Pollution and Conservation of Natural Resources

Pollution and Conservation of Natural Resources
प्रदूषण एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण

वातावरणीय प्रदूषण (Environmental Pollution)

‘प्रदूषण’ शब्द की व्याख्या ओडम ने की। वायु, जल तथा मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों में अवांछनीय परिवर्तन, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को प्रभावित करता है, प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारक या पदार्थ प्रदूषक (Pollutants) कहलाते हैं। अनिम्नीकरणीय प्रदूषक (non-degradable pollutants); जैसे-एल्युमिनियम के बर्तन, पारे के यौगिक, डीडीटी, काँच, आर्सेनिक तथा प्लास्टिक सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित नहीं होते, जबकि जैव निम्नीकरणीय प्रदूषण (biodegradable pollutants);

जैसे-घरेलू वाहित मल (domestic sewage), कपड़ा, कागज, कूड़ा-करकट, आदि सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित कर दिए जाते हैं।

 

प्रदूषण के प्रकार (Types of Pollution)

प्रदूषण को अनेक भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है

1. वायु प्रदूषण (Air Pollution)

वायु के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों का ऐसा अवांछनीय परिवर्तन, जिससे हमारी प्राकृतिक सम्पदा नष्ट हो, वायु प्रदूषण कहलाता है।

बड़े शहरों में 60% वायु प्रदूषण कार, ट्रक, स्कूटर, आदि स्वचालित वाहनों (automobiles) में आन्तरिक दहन इंजन के कारण होता है। इंजनों से उत्पन्न मुख्य प्रदूषक कार्बन मोनोऑक्साइड (77.2%), नाइट्रोजन के ऑक्साइड (7.7%) तथा हाइड्रोकार्बन (13.7%) हैं।

कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) गैस, की अधिक मात्रा के कारण यह रुधिर के हीमोग्लोबिन में घुलकर स्थायी यौगिक कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन (carboxyhaemoglobin) बनाती है, जिससे साँस लेने में कठिनाई होती है और अन्त में श्वासावरोध (asphyxia) के कारण मृत्यु हो सकती है।

रेफ्रिजरेटरों तथा जेट हवाई जहाजों से विमोचित एरोसोल (aerosol) में फ्ल्यूरोकार्बन (fluorocarbon) होता है, जो ओजोन पर्त को नष्ट करता है।

अदग्ध हाइड्रोकार्बनों (unburnt hydrocarbons) में 3, 4 बेन्जोपाइटिन होता है, जो फेफड़ों में पहुँचकर कैन्सर उत्पन्न करता है।

नाइट्रोजन के ऑक्साइड आँख तथा नाक में अस्वस्थता (irritation) उत्पन्न करते हैं, और वातावरण में प्रकाश रासायनिक कोहरा (photochemical smog) बनाकर ओजोन (O₃) मुक्त करते हैं।

नाइट्रोजन ऑक्साइड + हाइड्रोकार्बन – परऑक्सी एसीटिल नाइट्रेट (PAN) + ओजोन (O₃) जीवाश्म ईधनों में पाई जाने वाली सल्फर ऑक्सीकृत होकर सल्फर डाइऑक्साइड तथा सल्फर ट्राइऑक्साइड बनाती है। सल्फर डाइऑक्साइड (SO2)जल के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक तथा सल्फ्यूरस अम्ल बनाते हैं। नाइट्रोजन के ऑक्साइड भी नाइट्रिक अम्ल (nitric acid) बनाते हैं। सल्फयूरिक अम्ल तथा नाइट्रिक अम्ल बूंदों के रूप में पृथ्वी पर पहुंचते हैं। इसे अम्ल वर्षा (acid rain) कहते हैं।

सल्फर डाइऑक्साइड जीवित कोशिकाओं के झिल्ली (membrane system) को नुकसान पहुंचाती है और जन्तुओं के श्वसन पथ में प्रवेश कर H2SO4, बनाती है, जिसके कारण ऊतकों की क्षति तथा सिर-दर्द होने लगता है। कुछ लाइकेन; जैसे-यूस्निया (Usnea) SO2 प्रदूषण के सूचक (indicator) होते हैं। पत्थरों की कटाई तथा पिसाई में लगे मजदूरों में सिलिकोसिस (silicosis) नामक रोग हो जाता है।

