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Reproductive Biology
जननीय जीव विज्ञान के अन्तर्गत अत्यन्त आवश्यक जैव प्रक्रिया जनन का अध्ययन किया जाता है। जन्तुओं में जनन अलैंगिक एवं लैंगिक प्रकार का होता है। अलैंगिक जनन निम्न वर्ग के जन्तुओं में, द्विखण्डन (अमीबा), बहुविखण्डन (प्लाज्मोडियम), मुकुलन (हाइड्रा), न्यूनकायीकरण (हाइड्रा, स्पंज) विधियों द्वारा होता है। नर एवं मादा युग्मकों का संयुग्मन लैंगिक जनन कहलाता है।
अनिषेकजनन (Parthenogenesis)
अनिषेचित अण्डे से भूण का परिवर्धन अनिषेकजनन कहलाता है; जैसे-मधुमक्खी एवं ततैया (बरैय्या) में नर अगुणित (haploid) अनिषेचित अण्डे से उत्पन्न होते हैं। अनिषेकजनन दो प्रकार का होता है
1. प्राकृतिक अनिषेकजनन (Natural Parthenogenesis)
मधुमक्खी एवं अन्य कीटों में नर अनिषेचित अण्डों से तथा मादाएँ निषेचित अण्डों से बनती हैं। नर अगुणित (haploid) तथा मादा द्विगुणित (diploid) होती है।
2. कृत्रिम अनिषेकजनन (Artificial Parthenogenesis)
फ्रांसिसी वैज्ञानिक बैटेलन (Batallon) ने 1909 में सबसे पहले मेंढक के अण्डाणुओं को सुई चुभोकर सक्रिय बनाया, जिससे ये निषेचन के बिना ही भेकशिशुओं (tadpoles) में विकसित हो गए। ऐसे भेकशिशु कायान्तरण करके वयस्क मेंढक नहीं बन पाते और शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
मानव जनन तन्त्र (Human Reproductive System)
सभी स्तनधारियों में पृथक् नर व मादा जनन तन्त्र होते हैं, जिसमें प्राथमिक जनन अंग (primary sex organs) अर्थात् वृषण (testis) एवं अण्डाशय (ovary) तथा सहायक जनन अंग (accessory sex organs) अर्थात् शुक्रवाहिकाएँ (vas deferens), प्रोस्टेट ग्रन्थि (prostate gland), गर्भाशय (uterus), योनि (vagina), आदि होते हैं।
नर जनन तन्त्र (Male Reproductive System)
प्राथमिक जनन अंग वृषण एवं सहायक जनन अंग (शुक्रवाहिकाएँ, एपीडिडाइमिस, शुक्रवाहिनी, शुक्राशय, शिश्न, मूत्र, आदि आते हैं)।
1.वृषण (Testes)
ये ग्रन्थिल अण्डाकार ग्रन्थि है, जो वृषणकोष (scrotum) में उपस्थित होती हैं। वृषणकोष का तापमान शरीर के तापमान से 2°C कम होता है, जिस पर शुक्राणुओं का निर्माण होता है। वृषणों की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई शुक्रजनन नलिकाएँ (seminiferous tubules) होती हैं।
शुक्रनलिकाओं में शुक्रजननीय कोशिकाएँ (spermatogenic cells). जो शुक्राणु बनाती है तथा सस्टेन्टेकुलर कोशिकाएँ (sustentacular cells) या सर्टोली कोशिकाएँ (Sertoli cells), जो शुक्राणु कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती है, उपस्थित होती हैं। नलिकाओं के बीच-बीच में लीडिंग कोशिकाएँ उपस्थित होती हैं। लीडिंग कोशिकाएँ (Leydig’s cells), टेस्टोस्टेरॉन (testosterone) होर्मोन का स्रवण करती है।
2. शुक्रवाहिकाएँ (Vas Efferentia)
कुछ मूत्रजनन नलिकाएँ (uriniferous tubules) उत्सर्जी कार्य छोड़कर शुक्रवाहिकाएँ बनाती है। ये वृषण से निकलने वाली बारीक नलिकाएँ कुण्डलित होकर एपीडिडाइमिस बनाती हैं, जो वृषण के शुक्राणु को वृक्क के मध्य वृक्क नलिका में ले जाने का कार्य करती है।
3. एपीडिडाइमिस (Epididymis)
एपीडिडाइमिस शुक्रवाहिकाओं का समूह होता है, जिसमें शुक्राणु परिपक्व होते हैं। इसमें तीन स्पष्ट भाग कैपुट एपीडिडाइमिस, कोंडा एपीडिडाइमिस तथा कॉर्पस एपीडिडाइमिस होते हैं। प्रत्येक तृषण से शुक्राणु एपीडिडाइमिस से होकर शुक्रवाहिनी के द्वारा मूत्रमार्ग में पहुंचते हैं।
4. शुक्रवाहिनी (Vas Deferens)
ये एपीडिडाइमिस से निकलती है तथा मूत्रमार्ग (urethra) के चारों ओर फैलकर शुक्राशय (seminal vesicle) बनाती हैं। यह शुक्राणुओं का संग्रह तथा चालन करती हैं।
