Nervous System

Nervous System ( तन्त्रिका तन्त्र )

सभी बहुकोशिकीय (multicellular) जन्तुओं में ग्राही अंगों (receptor organs) द्वारा ग्रहण किये गए उद्दीपनों का अनुभव करने, उन्हें शरीर के विभिन्न भागों में संचारित करने तथा कार्यकर (effectors) अंगों द्वारा प्रतिक्रियाओं को कार्यान्वित करने वाले तन्त्र को तन्त्रिका तन्त्र कहते हैं।

तान्त्रिकाएँ (Nerves) 

मानव शरीर में जाल के समान फैली अनेक तन्त्रिकाएँ तन्त्रिका तन्तु (nerve fibres) तथा तन्त्रिका कोशिकाओं (nerve cells or neurons) की बनी होती हैं। तन्त्रिका कोशिकाओं (neurons) से बने ऊतकों के माध्यम से शारीर की विभिन्न क्रियाओं का नियन्त्रण करता है। तन्त्रिका कोशिकाएं क्रियात्मक रूप से निम्न प्रकार की होती हैं
(i) चालक (Motor) केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र से प्रभावित अंग तक सूचना पहुँचाती है।
(ii) संवेदी (Sensory) संवेदी अंगों से केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र तक सूचना पहुँचाती है।
(iii) सहचारी या समायोजक (Associatory) ये मस्तिष्क या स्पाइनल कॉर्ड के अन्दर स्थित होती हैं और अभिवाही या संवेदी (afferent) तथा अपवाही या प्रेरक (efferent) न्यूरॉन को एक-दूसरे से जोड़ती हैं। रचना के आधार पर न्यूरोन बहुध्रुवीय (multipolar) अर्थात् एक एक्सॉन व कई डेन्ड्राइट युक्त, विभुवीय (bipolar) अर्थात् एक एक्सॉन व एक डेन्ड्राइट युक्त, एक-भुवीय (unipolar) अर्थात् केवल एक एक्सॉन युक्त तथा आधुवीय (apolar) जैसे सीलेन्ट्रेटा संघ के जन्तुओं के तन्त्रिका जाल में होते है।

तन्त्रिका कोशिका के भाग (Parts of Nerve Cells)

तन्त्रिका कोशिका में निम्न माग होते हैं
(i) डेन्ड्राइट्स (Dendites) ये कोशिकाकाय से निकलने वाले जीवद्रव्यी प्रवर्ध होते हैं।
(ii) कोशिकाकाय (Cell body) यह साइटॉन या सोमा भी कहलाती है। यह तन्त्रिका का मुखा भाग होती है, जिसमें केन्द्रक एवं अन्य अंगक पाए जाते है।
(iii) एक्सॉन (Axon) कोशिकाकाय से निकलने वाली पागेनुमा संरक्षना, जो न्यूरोलेमा द्वारा सुरक्षित रहती है।

सिनैप्सिस (Synapsis) सिनप्सिस एक तन्त्रिका कोशिका के एक्सॉन से दूसरी तन्त्रिका कोशिका के एक्सॉन के मध्य संयोजन (junction) है। विद्युतरोधी तन्त्रिकाएँ चारों ओर से माइलिन आच्छद से ढकी होती है। तन्त्रिका कोशिका में कुछ स्थानों पर विद्युतरोधन नहीं होता और ये स्थान रेनवियर के नोड (node of Ranvier) कहलाते हैं।

मानव तन्त्रिका तन्त्र (Human Nervous System)

‘मानव में तन्त्रिका तन्त्र केन्द्रीय, परिधीय एवं स्वायत्त प्रकार का होता है।

केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (Central Nervous System)

यह मस्तिष्क एवं मेरुदण्ड (spinal cord) द्वारा बना होता है। मेरुदण्ड, धूसर द्रव्य (grey matter) एवं श्वेत द्रव्य (white matter) का बना होता है। मस्तिष्क, खोपड़ी के क्रेनियम (cranium) में स्थित होता है। मेंढक में मस्तिष्क एवं मेरुदण्ड दो मीनिंग्स (meningis) द्वारा घिरे होते हैं, जबकि स्तनियों में तीन मीनिंग्स (meningis) द्वारा घिरे रहते हैं। मस्तिष्क एवं मेरुदण्ड के अन्दर तथा चारों ओर सेरीब्रोस्पाइनल द्रव (cerebrospinal fluid) पाया जाता है। मीनिजाइटिस (meningitis) रोग में मीनिंग्स (meningis) जीवाणुओं द्वारा संक्रमित हो जाती है, जिसके फलस्वरूप उल्टी एवं सरदर्द, आदि होने लगता है।

