
संघ-इकाइनोडर्मेटा (Phylum-Echinodermata)
‘इकाइनोडर्मेटा’ नाम जैकब क्लेन (Jacob Klein) ने सन् 1738 में दिया था।
ये जन्तु नितान्त रूप से समुद्री होते हैं।
लक्षण (Characteristics)
इकाइनोडर्मेट्स के जन्तुओं के सामान्य लक्षण निम्न हैं
- इकाइनोडर्म त्रिजनस्तरीय (triploblastic) जन्तु है, जिनमें पंच कोणीय अरीय सममिति होती है, परन्तु लारवा अवस्था में द्विपार्श्व सममिति (bilateral symmetry) होती है।
- इनमें अंग तन्त्र स्तर का संगठन पाया जाता है।
- इनमें शीर्ष निर्माण (cephalisation) अनुपस्थित होता है। इनमें गमन के लिए विशिष्ट पाद नाल (peculiar tube feet) विकसित होती है।
- आन्तरिक कंकाल कैल्केरियस प्लेट्स, जिन्हें अस्थिकाएँ (ossicles) कहते है, से मिलकर बना होता है, जो मध्य चर्म से उत्पन्न होती है।
देहगुहा निम्न दो तन्त्र बनाती हैं।
(i) जलीय संवहन तन्त्र (Water vascular system), जिसके द्वारा समुद्र का जल शरीर में प्रवेश करता है तथा नाल पाद (tube -feet) इससे सम्बन्धित रहते हैं, जो प्रचलन में सहायता करते हैं।
(ii) रुधिर तन्त्र (Blood vascular system), जिसमें रुधिर लसिका का परिवहन होता है। रुधिर परिवहन तन्त्र खुले प्रकार का होता है।
- इकाइनोडर्म में उत्सर्जन अमीबी कोशिकाओं (amoebocytes) द्वारा होता है।
- इकाइनोडर्म में श्वसन चर्म रन्नों (dermal branchiae), पेरिटोनियम गिल्स (peritonium gills) तथा पाद नलिकाओं के द्वारा होता है।
- इनके जीवन काल में प्रायः रोमाभयुक्त लारवा होता है; जैसे-द्विपिच्छक (bipinnaria), लघुबाहु (branchiolaria),
कर्णकाम (auricularia) डिम्भकों में कायान्तरण (metamorphosis) होता है। - स्वांगोच्छेदन (autotomy) की प्रक्रिया, अंतरंगक्षेपण (evisceration) (विसरा का त्याग) तथा पुनरुद्भवन (regeneration) इकाइनोडर्म का सामान्य लक्षण है।
- ये एक लिंगाश्रयी (dioecious) होते हैं, परन्तु कोई लैंगिक द्विसमरूपता नहीं होती और निषेचन बाह्य होता है|
वर्गीकरण (Classification)
संघ-इकाइनोडर्मेटा को पाँच वर्गों में बाँटा गया है
(i)एस्टेराइडिया (Asteroidea) उदाहरण-एट्रॉपेक्टेन ।
(ii) ऑफियूराइडिया (Ophioroidea)| उदाहरण-ऑफिओडर्मा (Ophioderms)|
(iii) इकाइनॉइडिया उदाहरण-इकाइनस या समुद्री अर्चिन।
(iv) हेलोथ्यूराइडिया उदाहरण-होलोथ्यूरिया या समुद्री खीरे।
(v) क्रिनॉडिया उदाहरण-एण्टीडॉन या पक्षतारा में विभाजित किया गया है।
इकाइनोडर्मेट्स तथा उनके प्रचलित नाम
सामान्य नाम एस्टीरिएस ऑफियूरा,एवं आफियोडर्मा एकाईनस क्लिपिऐस्टर इकाइनोकार्डियम कुकुमेरिया एवं होलोथूरिया |
प्रचलित नाम सितारा मछली (समुद्री तारा) ब्रिटिल स्टार या भंगुर तारे सी अर्चिन केक अर्चिन ह्दय अर्चिन समुद्री खीरे |