5.शुक्राशय (Seminal Vesicle)
शुक्राशय छोटी थैलेनुमा रचना है, जो मूत्र मार्ग में खुलता है। शुक्राशय शुक्राणु के लिए कुण्ड (reservoir) नहीं होते, वरन श्यान द्रव्य बनाते हैं, जो वीर्य (semen) के आयतन का भाग होता है, यह शुक्राणु को संरक्षण एवं पोषण प्रदान करता है।
6. मूत्रमार्ग (Urethra)
यह शुक्राशय व मूत्राशय का आखिरी भाग है, जो मूत्र जनन छिद्र द्वारा बाहर खुलता है। मूत्र तथा वीर्य इसी मार्ग द्वारा शरीर से बाहर आते हैं।
7.शिश्न (Penis)
यह उच्छाशयी मैथुन अंग (erectile copulatory organ) होता है, जो शुक्राणुओं के मादा जनन मार्ग में संग्रहण हेतु सहायक होता है।
8. सहायक नर ग्रन्थियाँ (Accessory Male Glands)
ये दो प्रकार की होती हैं
(i) प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate gland) यह ग्रन्थि शुक्राशय के अन्त में मूत्रमार्ग के चारों ओर स्थित होती है। यह क्षारीय द्रव सावित करती है, जो मूत्रमार्ग में अवशिष्ट मूत्र से उत्पन्न अम्लता को निष्प्रभावित करता है। यह वीर्य का मुख्य भाग बनाता है। इससे सावित द्रव्य की क्षारीय प्रकृति अण्डाणु के निषेचन की सम्भावना बढ़ाती है।
(ii) काउपर ग्रन्थियाँ (Cowper’sgland) ये प्रोस्टेट ग्रन्थि के पीछे स्थित होती हैं तथा मूत्रमार्ग में खुलती हैं। इन्हें बल्योयूरेथ्रल ग्रन्थियाँ भी कहते हैं। ये क्षारीय द्रव सावित करती है, जो मूत्रमार्ग को क्षारीय करता है, जिससे शुक्राणु सुरक्षित रहे तथा स्त्री की योनि को स्नहेन (lubricate) भी करता है।
पैरीनियल ग्रन्थियाँ तथा रेक्टल ग्रन्थियाँ दोनों मानव में अनुपस्थित होती हैं।
स्तनधारियों में शुक्राणुओं का पथ निम्न प्रकार से होता है
शुक्रजनन नलिका (seminiferous tubules) → वृषण (testes) → शुक्रवाहिका (vas efferentia) → अधिवृषण (epididymis) → शुक्रवाहिनी (vas deferens) → जननमूत्र कोटर (urinogenital sinus) → मूत्रमार्ग (urethra) → योनि (vagina)
मादा जनन तन्त्र (Female Reproductive System)
मादा जनन तन्त्र में प्राथमिक जनन अंग अण्डाशय, जबकि गर्भाशय, योनि, अण्डवाहिनी, आदि सहायक जनन अंग होते हैं।
1.अण्डाशय (Ovaries)
मादा में एक जोडी अण्डाशय श्रोणी गुहा (pelvis) में गर्भाशय के दोनों तरफ, अण्डवाहिनियों के पीछे, नीचे की ओर स्थित होते हैं। ये मीसोवेरियम द्वारा वृक्क के पीछे देहमित्ति से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक अण्डाशय अण्डाशयी स्नायु (ovarian ligament) द्वारा गर्भाशय से तथा अण्डाशयी फिनी (ovarian fimbrae) द्वारा अण्डवाहिनी से जुड़ा रहता है। अण्डाशय में परिधि की ओर ग्राफियन पुटिकाएँ (Graafian follicles) होती है, जिनमें अण्डाणु का निर्माण होता है। अण्डाशय अण्डे एवं लिंग हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन (progesterone) उत्पन्न करते हैं।
2. अण्डवाहिनियाँ या फैलोपियन नलिका (Oviducts or Fallopian Tube)
ये एक जोड़ी पतली एवं कुण्डलित नलिकाएँ होती हैं। प्रत्येक अण्डवाहिनी वायुकोष्ठिका या इन्फन्डीबुलम (infundibulum), तुम्बिका या एम्पुला (ampulla), इस्थमस या संकीर्ण पथ (isthimus) तथा गर्भाशय भाग (uterine part) में विभाजित होती है।
अण्डवाहिनियों की भित्ति में पेरीटोनियम (peritoneum) का बाह्य आवरण होता है तथा इसके नीचे पेशीय आवरण (muscular coat) होता है। इनके मुख पर कीप के
आकार की फिनिएटेड कीप (fimbriated funnel) होती है। इसके बाद का
कुण्डलित भाग फैलोपियन नलिका कहलाता है।
3.गर्भाशय (Uterus)
