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Lower Non-Chordates (निम्न अकशेरुकी)
निम्न अकशेरुकी के अन्तर्गत संघ-मोटोजोआ, पोरीफेरा, सीलेन्ट्रेटा (निडेरिया), टीनोफोरा एवं हेल्मिन्थीज (एस्कैहेल्मिन्थीज एवं प्लैटीहेल्मिन्थीज), आदि का अध्ययन किया जाता है। व्हीटेकर ने सन् 1969 में जीव जगत को मोनेरा, प्रोटिस्टा, फन्जाई, प्लान्टी एवं एनीमेलिया पाँच जगत में वर्गीकृत किया। जगत मोनेरा एवं प्रोटिस्टा की स्थापना अर्नेस्ट हेकल द्वारा की गयी। जीव विज्ञान के जनक अरस्तु (384-322 बी सी) ने जन्तुओं को रुधिर के आधार पर ऐनेइमा (Anaima-रुधिर का रंग लाल नहीं होता) एवं इनैइमा (Enaima-लाल रुधिर दो समूहों में बाँटा)।
संघ-प्रोटोजोआः एककोशिकीय प्राणी
(Phylum-Protozoa: Unicellular Animals)
प्रोटोजोआ का प्रथम अध्ययन ल्यूवेनाँक (Leeuwenhoek; 1677) ने किया। गोल्डफस (Goldfuss; 1817) ने इस संघ को प्रोटोजोआ नाम दिया। इनके अध्ययन को प्रोटोजोआ विज्ञान (Protozoology) कहते हैं।
लक्षण(Characteristics)
- प्रोटोजोआ संघ के जन्तु जलीय तथा एकल (solitary) रूप में रहते हैं। इनका शरीर नग्न या महीन पेलिकल द्वारा ढका होता है, जबकि कुछ में कठोर खोल में बन्द होता है।
- इनमें गमन के लिए पादाम (pseudopodia) अमीबा में, कशामिकाएँ (flagella) यूग्लीना में तथा रोमाम (cilia) पैरामीशियम में पाए जाते हैं।
- इनमें पोषण प्राणिसम (holozoic), पादपसम (holophytic). मृतोपजीवी (saprophytic or saprozoic) या परजीवी (parasitic) होता है। प्राणिसम सदस्यों में पाचन खाधधानियों (lood vacuoles) में होता है।
- ये अन्तःकोशिकीय (intracellular) श्रम विभाजन (division of labour) प्रदर्शित करते हैं। इसीलिए प्रोटोजोआ को जीवद्रव्य के स्तर पर गठित (protoplasmic level of organisation) जन्तु कहते हैं।
- इनमें उत्सर्जन संकुचनशील रिक्तिका (contractilevacuole) द्वारा अथवा शारीरिक सतह से होता है।
- इनमें जनन अलैंगिक या लैंगिक होता है। जनन के लिए या प्रतिकूल वातावरणीय दशाओं में सुरक्षा के लिए परिकोष्ठन (encystment) की व्यापक क्षमता होती है।
उदाहरण-अमीबा (Amoeba), पैरामीशियम (Paramecium)|
वर्गीकरण (Classification)
गमनीय अंगों के आधार पर संघ-प्रोटोजोआ को चार वर्षों में विभाजित किया जाता है
(i) मैस्टिगोफोरा या फ्लैजिलेटा (Mastigophora or Flagellata)
उदाहरण-ट्रिपैनोसोमा (Trypanosoma), लीशमानिया (Leishmania) |
(ii) सारकोडिना (Sarcodina) उदाहरण-अमीबा (Amoeba), एण्टअमीबा (Entamoeba)
(iii) स्पोरोजोआ (Sporozoa) उदाहरण-प्लाज्मोडियम (Plasmodium)|
(iv) सिलिएटा (Ciliata) उदाहरण-पैरामीशियम (Paramecium),
वोरटिसेला (Verticella), ओपेलाइना (Opalina)|
संघ-पोरीफेरा : छिद्रधारी जन्तु
(Phylum-Porifera : Pore Bearer Animals)
‘पोरीफेरा’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले रॉबर्ट ग्राण्ट (Robert Grant) ने 1825 में किया था। संघ-पोरीफेरा में स्पंजों को रखा गया है। जोन इलिस (John Elis) ने 1765 में स्पंजों की जन्तु प्रवृत्ति के बारे में बताया। स्पंजों के अध्ययन को पैराजूलोजी (Parazoology) कहते हैं। स्पंजों का शरीर गठन कोशिकीय स्तर का होता है।
