Muscles and Skeletal System

Muscles and Skeletal System

सजीवों में शरीर के किसी अंग को हिलाना-डुलाना (गति) तथा पोषणीय पूर्ति हेतु स्थान परिवर्तन (गमन) एक प्रमुख अभिलक्षण है। कशेरुकियों में कंकाल तन्त्र तथा कंकाल पेशियों संयुक्त रूप से विभिन्न प्रकार की गतियाँ (movements) तथा गमन या प्रचलन (locomotion) के लिए उत्तरदायी हैं।

पेशीय तन्त्र (Muscular System)

कशेरुकियों के शरीर में प्रचलन (locomotion) तथा गति एक विशेष ऊतक द्वारा सम्भव होती है, जिसे पेशी ऊतक (muscular tissue) कहते हैं। यह ऊतक कोशिका द्रव्य के दो मूल लक्षणों संकुचनशीलता (contractility) तथा चालकता (conductivity) का प्रदर्शन करता है। पेशियों शरीर के कुल भार का अधिकांश भाग बनाती हैं तथा इनकी उत्पत्ति भ्रूण के मीसोडर्म से होती है।

पेशीय ऊतक तीन प्रकार के होते है-

रेखित (striated),अरेखित(non-striated) एवं हृद् पेशियाँ (cardiac)|

 

human muscular system

1. रेखित पेशियाँ (Striated Muscles)

रेखित पेशियों, अस्थियों (bones) से कण्डराओं (tendons) के द्वारा जुड़ी रहती हैं तथा इच्छानुसार हिलाई जा सकती हैं, इसीलिए इन्हें ऐच्छिक (voluntary) या कंकालीय (skeletal) पेशियाँ भी कहते हैं। पेशी तन्तु के चारों ओर दृढ किन्तु झिल्ली सदृश सारकोलेमा (sarcolemma) तथा इससे घिरा तरल कोशिका द्रव्य सारकोप्लाज्म (sarcoplasm) होता है। यह बहुकेन्द्रकी (syncytium) होता है। ऐच्छिक पेशी तन्तु में अनेकों पतले व लम्बे पेशी तन्तुक (myofibrils) समानान्तर पड़े रहते हैं। प्रत्येक पेशीय तन्तुक पर क्रमशः गहरे A तथा हल्के पट्ट होते हैं। । पट्ट के मध्य में एक गहरी र रेखा उपस्थित होती है। दोz-डिस्कों के बीच का भाग सारकोमीयर कहलाता है। सारकोमीयर (sarcomere) पेशीय तन्तु की कार्यात्मक इकाई होती है। भायोफाइबिल्स (myofibrils) घने मायोसिन (myosin) तथा पतले एक्टिन (actin) तन्तुओं के बने होते हैं। रेखित पेशियों पाद (limbs), जिल्वा (tongue) एवं प्रासनली (pharynx), आदि में पाई जाती है।

2. अरेखित पेशियाँ (Non-striated Muscles)

अरेखित पेशियों या सरल पेशियों (smooth muscles) हमारी इच्छा के नियन्त्रण में नहीं होती हैं, इसीलिए ये अनैच्छिक पेशियाँ (involuntary muscles) कहलाती हैं। अरेखित पेशियाँ पतली, लम्बी, तर्कुरूप तथा तन्तुमय पेशी कोशिकाओं की बनी होती हैं। कोशिकाओं के बीच-बीच में कोशिकाविहीन किन्तु तन्तुमय संयोजी ऊतक पाया जाता है। प्रत्येक पेशी कोशिका में एक बड़ा केन्द्रक तथा सारकोप्लाज्म (sarcoplasm) सारकोलेमा (sarcolemma) से घिरे होते हैं। अरेखित पेशी के सारकोप्लाज्म में एक्टोमायोसिन (actomyocin) नामक प्रोटीन के बने पतले, लम्बे, समानान्तर पेशी तन्तुक या मायोफाइब्रिल्स भरे रहते हैं। कार्यात्मक रूप से अरेखित पेशियाँ एकल इकाई तथा बहु इकाई दो प्रकार की होती हैं। एकल इकाई सरल पेशियाँ (single unit smooth muscles), मूत्राशय (urinary bladder) तथा जठरान्त्र मार्ग (gastrointestinal tract) में उपस्थित होती हैं।

3. हृद् पेशियाँ (Cardiac Muscles)