मानव मस्तिक (Human Brain)

यह अग्र मस्तिष्क (forebrain), मध्य मस्तिष्क (midbrain), तथा पश्च मस्तिष्क (hindbrain) में विभक्त किया जाता है।

  • घ्राण पिण्ड (olfactory lobes) छोटे आकार की एक जोड़ी संरचनाएँ हैं, जो प्रमस्तिष्क द्वारा घिरी होती हैं। ये खोपड़ी के केन्द्र में पाई जाती है।
  • प्रमस्तिष्क (cerebrum) मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है, जो प्रमस्तिष्क अर्धगोलार्थो (cerebral hemispheres) द्वारा घिरा होता है। प्रमस्तिष्क की छत सेरेब्रल कॉर्टेक्स (cerebral cortex) होती है। दो प्रमस्तिष्क गोलार्ध कॉर्पस कैलोसम (corpus callosum) द्वारा जुड़े रहते हैं। प्रमस्तिष्क में सचेतना और सूचनाओं का संग्रहण होता है।
  • थैलेमस (thalamus), संवेदी अंगों; जैसे-आँख, कान एवं त्वचा, आदि से आने वाली संवेदी तरंगों (sensory impulses) को जोड़ता है। थैलेमस, दर्द, ताप एवं दाब से सम्बन्धित होता है।
  • हाइपोथैलेमस (hypothalamus), भाषण, शरीर सन्तुलन, लिंग व्यवहार, निद्रा, तनाव तथा पिट्यूटरी ग्रन्थि के हॉर्मोन के नियन्त्रण से सम्बन्धित है।
  • अनुमस्तिष्क (cerebellum) सिर के पीछे की ओर आधार भाग में होता है। अनुमस्तिष्क (cerebellum) में शारीरिक सन्तुलन, पेशीय टोन का केन्द्र होता है।
  • मेड्यूला ऑब्लोंगेटा (Medulla oblongata), मस्तिष्क एवं मेरुदण्ड को जोड़ने वाला भाग है। यह हृदय स्पन्दन, रुधिर नलिकाओं, श्वासोच्छ्वास, लार स्राव और बहुत-सी प्रत्यावर्ती एवं अनैच्छिक गतियों को नियन्त्रित करता है।

 

मेरुदण्ड (Spinal Cord)

यह लम्बी, रस्सीनुमा संरचना है, जो पीठ पर मध्य लम्बवत् स्थित होती है और अस्थिमय कशेरुक दण्ड द्वारा सुरक्षित रहती है।
मेरुदण्ड प्रतिवर्ती क्रिया (reflex action) का केन्द्र है और यह मस्तिष्क व मेरु तन्त्रिकाओं (spinal nerves) के बीच सेतु का कार्य करती है। मेरुदण्ड में तन्त्रिका पथ दो प्रकार के होते हैं
(i)आरोही पथ (Ascendingpath) यह संवेदी पथ है तथा परिधीय अंगों से मस्तिष्क की ओर तन्त्रिका आवेग (nerve impulse) का संवहन करता है।
(ii) अवरोही पथ (Descending path) यह चालक (motor) पथ है तथा पेशियों को मस्तिष्क से तन्त्रिका आवेग का संवहन करता है मार्शलहाल में प्रतिवर्ती क्रियाओं का आविष्कार किया। प्रतिवर्ती क्रियाओं के अन्तर्गत आने वाले तन्त्रिका तत्व एक चाप के समान परिपथ का अनुसरण करते हैं, जिसे प्रतिवर्ती चाप (reflex arc) कहते हैं। यह केन्द्रीय तन्त्रिका की आधारीय कार्यकारी इकाई है। प्रतिवर्ती क्रियाएँ अप्रतिबन्धित एवं प्रतिबन्धित प्रकार की होती है।

परिधीय तन्त्रिका तन्त्र (Peripheral Nervous System)

यह 12 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाओं (cranial nerves) तथा 31 जोड़ी मेरु तन्त्रिकाओं (spinal nerves) का बना होता है। कपाल तन्त्रिकाएँ, मस्तिष्क से तथा मेरु तन्त्रिकाएँ, मेरुदण्ड से उत्पन्न होती हैं।

मनुष्य में 31 जोड़ी मेरु तन्त्रिकाएँ निम्न प्रकार से होती हैं
(i) ग्रीवा तन्त्रिकाएँ (cervical)-8 जोड़ी
(ii) वक्षीय तन्त्रिकाएँ (thoracic)-12 जोड़ी
(iii) लुम्बर तन्त्रिकाएँ (lumber)-5 जोड़ी
(iv) सेक्रल तन्त्रिकाएँ (sacral)-5 जोड़ी
(v) कॉक्सीजियल तन्त्रिकाएँ (coccygeal)-1 जोड़ी