लक्षण(Characteristics)
- सभी स्पंज जलीय, अधिकांश समुद्री, बहुत कम स्वच्छ जलीय, एकल या सामूहिक होते हैं। इनका शरीर छिद्रयुक्त (porous) होता है। छिद्र दो प्रकार के होते है। जैस-ऑस्टिया (ostia) तथा ऑस्कुलम (osculum)
- स्पंजों के शरीर की मध्य शरीर गुहा, स्पंजगुहा (spongocoel) या पैरागैस्ट्रिकगुहा (paragastric cavity) कहलाती है।
- स्पंजों को वास्तविक बहुकोशिकीय प्राणी या भेटाजोआ नहीं माना जाता है, क्योंकि इनकी कोशिकाएँ ऊतकों का निर्माण नहीं करती है।
- जन्तुओं में नाल तन्त्र (canal system) केवल स्पंजों में पाया जाता है।
- कीप कोशिकाओं या अचानोसाइट्स (collar cells or choanocytes) की उपस्थिति स्पंजों का एक विशिष्ट गुण है।
- सभी स्पंजों में लैंगिक एवं अलैंगिक दोनों प्रकार का जनन होता है।
- स्पंजों का कंकाल केटिकाओं (spicules) या स्पंजिन तन्तुओं (spongin fibres) अथवा दोनों का बना होता है।
- स्पंज अमोनिया उत्सर्गी (ammonotelic) होते हैं।
- भ्रूणीय विकास में पैरेनकाइमुला या एम्फीब्लास्टुला (parenchymula or amphiblastula) अवस्था पाई जाती है।
वर्गीकरण (Classification)
कंकाल के आधार पर संघ-पोरीफेराको तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है
(i) कैल्केरिआ (Calcarea) उदाहरण-साइकॉन (Sycon) ल्यूकोसोलीनिया (Leucosolenia)|
(ii) हेक्सैक्टिनेलिङा (Hexactinelida) या हायलोस्पंजीआइ (Hyalospongiae), उदाहरण-यूप्लैक्टेला (Euplectella)|
(iii) डीमोस्पंजी (Dermospongiae) उदाहरण-यूस्पंजिया (Euspongia), स्पंजिला (Spongila)|
यूप्लैक्टेला (वीनस की फूलों की टोकरी), हायलोनीमा (काँच रस्सी रूपी स्पंज), यूस्पजिया (स्नान स्पंज),क्लाइओना (बंधक स्पेज), कैलाइना (मरमेड के दस्ताने) एवं हिप्पोल्पंजिया (अख स्पंज) कहलाते हैं।
संघ-निडेरिया (Phylum-Cnidaria)
ल्यूकार्ट (Leuckart) ने सन् 1847 में इसे सीलेण्ट्रेटा (Coelenterata) नाम दिया ‘निडेरिया’ शब्द (Gk. Kinde-सुई) से बना है, जिसका अर्थ दंश कोशिकाओं (cnidoblast cells) से है।
निदेरियन्स के अध्ययन को नीडोलॉजी (Cnidology) कहते हैं। निडेरिया में कोशिका ऊतकीय स्तर (cell tissue grade) का शरीर संगठन होता है।
लक्षण (Characteristics)
- सभी निडेरियन जलीय जन्तु हैं। कुछ को छोड़कर अधिकाँश समुद्री जल में रहते हैं, जैसे-हाइड्रा (Hydra) स्वच्छ जलीय है।
- ये बिजनस्तरीय (dploblastic) होते हैं। बाहरी स्तर एपीडर्मिस तथा भीतरी स्तर गैस्ट्रोडर्मिस के बीच मीसोग्लिया (mesoglaea) नामक जैली स्तर होता है।
- इनकी देहगुहा को सीलेन्ट्रॉन (coelenteron) या जठरवाही गुहा (gastrovascular cavity) कहते हैं।
- इनमें सुरक्षा के लिए बंशकोरक (cnidoblast) अथवा निमेटोसिस्ट (nermatocyst) पाए जाते है।
- इनमें जनन लैंगिक तथा अलैगिक दोनों प्रकार का होता है। अलैंगिक जनन मुकुलन (budding) द्वारा होता है।
- निडेरियन्स माँसाहारी होते हैं।
- ये अपने जीवन काल में दो अवस्थाओं में पाए जाते हैं। जैसे बेलनाकार पॉलिप तथा छतरीनुमा गेट्यूसा अवस्था।
- इनकी मेड्यूसा अवस्था में केवल लैगिक जनन होता है।