हृद पेशियों अपवर्जनीय रूप से हृदय की दीवारों में पाई जाती हैं। इनमें अन्तर्विष्ट डिम्ब (intercalated discs) दो तन्तुओं के सन्धि स्थानों पर उपस्थित होती है। इद् पेशियाँ अपनी उत्तेजक लहर (excitation waves) उत्पन्न करती हैं, जिसे हृदय स्पन्दन (hearbeat) कहते हैं। अन्तर्विष्ट डिम्ब, उत्तेजक लहरों के लिए अभिवर्धक (booster) का कार्य करती हैं।

 

कंकाल तन्त्र (Skeletal System)

शरीर के बाहर या भीतर उपस्थित कोई भी कड़ा भाग कंकाल कहलाता है। शरीर की बाह्य सतह पर उपस्थित कंकाल को बाह्य कंकाल (exoskeleton) कहते हैं। बाल, नाखून, पंजे, खुर, सींग, आदि स्तनधारियों का बाह्य कंकाल बनाते हैं। ये किरेटिन प्रोटीन के अजीवित भाग होते हैं। अस्थि तथा उपास्थि (cartilage) अन्तःकंकाल (endoskeleton) बनाते हैं। अन्तः कंकाल जीवित भाग होता है, इसका विकास भ्रूणीय मीजोडर्म से होता है।

कंकाल का अध्ययन अस्थि विज्ञान (Osteology), जबकि उपास्थियों का अध्ययन उपास्थि विज्ञान (Chondrology) कहलाता है। वयस्क मनुष्य के अन्तःकंकाल में कुल 206 अस्थियों, जबकि नवजात शिशु में 300 अस्थियाँ होती हैं। फीमर सबसे लम्बी तथा स्टेपीज सबसे छोटी अस्थि होती है तथा टिबिया सबसे चमकीली अस्थि होती है। टिबिया-फियुला मेंढक की सबसे लम्बी अस्थि होती है। फनी अस्थि कुहनी के बीच के झुकाव में पाई जाने वाली अस्थि है। मछलियों में स्टर्नम अनुपस्थित होता है। कशेरुकियों में स्पॉन्डिलाइटिस शोथ पाया जाता है। सायनोवाइटिस एक शोथ (inflammation) है, जो सन्धियों की सूजन को उत्पन्न करता है।

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अस्थि एवं उपास्थि (Bone and Cartilage)

अस्थि सबसे कठोर ऊतक होता है। यह मैट्रिक्स ऑस्टियॉसाइट्स तथा पेरिऑस्टियम से मिलकर बनी होती है। अस्थि के मैट्रिक्स में लगभग 35% कार्बनिक पदार्थ (मुख्य अवयव ओसीन प्रोटीन, जो उबालने पर जिलेटिन में परिवर्तित हो जाती है) तथा 65% अकार्बनिक लवण होते हैं। अस्थि का अकार्बनिक भाग कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के फॉस्फेट युक्त हाइड्रोक्सीएपेटाइट नामक यौगिक होता है। अस्थि की कोशिकाएँ ओस्टियॉसाइट्स कहलाती हैं, इनमें परिपक्वन के बाद विभाजन नहीं होता है। पेरिऑस्टियम (periosteum), अस्थि के चारों ओर कोलेजन तन्तु तथा रुधिर वाहिनियों युक्त एक तन्तुमय संयोजी ऊतक से बना आवरण होता है। उपास्थि में तीन घटक मैट्रिक्स अर्थात कॉन्ड्रिन (chondrin), जो कॉन्ड्रोम्यूकोप्रोटीन (chondromucoprotein) का बना होता है, कॉन्ड्रोसाइट्स (chondrocytes) नामक कोशिकाएँ तथा पेरीकॉन्ड्रियम (perichondrium) नामक कला होती है। शिश्नास्थि (os-penis) कृन्तकों के शिश्न में पाई जाने वाली अस्थि फाइब्रो उपास्थि (fibro-cartilage) सबसे शक्तिशाली उपास्थि है।

अस्थियों के प्रकार (Types of Bones)