CO2, की अधिक सान्द्रता के कारण वायुमण्डल में एक मोटा आवरण बन जाता है, जो पृथ्वी से वापस लौटने वाली ऊष्मा को रोकता है। इससे पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगता है। इसे हरितगृह प्रभाव (greenhouse effect) कहते हैं। CO2, N2O,NH4,CH4, CFCs, आदि प्रमुख हरितगृह गैस हैं।

मथुरा तेल परिशोधन कारखाने (petroleum refinery) से उत्पन्न SO2, के कारण ताजमहल पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है।

2. जल प्रदूषण (Water Pollution)

घरेलू अपमार्जकों (household detergents) में फॉस्फेट, नाइट्रेट, अमोनिया के यौगिक तथा एल्किल बेन्जीन सल्फोनेट (alky| benzene sulphonate), आदि होते हैं, जो नदियों, तालाबों एवं झीलों में जाकर पानी को दूषित करते हैं। मकानों से निकले वाहितमल (sewage) में कार्बनिक पदार्थ तथा जैव प्रदूषक अत्यधिक मात्रा में होते हैं।

फॉस्फेट तथा नाइट्रोजन की अधिक मात्रा के कारण, शैवालों की अत्यधिक वृद्धि से जल प्रस्फुटन (water bloom) हो जाता है।

जलाशय में अधिक कार्बनिक पदार्थों की उपस्थित को सुपोषण (eutrophication) कहते हैं।

सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड (Blological Oxygen Demand or BOD) कहलाती है।

जल प्रदूषण के लिए डैफ्निया (Daphnia), ट्राउट (trout) तथा कुछ मछलियाँ संवेदनशील होती हैं और प्रदूषण की तीव्रता को दर्शाती हैं। औद्योगिक इकाइयाँ अनेक विषैली गैसें, धुआँ एवं विषैले रसायन वर्ण्य पदार्थ (waste products) निकालती हैं। ये वर्त्य पदार्थ नदियों में पहुँचकर जलीय जन्तुओं को प्रभावित करते हैं।

अधिक मात्रा में फ्लुओराइड्स (fluorides) युक्त जल से फ्लुओरोसिस (fluorosis) नामक रोग हो जाता है। इसके कारण अस्थियों व दाँतों में तेजी से कैल्सिकरण (calcification) होता है। आर्सेनिक के लगातार सम्पर्क से ब्लैक फुट (black foot) बीमारी हो जाती है। पारे (Hg) के कारण मिनामेटा (Minamata) नामक रोग हो जाता है।

कैडमियम के कारण इटाई-इटाई (itai-itai) नामक बीमारी हो जाती है। जल में अत्यधिक मात्रा में उपस्थित नाइट्रेट हीमोग्लोबिन से क्रिया कर मिथेमोग्लोबिन (methaemoglobin) बनाता है, जो ऑक्सीजन यातायात को विकृत करता है। इसे मिथेमोग्लोबीनिमिया (methaemoglobenimia) या ब्लू-बेबी सिण्ड्रोम (blue-baby syndrome) कहते हैं।

अनिम्नकारी पदार्थों की सान्द्रता प्रत्येक पोषक स्तर पर बढ़ती जाती है और उच्च उपभोक्ता में अधिकतम हो जाती है। इस क्रिया को जैविक आवर्धन (biological magnification) कहते हैं।

3. मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)

मृदा में विभिन्न प्रकार के अवशिष्टों द्वारा लाया गया अवांछित परिवर्तन मृदा प्रदूषण कहलाता है।

कृषि विधियों में नाशक जीवों (pests) को मारने के लिए कीटनाशी (insecticide), शाकनाशी (herbicide), खरपतवार नाशी (weedicide), आदि विभिन्न पीडकनाशियों (pesticides) का प्रयोग किया जाता है, इनसे पौधों तथा मृदीय जीवों को हाँनि पहुँचती है।

4. ध्वनि प्रदूषण (Sound Pollution)

ध्वनि की तीव्रता डेसीबल या बेल (bel) में नापी जाती है। 80 डेसीबल से अधिक ध्वनि को शोर का नाम दिया जाता है और इस पर मनुष्य में अस्वस्थता व बेचैनी उत्पन्न हो जाती है। 130-140 डेसीबल पर पीड़ा तथा दर्द होने लगता है।