मछलियों (fishes) एवं उभयचरों (amphibians) में 10 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाएँ होती हैं। खरगोश में 12 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाएँ तथा 37 जोड़ी मेरु तन्त्रिकाएँ पाई जाती हैं। पहली 10 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाएँ मेंढक एवं खरगोश में समान होती हैं।

मनुष्य की कपाल तन्त्रिका (Human cranial nerves)

कपाल तन्त्रिका प्रकृति या प्रकाय वितरण कार्य
घ्राण तन्त्रिका संवेदी नाक गन्ध
दृक तन्त्रिका संवेदी आँख की रेटिना दृश्य
नेत्र प्रेरक तन्त्रिका चालक नेत्र गोलक की चार पेशियों में नेत्र गति
चक्रक तन्त्रिका चालक नेत्र गोलक की उत्तर-तिरछी पेशी में नेत्र गति
त्रक तन्त्रिका (सबसे बडी) मिश्रित चेहरा और दाँत संवेदना
अपचालिनी तन्त्रिका चालक पश्च रेक्टस पेशी नेत्र गति
आनन तन्त्रिका मिश्रित गर्दन, कर्ण, जीभ, एवं निचला जबड़ा लार स्रावण और स्वाद
श्रवण तन्त्रिका संवेदी अन्तःकर्ण सन्तुलन और सुनना
जिव्हा ग्रसनी मिश्रित जीभ एवं ग्रसनी लार का स्रावण और स्वाद के प्रति संवेदना
वेगस तन्त्रिका मिश्रित आमाशय, फेफड़े, हृदय, आदि आँतरांगों की क्रियाओं का नियन्त्रण
स्पाइनल एसेसरी चालक गर्दन आँतरांगों की प्रतिक्रिया
हाइपोग्लोसल चालक गर्दन एवं जीभ जीभ की गति

स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र (Autonomous Nervous System)

इसकी खोज लेंगले (Langley) ने की थी। यह पूर्णतया चालक (imotor) तथा नियन्त्रण रहित होता है। स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र दो भागों में विभक्त होता है
(i) अनुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र (sympathetic nervous system)
(ii) परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र (parasympathetic nervous system)

अनुकम्पी तथा परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र एक-दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं तथा शरीर की सभी क्रियाओं की गतियों पर उचित नियन्त्रण रखते हैं।

संयोजन या सिनैप्स (Synapse)

एक तन्त्रिका तन्तु का एक्सॉन (axon) जहाँ दूसरे तन्त्रिका तन्तु के डेन्ड्राइट (dendrite) पर समाप्त होता है, उसे संयोजन या सिनैप्स (synapse) कहते हैं। सिनैप्स पर एक्सॉन तथा डेन्ड्राइट एक-दूसरे को स्पर्श नहीं करते, बल्कि उनके बीच का स्थान एक पतले द्रव से भरा स्थान होता है, जिसे सिनैप्टिक दरार (synaptic cleft) कहते हैं।

एक्सॉन के अन्तिम सिरे पर सिनैप्टिक आशय (synaptic vesicles) या अन्तस्य बटन (terminal button) होती है, जिनसे न्यूरोट्रान्समीटर (neurotransmitter), एड्रीनेलिन (adrenaline) तथा एसीटिलकोलीन (acetylcholine) निकलते हैं।

सिनैप्स दो प्रकार के होते हैं

(i) विद्युतीय सिनैप्स (Electrical synapse) विद्युतीय सिनैप्स में दो न्यूरॉन के बीच 0.2 नैनोमीटर की सिनैप्टिक दरार (synaptic cleft) पाई जाती है। इनमें क्रिया विभव (action potential) दूसरे न्यूरॉन पर सीधा ही संचारित हो जाता है।

(ii) रासायनिक सिनेप्स (Chemical synapse) अधिकांश सिनैप्स इसी प्रकार के होते हैं। रासायनिक सिनैप्स में क्रिया विभव के संचरण (transmission) के लिए तन्त्रिका संचारी या न्यूरोट्रान्समीटर होते हैं। तन्त्रिका आवेग (nerves impulse) का रासायनिक संचरण एक तन्त्रिका कोशिका से दूसरे तन्त्रिका कोशिका में या तन्त्रिका कोशिका से पेशी कोशिका में एसीटिलकोलीन द्वारा होता है। ग्लाइसीन तथा गामा (γ) अभीनो ब्यूटेरिक अम्ल (GABA) आवेग अवरोधी (impulse inhibitory) पदार्थ होते हैं।