(i) उपास्थि अस्थियों (cartilaginous bones) भ्रूण की उपास्थि वयस्क में अस्थि द्वारा विस्थापित (replace) हो जाती है। शरीर की अधिकांश अस्थियाँ इसी प्रकार की होती है। उदाहरण-पाद अस्थियाँ।
(ii) कला अस्थियों (Investing bones) ये अस्थियाँ बिना उपास्थि के सीधे ही बनती हैं। उदाहरण अधिकंश कपाल तथा चेहरे की अस्थियाँ।
(iii) कैल्सीकृत अस्थियाँ (Calcified bones) प्रारम्भिक उपास्थि में कैल्शियम जम जाने से बनती है। उदाहरण-मेंढक की सुप्रास्कैपुला, प्यूबिक, आदि।
(iv) सीसेमॉइड अस्थियाँ (Sesamoid bones) कण्डरा (tendon) के अस्थिभवन से बनती है। उदाहरण-पटेला, पिसीफार्म।
(v) ठोस अस्थियाँ (compact bones) मैट्रिक्स संकेन्द्रित लैमेला के रूप में होती है तथा हैवर्सियन नलिकाएँ (Haversian canal) उपस्थित होता है। उदाहरण-अग्रबाहु व पश्चाद की लम्बी अस्थियाँ।
(vi) छिद्रित अस्थियाँ (spongy bones) हैवर्सियन तन्त्र तथा लैमेला नहीं पाई जाती। इनमें RBC एवं WBC का निर्माण होता है। उदाहरण -कशेरुकियों की अनियमित अस्थियों तथा लम्बी अरियों के
छोरा
(vi) डिपलोइक अस्थियाँ (diploic bones) छिद्रित अस्थि के ऊपर ठोस अस्थि की एक परत होती हैं। उदाहरण अधिकांश करोटि अस्थियों।

 

उपास्थियों के प्रकार (Types of Cartilages)

(i) काचाम या प्रभासी उपास्थि (Hyaline cartilage) यह उपास्थि लचीली होती है। र्स्टनम लैरिक्स का अधिकांश भाग ट्रैकिआ के छल्ले पसलियों के सिरे तथा हॉयड (hyoid) इसी उपास्थि के बने होते हैं।
(ii) श्वेत रेशेदार उपास्थि (White fibrous cartilage) इसमें कोलेजन तन्तुओं के लहरदार गुच्छे पाएँ जाते है, यह कशेरुकाओं के बीच की गद्दियों (intervertebral discs) तथा स्तनियों को श्रोणी मेखला (pelvic girdle) की प्यूबिक सिम्फाइसिस में पाई जाती है।

(iii) पीत लचीली उपास्थि (yellow elastic cartilage) इसमें पीले लचीले इलास्टिन रेशें पाये जाते हैं। यह कान के पिन्ना (pinna), एपीग्लॉटिस (epiglottis), नाक का सिरा (tip of nose) आदि में पायी जाती है।
(iv) कैल्सीभूत उपास्थि (calcified cartilage) इससे मैट्रिक्स में कैल्शियम लवण जैसे-कैल्शियम कार्बेनेट जमा हो जाते हैं। यह मेंढक की प्यूबिस (pubis) सुप्रास्कैला (suprascapula) में पायी जाती है। कंटिका उपकरण (Hyoid Apparatus) यह ‘U’ आकार की (U-shaped) बहुत गतिशील हड्डी होती है, जो हमारी गर्दन में मैन्डिबल तथा कन्ठ के बीच में जीभ के नीचे स्थित रहती है। यह अक्षीय कंकाल की एक अद्वितीय हड्डी होती है, क्योंकि यह किसी अन्य हड्डी से सन्धित नहीं होती केवल स्नायुओं (ligaments) तथा पेशियों द्वारा टेम्पोरल हड्डियां के स्टाइलॉएड प्रवधों से जुडी होती है। यह नीम को सहारा देती है हॉयड में एक क्षैतिज काय (body) होता है और इससे दोनों ओर निकले एक-एक जोडी शृंग (horns or comu) होते हैं, जिनमें एक बडा शृंग (greater cornu) तथा छोटा-सा शृंग (lesser cornu) होते है।

सन्धियाँ (Joints)

दो या अधिक अस्थियों के बीच जोड़ के स्थान को सन्धि (joint) कहते है। सन्धियों के अध्ययन को सन्धि विज्ञान या ऑर्थोलॉजी (Orthology) कहते हैं। सन्धियों तीन प्रकार की होती हैं

अचल सन्धियाँ (Immovable Joints)

इनमें साइनोवियल सम्पुट (synovial capsule) नहीं होता। करोटि की विभिन्न हड्डियों के बीच टढ़ी-मढ़ी सीवनों (sutures) जैसी सन्धियों होती हैं, जो हिल-डुल नहीं सकती स्फिनडायलेसिस (sphindylasis) अचल सन्धि में एक अस्थि की दरार में फिट हो जाती है। उदाहरण-वोमर (vomer) तथा एथमॉयड अस्थि (ethamoid bone) के बीच का अस्थि जोडा गोमफोसस (gomphoses) अचल सन्धि में एक अस्थि का उभार दूसरी अस्थि की गुहा में फिट हो जाता है। उदाहरण-ऊपरी तथा निचले जबडे में दाँतों की फिटिंग।