हरे पौधे जो उच्च ध्वनि प्रदूषित क्षेत्रों में रोपे गए हैं. हरी पट्टिकाओं (green mufflers) के रूप में जाने जाते हैं। इनमें ध्वनि तरंगों को अवशोषित करने की क्षमता होती हैं।

5.रेडियोधर्मी प्रदूषण (Radioactive Pollution)

रेडियोधर्मी प्रदूषण का मुख्य स्रोत नाभिकीय विस्फोट (nuclear explosion) हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन् 1945 में जापान के दो शहरों हिरोशिमानागासाकी में रेडियोधर्मी विस्फोट के कारण भयानक जन-हानि हुई थी।

आयनीकारी विकिरण (ionising radiation); जैसे-x-किरणों के कारण उत्परिवर्तन (mutation), ट्यूमर (tumour) तथा कैन्सर (cancer), आदि रोग उत्पन्न होते हैं। अनायनीकारी विकिरण (non-lonising radiation); जैसे-UV किरणें, DNA, RNA तथा प्रोटीन की संरचना को प्रभावित करती है, तथा जिरोडर्मा पिगमेन्टोसम (xeroderma pigmentosum) नामक त्वचा रोग पैदा करती है। स्ट्रान्शियम-90 (Sr) से अस्थि कैन्सर (bone cancer) होता है, तथा ऊतक नष्ट हो जाते हैं। आयोडीन-131 (03) अस्थि मज्जा (bone marrow). लाल रुधिराणु (RBCs), लसीका पर्व Lymph node) तथा प्लीहा (spleen) को हानि पहुँचाती है।

प्राकृतिक संसाधन एवं उसके संरक्षण
(Natural Resources and Their Conservation)

प्राकृतिक रूप से उपलब्ध सम्पदा या संसाधन या स्रोत को प्राकृतिक संसाधन या सम्पदा कहा जाता है। मनुष्य इनका निर्माण करने में असमर्थ है।

प्राकृतिक संसाधनों का वर्गीकरण
(Classification of Natural Resources)

प्राकृतिक रूप से उपलब्ध संसाधनों या स्रोतों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है, क्षयकारी संसाधन (exhaustable resources) एवं अक्षयकारी संसाधन (non-exhaustable resources)

ऐसे प्राकृतिक संसाधन, जिनके उपयोग से उनके धीरे-धीरे समाप्त होने की सम्भावना होती है या कम होते रहते हैं, क्षयकारी संसाधन कहलाते हैं। उदाहरण-जीवाश्यीय ईंधन; जैसे-कोयला, पेट्रोलियम पदार्थ एवं खनिज पदार्थ, आदि।

अक्षयकारी संसाधनों का उपयोग करने पर तत्काल इनकी मात्रा में कोई हास या कमी नहीं दिखाई देती; जैसे-वायु, सौर ऊर्जा एवं जल। क्षयकारी संसाधनों को पुनः दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। नवीनीकरण योग्य संसाधन (renewable resources) एवं अनवीनीकरणीय संसाधन (non-renewable resources)|

नवीनीकरण योग्य संसाधनों का पुनःनवीनीकरण किया जा सकता है; जैसे-वन, जन्तु घास परितन्त्र, आदि। अनवीनीकरणीय संसाधनों को पुनः प्रयोग में नहीं लाया जा सकता अर्थात् इनका नवीनीकरण लगभग असम्भव होता है; जैसे-पेट्रोलियम पदार्थ, खनिज पदार्थ (ताँबा, सोना, चाँदी, लोहा, आदि), मृदा, आदि।

प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षण विधि
(Method of Conservation of Natural Resources)

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण उनके पारिस्थितिक मूल्य (ecological value), व्यापारिक मूल्य (commercial value), खेल मूल्य (sports value), वैज्ञानिक मूल्य (scientific value), सौन्दर्य (aesthetic values) एवं औषधीय मूल्यों (medicinal value) के कारण अत्याधिक आवश्यक है। प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण उचित प्रबनान एवं परियोजनाओं द्वारा किया जा सकता है।

वनरोपण (afforestation) से भूमिका अपरदन रोका जा सकता है। वन, भोजन, ईंधन, औषधि एवं जीवाश्म ईधन के स्रोत हैं।