तन्त्रिका आवेग का संचरण (Conduction of Nerve Impulse)

यह एक न्यूरॉन (neuron) के एक्सॉन (axon) के अन्त से दूसरे न्यूरॉन के डेन्ड्राइट (dendrite) पर होता है। यह केवल एक ही दिशा में (unidirectional) होता है।

यह एक विद्युत रासायनिक प्रक्रिया है। विश्रामावस्था में तन्त्रिका कोशिका के कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में K+ की सान्द्रता अधिक होती है तथा कोशिका के बाहर Na+ की सान्द्रता अधिक होती है, जिसके कारण कोशिका कला के भीतर -80mv का विद्युत विभव (electrical potential) होता है।

यह सुप्त कला अवस्था (polarised state) कहलाती है। तन्त्रिका कोशिका की कला में विद्युत विभवान्तर (electrical potential difference) होता है, जिसे कला विभव (membrane potential) कहते हैं। न्यूरॉन की प्लाज्मा कला में आयन चैनल (ion channel) उपस्थित होते हैं। ये केवल एक ही प्रकार के आयन के लिए पारगम्य होते हैं, जैसे-Na+ या K+ या Ca²+ , आदि। तन्त्रिका कोशिका घुवित अवस्था (polarised state) बनाये रखने के लिए कोशिका कला में सोडियम-पोटैशियम पम्प होता है। इसके द्वारा कोशिकाद्रव्य से तीन सोडियम आयन बाहर निकाले जाते हैं तथा बाहर से दो पोटैशियम आयन कोशिकाद्रव्य में प्रवेश करते हैं।

जब कोशिका को प्रभाव सीमा उद्दीपन (threshold stimulus) दिया जाता है, तब कोशिका कला की पारगम्यता परिवर्तित हो जाती है। एक्सोलेमा (axolema) की पारगम्यता सोडियम के लिए बढ़ जाती है, जिस कारण Na+ कोशिका के भीतर प्रवेश करने लगता है, जिससे विभव बदलकर + 30mV उच्च विभव (spike potential) हो जाता है, यह केवल सेकण्ड के कुछ भाग के लिए ही होता है।

अब कोशिका कला की पारगम्यता सोडियम के लिए कम होकर पोटैशियम के लिए बढ़ने लगती है। उच्च विभव कम होने लगता है तथा फिर यह + 20 mv का क्रियात्मक विभव (action potential) हो जाता है। कला अब विधुवित (depolarised) हो जाती है।

नॉन-मेड्यूलेटेड तन्तु (non-medullated fibre) में ये आयनिक परिवर्तन पूरे तन्त्रिका तन्तु में दोहराए जाते हैं। मेड्यूलेटेड तन्तुओं में क्रियात्मक विभव रेनवियर की गाँठ (node of Ranvier) द्वारा एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु पर संचरित होता है, इसे साल्टेटरी संचरण (saltatoryconduction) कहते हैं।

तन्त्रिका आवेग का प्रसारण (Transmission of Impulse)

तन्त्रिका आवेग का प्रसारण एक न्यूरॉन के एक्सॉन से दूसरे न्यूरॉन के डेण्ड्रान पर सिनैप्स द्वारा होता है।

जब तन्त्रिका आवेग टीलोडेण्ड्रिया (telodendria) पर पहुँचता है, तो सिनैष्टिक दरार या विदर (synaptic cleft) के ऊतक द्रव से Ca2+ टीलोडेण्ड्रिया में प्रवेश कर जाते हैं और सिनैप्टिक घुन्डियाँ (synaptic button) सिनैप्स में न्यूरोट्रान्समीटर (neurotransmitter) मुक्त कर देती है। न्यूरोट्रान्समीटर तन्त्रिका आवेग को अगले न्यूरॉन में प्रसारित कर देते हैं। एन्जाइम एसीटिलकोलीनेस्टीरेस (acetylcholinesterase) सिनैप्टिक विदर (synaptic cleft) पर एसीटिलकोलीन का विघटन कर देता है। सिनैप्स (synapse) पर एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन में तन्त्रिका आवेग के जाने में लगे समय को सिनैप्टिक देरी (synaptic delay) कहते हैं।

इलेक्ट्रोएन्सिफेलोग्राम
(Electroencephalogram-EEG)

EEG मस्तिष्क के विभिन्न भागों की विद्युतीय सक्रियता (electrical activity) की रिकॉर्डिंग है। इसमें चार तरंग (waves) होती हैं