अल्प चल सन्धियाँ (Slightly Movable Joints)

इनमें साइनोवियल सम्पुट नहीं होता सन्धि स्थानों पर स्नायुयुक्त, तन्तुयुक्त अथवा उपास्थिमय ऊतक दोनों हड्डियों को जोड़ने का काम करता है। श्रोणि मेखला की प्यूबिस हड्डियों के बीच का जोड श्रोणि सिम्फाइसिस (pubic symphysis) भी स्नायु का बना ऐसा ही जोड़ होता है।

मानव के अन्तःकंकाल की अस्थियाँ
Bones of human endoskeleton

अस्थियाँ संख्या
1. अक्षीय कंकाल (Axial skeleton) कुल 80 अस्थियाँ होती हैं
करोटि (skull) 29 (कपाल 8, चेहरा 14, कठिका 01, कर्ण अस्थिकाएँ 06)
कशेरुकाएँ (vertebrae) 26 (सेक्रमी 01, अनुत्रिक 01, ग्रीवा
07, वक्षीय 12 तथा कटीय 05)
पसलियाँ (ribs) 24 (प्रत्येक तरफ 12)
उरोस्थि (sternum) 01
2. अनुबन्धीय कंकाल (Appendicular skeleton) कुल अस्थियाँ 126 होती हैं
(i) ऊपरी भाग (upper extremity) कुल अस्थियाँ 64 होती हैं
अंश मेखला (pectoral girdles)
ऊपरी भुजाएँ (upper arms)
निचली भुजाएँ (lower arms)
कलाईयाँ (wrists)
हथेली (palm)
अंगुलियाँ (fingers) )
04 (प्रत्येक अंश मेखला में 02)
02 (ह्यूमरस)
04 (रेडियो अल्ला)
16 (कार्पल्स)
10 (मेटाकार्पल्स)
28 (फेलेन्जेस)
(ii)निचला भाग (Lower extremity) कुल अस्थियाँ 62 होती हैं
श्रोणि मेखला (pelvic girdles)
अरू (thigh)
जानुफलक (knee cap)
अधःपाद (lower leg)
टखना (ankles)
तलवे (soles)
पादांगुलियाँ (toes)
02 (प्रत्येक प्रोणि मेखला में 01 अस्थि)
02 (फीमर)
02 (पटेला)
02 (टिबिया फिबुला)
14 (टारसल्स)
10 (मेटाटार्सल्स)
28 (फेलोन्जेस)

 

पूर्णरुपेण चल सन्धियाँ (Freely Movable Joints)

सन्धि पर दो अस्थियों के सिरे आसानी से हिल-डुल सकते हैं। दो अस्थियों की जुड़ने वाली सतहों पर काचाभ उपास्थि (hyaline cartilage) होती है, जिस पर साइनोवियल कला (synovial membrane) ढकी रहती है। पूरी सन्धि साइनोवियल सम्पुट (synovial capsule) से ढकी रहती है तथा अस्थियों के बीच घर्षण नहीं होता। सन्धियों में हड्डियों के परस्पर जुड़ने वाले स्थानों की आकृतियों के अनुसार पूर्णरुपेण चल सन्धियों पाँच प्रकार की होती हैं

(i) कन्दुक-खल्लिका सन्धियाँ (Ball and socket joints) ऐसी सन्धि में एक हड्डी का गेंद या कन्दुक (ball) जैसा गोल उभरा सिरा दूसरी के एक प्यालेनुमा गड्ढे या खल्लिका (cavity or socket) में फिट होता है। उभरे सिरे वाली हड्डी चारों ओर घूम सकती है। मेखलाओं के साथ पादों की सन्धियों ऐसी ही होती हैं।

(ii) कब्जा सन्धियाँ (Hinge joints) ऐसी सन्धि में एक हड्डी के सिरे का उभार दूसरी के गड्ढे में ऐसे फिट होता है, कि उभरे सिरे वाली हड्डी दरवाजे की भाँति केवल एक ही दिशा में पूरी मुड़ सकती है। घुटने तथा अंगुलियों के पोरों पर ऐसी सन्धियाँ होती हैं।