मृदा संरक्षण हेतु जैविक विधियाँ (फसल चक्र, कन्टूर कृषि, सीढीनुमा कृषि, पट्टीदार कृषि, ले कृषि, मल्चिंग एवं घास विज्ञानीय विधि तथा यान्त्रिक विधियों (बाँध) अपनाई जाती है।

वन प्रबन्धन के अन्तर्गत वनोत्पाद का यथोचित उपभोग, वनरोपण, अधिक तेजी से बदने वाले वृक्ष; जैसे-केजुजाराइना, पोपलर, आदि को उगाना, सामाजिक वनीकरण, आदि आते हैं। वनों के विनाश वन्य जीव का मनोरंजन तथा व्यवसायिक कारणों से शिकार एवं बाह्य जातियों के प्रवेश से वन्य जीव जातियों विलुप्ति की ओर है।

क्षति आशंकित जातियों की अवधारण
(Concept of Thretened Species)

क्षति आशंकित जातियों की अवधारणा निम्नलिखित हैं

वन्य जीवों के संरक्षण तथा प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग के लिए सन् 1948 में | UCN (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) की स्थापना स्विट्जरलैण्ड के मॉर्गस शहर में की गई थी।

यह संस्थान रैड डाटा बुक (Red Data Book) का प्रकाशन करता है, जिसमें संकटापन्न प्राणी व पौधों की जातियों के विषय में जानकारी प्रकाशित की जाती है।

संरक्षण के उद्देश्य हेतु जातियों को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा गया है

(i) संकटापन्न जातियाँ (Endangered species) वे जातियाँ जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। इन जातियों के सदस्यों की संख्या एक विशेष स्तर से कम हो गई है।
(ii) दुर्लभ जातियाँ (Rare species) वे जातियाँ जिनकी छोटी अबादियाँ विशेष भौगोलिक क्षेत्रों में सीमित हैं।
(iii) अनुक्षिक्त जातियाँ (Vulnerable species) वे जातियाँ जिनकी संख्या तेजी से कम हो रही है किन्तु अभी संकटापन्न स्तर तक कम नहीं हुई हैं। यदि परिस्थितियों न बदली गई, तो ये जातियाँ संकटापन्न जाति की श्रेणी में पहुँच जायेंगी।
(iv) क्षति आशंकित जातियाँ (Threatened species) इस शब्द का प्रयोग जातियों के संरक्षण के सन्दर्भ में किया जाता है, जो उपरोक्त तीन श्रेणियों (ERV) में से किसी एक में आती है।

अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय वन्य जीव संस्थाएँ
(International and National Wild Life Conservation)

वन्य जीवों के संरक्षण में संलग्न कुछ राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ निम्नलिखित हैं
(i) इण्टरनेशनल यूनियन फॉर द कंजरवेशन ऑफ नेचर एण्ड नेचुरल रिसोर्सेस (International Union for the Conservation of Nature and Natural Resources-IUCN) की स्थापना सन् 1948 में मॉर्गस, स्विट्जरलैण्ड में हुई थी।

(ii)विश्व वन्य जीव कोष या द वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फण्ड (The World Wildlife Fund-WWF) की स्थापना (सन् 1961) में मॉर्गस, स्विट्जरलैण्ड में हुई थी, इसका चिन्ह विशालकाय पाण्डा (giant panda) है।

विश्व वन्य जीव कोष की भारतीय इकाई की स्थापना मुम्बई में 1969 में हुई थी। WWF के सहयोग से सन् 1972 में बाघ संरक्षण परियोजना’ प्रारम्भ की गई थी।

(iii) बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Bombay Natural History Society- BNHS) की स्थापना मुम्बई में सन् 1883 में हुई थी। यह अराजकीय संस्थान है। यह सोसाइटी वैज्ञानिक अन्वेषण एवं क्षेत्रीय कार्यों का संचालन करती है।

(iv) भारतीय वन्य जीव परिषद (Indian Board for Wild Life – IBWL) की स्थापना सन् 1952 में हुई थी। यह केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किया गया था।

(v) भारतीय वन्य जीव परिरक्षण सोसाइटी (Wild Life Preservation Society of India or WPSI) की स्थापना देहरादून में सन् 1958 में हुई। यह अराजकीय संस्था है।

वन्य जीव संरक्षण (Conservation of Wild Life)