- उत्सर्जन अमोनिया उत्सर्गी प्रकार का होता है।
- इस संघ के लारया को नुता (planula) कहते है।
- इनके जीवन चक्र में पीदियों का एकान्तरण होता है.जिसे मेटाजेनेसिस (metagenesis) कहते हैं
वर्गीकरण (Classification)
इस संघ का वर्गीकरण पीलिप अवस्था या गेड्यूसा अवस्था की प्राथमिकता के आधार पर किया गया है।
(i) हाइड्रोजोआ (Hydrozoa) उदाहरण-हाइला (Hydra), ओबेलिया (Olbela)|
(ii) सायफोजोआ (Scyphozoa) उदाहरण-ओरेलिया (Aurelia), राइजोस्टोमा (Rhizostorma)||
(iii) एन्धोजोआ (Anthozoa) उदाहरण-गोरगोनिया (Gorgonia), मेट्रीडियम (Metridium)
ओबेलिया (समुद्री समूर), फाइसैलिया (पुर्तगाली सिपाही), ऑरेलिया (जली मीन), मैट्रीशियम (समुद्री एनीमोन), पैनादयुला (समुद्री कलम), गोरगोनिया (समुद्री पंखा), एल्सायोनियम (मृत मनुष्य की अंगुलियाँ), कोरेलियम (मूंगा), दयूबीफोरा (आर्गन पाइप प्रवाल), फन्जिया (मशरूम प्रवाल), आदि महत्वपूर्ण सीलेन्ट्रेट्स हैं।
संघ-टीनोफोरा (Phylum-Ctenophora)
टीनोफोरा समुद्री जीवों का एक छोटा, संघ है, जो सामान्यता या समुद्री अखरोट कहलाते हैं। यह संघ दो, ग्रीक शब्द टीनोस एवं फोरोस से मिलकर बना है, जहाँ टीनोस का अर्थ कॉम्ब तथा फोरोस का अर्थ रखने वाला होता है अर्थात् कॉम्ब जैसे संरचना युक्त टीनोफोरा के अन्तर्गत आते हैं। यह कॉम्ब संरचना जीवों के प्रचलन में सहायता करती है। पूर्व में इस संघ के सदस्यों को उप-संघ-निडेरिया (संघ-सीलेन्ट्रेटा) में स्थान दिया गया था। टीनोफोरा को एक अलग संघ के रूप में एससोल्ज (1829) स्वीकृत या मान्यता दी तथा हैटसचेक ने इसे अलग संघ में रखा। उदाहरण-प्लूरोकिया, हर्मीफोरा बिराई, वीनस गर्डला बाहरी त्वचा पर जुड़े सीलिया युक्त कॉम्ब प्लेट की आठ उर्ध्वाधर रेखाएँ होती हैं। इसलिए इन्हें कॉम्ब जैली कहा जाता है। एक जोड़ी स्पर्शक पाए जाते हैं। शरीर बाहरी त्वचा युक्त अगुहिक और ट्रिप्लोब्लास्टिक होता है। पाचन तन्त्र होलोजॉइक (भुख से) प्रकार का होता है। तन्त्रिका तन्त्र विसरित प्रकार (diffuse type) तथा संवेदी अंग स्टेटोसिस्ट होता है। सभी द्विलिंगी (bisexual) होते हैं. जनद पाचन द्वार के साथ-साथ विकसित होते हैं। अलैंगिक जनन होता है. लेकिन पीदी एकान्तरण (alternation of generation) नहीं पाया जाता है। पुनरुद्भवन एवं पीडोजेनेसिस सामान्यतया होता है।
संघ-प्लेटीहेल्मिन्थीज (Phylum-Platyhelminthes)
प्लेटीहेल्मिन्थीज शब्द का प्रयोग गैगेनवॉर (Gegenbaur) ने 1859 में किया था। फीताकृमियों के अध्ययन को हेल्मिन्योलॉजी (Helminthology) कहा जाता है।
लक्षण (Characteristics)
- प्लेटीहेल्मिन्थीज संघ के जीवों का शरीर चपटा और फीते जैसा होता है। इनके शरीर पर प्रचलन अंगों का अभाव होता है, परन्तु आसंजक अंग (attachment organ); जैसे-भूषक (suckers) या हुक (hooks) पाए
- ये अगुहिक (acobiomato), विपार्श्व सममित, त्रिस्तरीय जन्तु हैं। इनके शरीर की रचना ऊतक अंग तन्त्र स्तर (lissue-organ system level) की होती है।
- व्यसन अधिकतर अवायवीय (anaeroble) होता है और उत्सर्जन के लिए विशेष ज्याला कोशिकाएं (flame cells) होती है।