(iii) खूँटीदार सन्धियों (Pivotal joints) ऐसी सन्धि में एक हड्डी धुरी की भाँति स्थिर रहती है तथा दूसरी अपने गड्ढे द्वारा इसके ऊपर फिट होकर, इधर-उधर गोलाई में घूमती है। दूसरी कशेरुका के ओडोन्टॉएड प्रवर्ध या डेन्स (odontoid process or dens) के ऊपर करोटि को धारण किए हुए एटलस कशेरुका की ऐसी ही सन्धि होती है।

(iv) विसर्पी सन्धियों (Gliding joints) ऐसी सन्धि में सन्धि-स्थान पर हड्डियाँ एक-दूसरी पर आगे-पीछे या इधर-उधर फिसल सकती हैं। कशेरुकाओं के सन्धि प्रवर्षों (zygapophyses) के बीच, जंघा की टिबिया-फिबुला तथा गुल्फ (टखने) की हड्डियों के बीच तथा प्रबाहु की रेडियो अल्ला और कलाई की हड्डियों के बीच ऐसी ही सन्धियाँ होती हैं।

(v) सैडल सन्धियाँ (Saddle joints) यह कन्दुक-खल्लिका सन्धि जैसी होती है, लेकिन इसमें बाल (ball) और सॉकेट (socket) कम विकसित होते हैं। अतः बाल वाली हड्डी चारों ओर अच्छी तरह नहीं घूमती। अंगूठे की मेटाकार्पल और कार्पल के बीच ऐसी ही सन्धि होती है। इसी कारण अंगूठा अन्य अंगुलियों की अपेक्षा अधिक इधर-उधर घुमाया जा सकता है।

अस्थियों के कुछ विकार (Some Disorders of Bones)

1. अस्थि भंग (Fracture)

हड्डी टूट जाने को अस्थि भंग कहते हैं। अस्थि भंग निम्न प्रकार का होता है

(i) साधारण हड्डी टूटना (Simple fracture) अस्थि टूटकर दो भागों में बँट जाती है।

(ii) ग्रीन स्टिक फ्रैक्चर (Green stick fracture) अस्थि में एक दरार आ जाती है।

(iii) इवलशन फ्रैक्चर (Evulsion fracture) अस्थि का एक कोना टूट जाता है, किन्तु स्नायु की सहायता से अस्थि से ही जुड़ा रहता है।

(iv) संयुक्त हड्डी टूटना (Compound fracture) जब अस्थि कई टुकड़ों में टूट जाती है।

2. सन्धिभंग (Dislocation)

अस्थियाँ स्नायु टूटने से अपने स्थान से खिसक जाती हैं; जैसे-स्नायु टूट जाने से एक अस्थि का कन्दुक-खल्लिका से बाहर निकल सकती है।

3.स्लिप डिस्क (Slip Disc)

जब दो कशेरुकियों के बीच की अन्तरा-कशेरुक गद्दी खिसक जाती है या क्षतिग्रस्त हो जाती है।

4. सन्धि शोथ या गठिया (Arthritis)

सन्धि के सूज जाने व दर्द को गठियाँ कहते हैं। यह तीन प्रकार का होता है

(i) रूमेटी सन्धि शोथ (Rheumatoid arthritis) सायनोवियल कला में सूजन आ जाती है। ऐसा रूमेटी कारक (rheumatism factor), जो एक प्रकार का इम्यूनोग्लोबिन IgM है, की उपस्थिति के कारण होता है।

(ii) अस्थि सन्धि शोथ (Osteoarthritis) आर्टिकुलर उपास्थि का ह्रास हो जाता है। विशेष रूप से घुटना, हाथ, कोहनी तथा मेरूदण्ड प्रभावित होते हैं।

(iii) गाउटी सन्धि शोथ (Gouty arthritis) सन्धि के स्थान पर मोनोसोडियम लवणों का जमाव हो जाता है। जिस कारण गति करने पर पीड़ा होती है। गाउट (gout) या गाउटी सन्धि शोथ अधिक यूरिक अम्ल उत्पादन या इसका उचित उत्सर्जन न हो पाने के कारण होता है।
5. अस्थि सुषिरता (Osteoporosis)

थायरोकैल्सिटोनिन तथा पैराथॉर्मोन का उचित सन्तुलन न होने के कारण अस्थि सुषिरता होती है।
वृद्ध पुरुष तथा मासिक धर्म बन्द होने के पश्चात् स्त्रियाँ इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

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