मानव द्वारा जैव मण्डल के उचित तथा सीमित प्रयोग के प्रबन्धन को संरक्षण कहा जा सकता है। यूनेस्को (UNESCO) ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘मानव तथा जैवमण्डल परियोजना 8′ (Man and Biosphere Project 8) सन् 1971 में प्रारम्भ की। प्रकृति तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठन विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों व संरक्षित क्षेत्रों को सहायता देता है।

वन्य जीव का संरक्षण स्व स्थाने संरक्षण (in situ conservation) तथा बाह्य स्थाने संरक्षण (ex situ conservation) द्वारा किया जाता है। स्व स्थाने संरक्षण में जीवों का संरक्षण उनके प्राकृतिक आवासों में करते हैं; जैसे-राष्ट्रीय उद्यान, जैवमण्डल, पशु-विहार, आदि, जबकि बाह्य स्थाने संरक्षण में जीवों को प्राकृतिक आवासों से हटाकर मानव द्वारा निर्मित सुरक्षित स्थलों पर रखा जाता है; जैसे चिड़ियाघर एवं वानस्पतिक उद्याना

राष्ट्रीय उद्यान (National Parks)

वह क्षेत्र जो वन्य जीवों के लिए पूर्णरूप से संरक्षित होता है तथा जहाँ शिकार खेलना, पशु चराना, फसल बोना, आदि वर्जित होते हैं, राष्ट्रीय उद्यान कहलाता है। भारत में 96 (अप्रैल-2007) राष्ट्रीय उद्यान है, जिनका अनुमानित क्षेत्र लगभग 38029,18 वर्ग किलोमीटर है। यह क्षेत्र भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 1.16% है।

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbett National Park) भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है, जिसकी स्थापना सन् 1953 में हुई थी, यह अब उत्तराखण्ड में स्थित है।

विश्व के महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान (Important National Parks of the world)

राष्ट्रीय उद्यान देश उद्यान में संरक्षित विशिष्ट संकटापन्न जन्तु
एल्बर्टा (Alberta) राष्ट्रीय उद्यान कांगो, अफ्रीका पर्वतीय गोरिल्ला (Gorilla gorila)
बोन्टेबोक (Bontebok) राष्ट्रीय उद्यान दक्षिण अफ्रीका, अफ्रीका बोन्टेबोक बारहसिंगा
माउण्ट सिमियन (Mt Simien) राष्ट्रीय उद्यान इथियोपिया, अफ्रीका अबिसीनी आइबेक्स या स्टाइन बोक (Ibex or Stein bok-Copra wallie),
बाएलोविस्का (Bialowieska) राष्ट्रीय उद्यान पोलैण्ड, यूरोप यूरोपीय बाइसन (Bison bonasus)
ऑर्डेसा (Ordesa) राष्ट्रीय उद्यान स्पेन, यूरोप पाइरीनीज का स्टाइन बोक (Stein bok),
एवरग्लेड्स (Everglades) राष्ट्रीय उद्यान फ्लोरिडा, अमेरिका प्यूमा (Felis concolor)
कॉर्बेट (Corbett) राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखण्ड, भारत भारतीय बाघ (Panthera tigris).
डाचिगाम (Dachigam) राष्ट्रीय उद्यान कश्मीर, भारत कश्मीरी हांगुल (Cervus elephas hanglu)
गिर (Gir) राष्ट्रीय उद्यान गुजरात, भारत एशियाई सिंह (Panthera leo persia)
घाना (Ghana) पक्षी विहार राजस्थान, भारत पक्षीजात (Avian fauna) )
काजीरंगा (Kaziranga) राष्ट्रीय उद्यान असोम, भारत एक सींग वाला गेण्डा (Rhinoceros unicornis)

अभयारण्य (Senctuaries)

अभ्यारण्य या जन्तु विहार में केवल जन्तुजात (fauna) को संरक्षण दिया जाता है, यहाँ लकड़ी काटना तथा वन उत्पादों को एकत्र करने, आदि पर रोक नहीं होती। भारत में 500 से अधिक अभयारण्य स्थित हैं।

रेड डाटा बुक (Red Data Book)

इस समय विश्व में लगभग 600 जातियों संकटापन्न (endangered) जातियों की सूची में हैं। IUCN द्वारा लाल आँकड़ों की पुस्तक में लगभग 1000 संकटापन्न, आपत्तिग्रस्त जातियों को स्थान दिया गया है। अनुक्षिक्त, दुर्लभ तथा संकटापन्न जातियों के विषय में नवीनतम सूचना IUCN द्वारा जारी रैड डाटा बुक (Red Data Book) में प्रकाशित की जाती हैं।