(i) एल्फा तरंगें (Alpha waves) ये मस्तिष्क को विश्राम दर्शाती है। इनकी आवृत्ति 10-12 चक्र सेकण्ड होती है।
(ii) बीटा तरंगें (Beta waves) ये तनाव दर्शाती है। इनकी आवृत्ति (frequency) 10-15 चक्रांसेकण्ड होती है।
(iii) थीटा तरंगें (Theta waves) ये भावात्मक दबाव जैसे निराशा के दौरान उभरती हैं, इनकी आवृत्ति 5-8 चक्र सेकण्ड होती है।
(iv) डेल्टा तरंगें (Delta waves) सोते समय आती हैं। ये मस्तिष्क की चोट या विकार दर्शाती हैं। इनकी आवृत्ति 1-5 चक्र सेकण्ड होती है।

पहला EEG बर्गर (Berger) ने 1929 में अंकित किया था।

संवेदी अंग (Sense Organs)

प्रत्येक जन्तु संवेदी अर्थात् आन्तरिक एवं बाह्य परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील होता है। जन्तु शरीर में ऐसे अंग पाए जाते हैं, जो संवेदनाओं को ग्रहण कर इन्हें विद्युत रासायनिक (electrochemical) तन्त्रिका आवेगों (nerve impulses) का रूप दे देते हैं, ऐसे अंगों को ग्राही अंग (receptors) या संवेदी अंग कहते हैं।

प्रत्येक संवेदी अंग में संवेदी तन्त्रिकाएँ होती हैं, जोकि उद्दीपनों (stimuli) को मस्तिष्क तक पहुँचाती हैं तथा आवश्यकतानुसार चालक तन्त्रिका तन्तुओं (motor nerve fibres) द्वारा इन्हें प्रतिक्रियाओं के रूप में अपवाहक अंगों (effector organs) को भेज दिया जाता है।

संवेदी अंगों का वर्गीकरण (Classification of Sense Organs)

संवेदी अंगों को स्थिति संरचना तथा उद्दीपन के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

1. स्थिति के आधार पर (On the Basis of Position)
(i) बाह्य संवेदांग (Exteroceptors) शरीर की बाह्य सतह पर स्थित
(a) विशिष्ट संवेदांग (Special sense organs) नाक, कान एवं आँख, आदि।
(b) त्वक् संवेदांग (Cutaneous sense organs) त्वचा।

(ii) आन्तरिक संवेदांग (Interoceptors) ऐसे संवेदांग, जो आन्तरिक उद्दीपनों को ग्रहण करते हैं व आँतरांगों में स्थित होते हैं।

(iii) मध्य संवेदांग (Proprioceptors) यह ऐच्छिक पेशियों, स्नायु (ligaments), कण्डराओं (tendons), सन्धियों (joints), आदि में पाए जाते हैं।

2.संरचना के आधार पर (On the Basis of Structure)
(i) तन्त्रिका उपकलीय संवेदांग (neuro-epithelial receptors) इनमें संवेदी कोशिकाएँ रूपान्तरित तन्त्रिका कोशिकाएँ या न्यूरॉन्स (neurons) होती हैं। उदाहरण-घ्राण संवेदांग (olfactory receptors)

(ii) उपकलीय संवेदांग (Epithelial receptors) इनमें संवेदी कोशिकाएँ रूपान्तरित एपिथीलियमी कोशिकाएँ होती हैं।

ये कोशिकाएँ ऐसे तन्त्रिका तन्तु से सम्बन्धित रहती हैं, जो केन्द्रीय तन्त्रिका तन्तु के निकट होते हैं, उदाहरण-प्रकाशग्राही, स्वादग्राही व श्रवणग्राही।

(iii) तन्त्रिकीय संवेदांग (Neural receptors) इनमें क्रैनियोस्पाइनल गुच्छकों (craniospinal ganglia) में स्थित ऐसे मिथ्या एकधुवीय न्यूरॉन्स होते हैं, जिनके लम्बे अक्ष तन्तु के त्वचा, कंकाल-सन्धियों, कंकाल पेशियों, कण्डराओं (tendons), स्नायुओं (ligaments), आदि में स्थित स्वतन्त्र छोर ही स्वयं संवेदी होते हैं।

3. उद्दीपन के आधार पर (On the Basis of Stimulus)
(i) स्पर्श संवेदांग (Mechanoreceptors)
(ii) रासायनिक संवेदांग (Chemoreceptors)
(iii) ताप संवेदांग (Thermoreceptors)
(iv) परासरण संवेदांग (Osmoreceptors)
(v) प्रकाश संवेदांग (Photoreceptors)

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