- इस संघ के अधिकांश सदस्य परजीवी होते हैं और इनके शरीर में देहगुहा का अभाव होता है। पैरेनकाइमा (parenchyma) नामक ढीला संयोजी ऊतक आंतरागों के बीच-बीच में फैला होता है और यह देहगुहा की कमी को पूरा करता है।
- इस संघ के सदस्यों में पहली बार शिरोमवन (cephalisation) का प्रारम्भ हुआ।
- ये जन्तु प्रायः उभयलिंगी (hermaphrodite) होते हैं और इनमें पुनरुद्भवन की अपार क्षमता होती है।
- आहारनाल भी प्रथम बार इसी संघ के सदस्यों में पायी गयी।
- केवल टीलेरिया वर्ग में ही ऐसे बहुकोशिकीय प्राणी हैं, जो द्विखण्डीय विभाजन द्वारा प्रजनन करते हैं।
वर्गीकरण (Classification)
इस संघ को शरीर के आकार तथा जीवन चक्र के आधार पर तीन वर्गों में बाँटा गया है
(i) टर्वीलेरिया (Turbellaria), उदाहरण-ड्यूजेसिया (Dugesia),
(ii) ट्रिमेटोडा (Trematoda), उदाहरण-फेशिओला (Fasciola),
(iii) सेस्टोडा (Cestoda), उदाहरण-टीनिया (Taenia)
फेफड़ा कृमि (पैरागोनीमस रिंगेरी),रुधिर कृमि (सिस्टोसोमा हीमेटोबियम), गोमांस फीताकृमि (टीनिया सैजिनेटा), कुत्ता फीताकृमि
(इकाइनोकोकस लोसस), आदि महत्त्वपूर्ण प्लैटीहेल्मिन्थीज से सम्बन्धित हैं।
संघ-ऐस्केहेल्मिन्थीज : गोलकृमि
(Phylum-Aschelminthes)
गैगेनवॉर (Gegenbaur) ने निमेटेथेहेल्मिन्थीज (Nemathelminthes) शब्द का प्रयोग 1859 में किया। “ऐस्केहेल्मिन्थीज’ (Aschelminthes) शब्द का प्रयोग ग्रोवन (Grobben) ने 1910 में किया। निमेटोड्स के अध्ययन को निमेटोलॉजी (Nermatology) कहते है।
लक्षण (Characteristics)
- इस संघ के सदस्य त्रिस्तरीय (triploblastic), द्विपार्श्व (bilateral) सममिति वाले तथा कूट देहगुहीय (pseudocoelomate) प्राणी हैं। इनमें बहुकेन्द्रकी (syncytial) एपीडर्मिस पाई जाती है।
- ये नलिका के भीतर नलिका (tube within tube) शरीर संरचना प्रस्तुत करते हैं।
- इनमें उत्सर्जन यूरिया-उत्सर्गी (ureotelic) प्रकार का होता है।
- ये प्रायः एकलिंगी (unisexual) होते हैं और इनमें प्रजनन केवल लैंगिक प्रकार का होता है। इनमें श्वसन अंग एवं परिवहन तन्त्र अनुपस्थित होते हैं।
वर्गीकरण (Classification)
संघ-निमेटहेल्मिन्थीज को इनके संवेदांग फेज्मिड के आधार पर दो वर्गों में बाँटा गया है
वर्ग-एफेज्मीडिया (Aphasmidia) पुच्छीय (caudal) संवेदांग तथा उत्सर्जी अंग अनुपस्थित होते हैं किन्तु अग्र भाग में भिन्न प्रकार के फेज्मिड पाए जाते हैं। उदाहरण-एनोप्लस (Enoplus), पैरामर्मिस (Paramermis)|
वर्ग-फेज्मीडिया (Phasmidia) पुच्छीय संवेदांग तथा उत्सर्जी अंग पाए जाते हैं।उदाहरण-ऐस्केरिस (Ascaris), ट्राइकाइनेला (Trichinella). रहेब्डीटिस (Rhabditis). ऑक्सीयूरिस (Oayuris). एन्साइलोस्टोमा (Ancylostoma), बूचेरेरिया (Wuchereria)|
कशाकृमि (ट्राइक्यूरिस) उदरान्त्रीय पीड़ा कारक, फाइलेरिया कृमि (एबेरेरिया बैंक्रोफ्टीफाइलेरिएसिस कारक, आँख कृमि (लोआ-लोआ) कैलाबार सूजन, हुक कृमि (एन्साइलोस्टोमा ड्यूओडिनेल) एसाइलोस्टोमिएसिस कारक, गिनी कृमि (ड्रैकनकुलस मेजिनेनसिस) अतिसार कारक, पिन कृमि (एण्टेरोबियस वर्मीकुलेरिस) चुन्ना कारक एवं ट्रिचिना कृमि (ट्रिथिनेला स्पाइरेलिस) ट्राइकिनोसिस का कारक है।