पहचान के पश्चात् दुर्लभ तथा संकटग्रस्त पादप जातियों के पौधों को सुरक्षित स्थानों पर उगाया जाता है, ऐसे पौधों का विवरण, हरित पुस्तक (green book) में दिया जाता है।

रेड डाटा बुक के लाल पृष्ठों (red pages) पर उन लुप्त प्रायः या लुप्त हो रही प्रजातियों को बताया गया है, जिनके बचाव का पूरा ध्यान रखना आवश्यक है।

रेड डाटा बुक के सफेद पृष्ठों (white pages) पर उन प्रजातियों की जानकारी दी गई है, जो दुर्लभ है, कुछ निश्चित स्थानों पर उपलब्ध है और इनकी संख्या बहुत कम है।

रेड डाटा बुक के पीले पृष्ठों (yellow pages) पर उन लुप्त हो रही प्रजातियों की जानकारी दी गई है, जिनकी संख्या तेजी से कम होती जा रही है।

रेड डाटा बुक के भूरे पृष्ठों (brown pages) पर उन प्रजातियों की जानकारी दी गई है, जिनके बारे में आशंका है कि ये कम हो रही है, लेकिन इनका पूर्ण विवरण उपलब्ध नहीं हैं।

पर्यावरण सम्बन्धी तथ्य
(Environmental Related Facts)

  • भारत में 1 अप्रैल सन् 1973 में विश्व वन्य जीव कोष (WW) तथा IUCN की सहायता से ‘बाघ परियोजना’ (Project Tiger) प्रारम्भ की गई। इसका मुख्य उद्देश्य बाघों की लुप्त होती जनसंख्या पर नियन्त्रण करना था।
  • भारत में सर्वप्रथम स्थापित होने वाला जैवमण्डल निचय या बायोस्फीयर रिजर्व’नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व’ (Nilgiri biosphere reserve) था।
  • भारत में जन्तुओं की लगभग 75000 जातियों पाई जाती हैं, इनमें 350 जातियों स्तनधारियों की हैं तथा लगभ’ -100 जातियाँ पक्षियों व सरीसृपों
  • चिपको आन्दोलन टिहरी गढ़वाल क्षेत्र (उत्तराखण्ड) में वृक्षों को बचाने के लिए सुन्दर लाल बहुगुणा द्वारा प्रारम्भ किया गया था।
  • शान्त घाटी यह केरल प्रदेश का ट्रोपीकल सदाबहार वन क्षेत्र है, जिसे राष्ट्रीय रिजर्व वन घोषित किया गया है।
  • भारत में बाघ परियोजना के अन्तर्गत लगभग 25 बाघ अभयारण्य स्थापित किए गए हैं।
  • सन् 1972 को अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण वर्ष घोषित किया गया।
  • सारनाथ में मृग दाव नामक उद्यान है।
  • डा सलीम अली प्रसिद्ध भारतीय पक्षी विज्ञानी (ornithologist) हैं।
  • प्रथम पृथ्वी दिवस सन् 1970 में मनाया गया था।
  • विश्व वानिकी दिवस प्रति वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है।
  • वन्य जीवन सप्ताह प्रतिवर्ष 1-8 अक्टूबर तक मनाया जाता है।
  • विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को मनाया जाता है।
  • विश्व पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल को मनाया जाता है।
  • विश्व जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है।
  • विश्व संरक्षण दिवस 3 दिसम्बर को मनाया जाता है।
  • विश्व जन्तु दिवस 3 अक्टूबर को मनाया जाता है।
  • विश्व आवास दिवस 4 अक्टूबर को मनाया जाता है।
  • जैव विविधता दिवस 29 दिसम्बर को मनाया जाता है।
  • विश्व ओजोन दिवस 16 सितम्बर को मनाया जाता है।
  • विश्व शाकाहार दिवस 2 अक्टूबर को मनाया जाता है।
  • विश्व प्रकृति दिवस 3 अक्टूबर को मनाया जाता है।
  • विश्व वन्य जीव कल्याण दिवस 4 अक्टूबर को मनाया जाता है।
  • विश्व वन्य जीवन आवास दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाता है।

 

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