यह मूत्राश्य (urinary bladder) के ऊपर तथा पीछे स्थित होता है और स्नायु (igaments) के द्वारा शरीर से चिपका रहता है। गर्भाशय की दीवार सरल पेशीय तन्तुओं (smooth muscle fibres) की बनी होती है, जिसे मायोमेट्रियम (micmetrum) कहते हैं। गर्भाशय का ल्यूमेन श्लेमिका झिल्ली के द्वारा घिरा रहता है, जिसे एण्डोमेट्रियम (endometrium) कहते हैं। गर्भाशय में भ्रूण, अपरा (placenta) के द्वारा जुड़ा रहता है।
4. योनि (Vagina)
यह भूत्रमार्ग तथा गुदा के बीच अग्र भाग में पेशी झिल्लिमय नलिका (musculomembranous tube) होती है, जो संगम के समय शिश्न से वीर्य ग्रहण करती है एवं शिशु जन्म के समय नलिका के रूप में कार्य करती है।
5.भग (Vulva)
मानवीय मादा के बाह्य जनन अंगों को सामूहिक रूप से भग कहते हैं, यह मोन्स प्यूबिस (mons pubis), वृहदभगोष्ठ (labiamajora), लघुभगोष्ट (labiaminora), पेरिनियम (perinium), भगशेफ (clitoris), प्रघाण (vestibule), आदि से मिलकर बनता है। भगशेफ नर शिश्न के समाग (homologous) होता है और संवेदनशील उच्छायी (erectile) अंग है।
6. सहायक मादा ग्रन्थियाँ (Accessory Female Glands)
(i) बार्थोलिन ग्रन्थियों (Bartholin’s gland) ये एक जोडी होती हैं, जो मलाशय व वेस्टीव्यूल के बीच स्थित होती हैं। ये चिपचिपा द्रव ग्रावित करती हैं, जो मैथुन में सहायक होता है। पैरीनियल व रेक्टल ग्रन्थियाँ अनुपस्थित होती हैं।
(ii) स्तन ग्रन्थियाँ (Marmmary glands) एक जोड़ी स्तन अन्थियाँ वदा के अधर भाग में स्थित होती हैं। ये दुग्ध सावण करने वाली ग्रन्थियाँ हैं। प्रत्येक ग्रन्थि 15 से 20 पालिकाओं (lobules) की बनी होती है। चूचक (nipple) के चारों ओर उपस्थित गोलाकार वर्णक युक्त भाग को एरियोला (areola) कहते हैं।
शिशु जन्म के पश्चात् स्तन ग्रन्थियों के प्रथम स्राव को नव दुग्ध या कोलोस्ट्रम (colostrum) कहते हैं।
मादा में जनन चक्र (Reproductive cycle in females) पूरे वर्ष चलता है। प्राइभेट्स में इसे रजोधर्म चक्र (menstrual cycle) तथा अन्य मादाओं में इसे मद चक्र (oestrous cycle) कहते हैं।
मासिक चक्र (Menstrual Cycle)
एक माह की अवधि के दौरान गर्भाशय में चक्रीय परिवर्तन होते हैं। मासिक चक्र का आरम्भ स्त्रियों में यौवनारम्भ (puberty) या लैंगिक परिपक्वता के समय से होता है, यह रजोदर्शन (menarche) कहलाता है।
मासिक चक्र की तीन अवस्थाएँ होती है; जैसे-क्रम प्रसारी (proliferative), सावी (secretory) तथा मासिक अवस्था (menstrual phase)|
1. क्रम प्रसारी अवस्था (Proliferative Phase)
FSH पुटिकाओं को एस्ट्रोजन के स्रावण के लिए प्रेरित करता है। इस अवस्था का अन्तराल 10-12 दिनों का होता है। यह पुटिकीय अवस्था (follicular phase) भी कहलाती है।
2. स्रावित अवस्था (Secretory Phase)
कॉर्पस ल्यूटियम प्रोजेस्टेरॉन तथा एस्ट्रोजन की अधिक मात्रा का प्रावण करती है। इस अवस्था का अन्तराल 12-14 दिन का होता है। इसे प्रोग्रेविड प्रावस्था (progravid phase) भी कहते हैं क्योंकि अन्तःस्तर सगर्भता तथा रोपण के लिए तैयार हो जाता है।
3. मासिक अवस्था (Menstrual Phase)
यह पुराने मासिक चक्र की अन्तिम तथा नए मासिक चक्र की प्रारम्भिक अवस्था होती है। यदि अण्डाणु निषेचित नहीं हैं, तो कॉर्पस ल्यूटियम, प्रोजेस्टेरॉन स्तर में कमी के कारण नष्ट हो जाता है। इसमें एण्डोमीट्रियम के टूटने से रुधिर का साव होता है। यह स्राव लगभग 3-5 दिन चलता है। यह FSH, LH, एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरॉन के द्वारा नियन्त्रित होता है।
यदि सगर्भता नहीं रुकती तो कॉर्पस ल्यूटियम कॉर्पस एल्विकेन्स (corpus albicans) में परिवर्तित हो जाती है, जो कालक्षेत्र चिन्ह (black scar) की तरह होता है। मासिक चक्र गर्भावस्था तथा दुग्ध स्रावण (lactation) के दौरान नहीं होता है। रजोनिवृत्ति (menopause) में अण्डोत्सर्ग तथा मासिक चक्र स्थायी रूप से रुक जाता है। यह 45 या 50 साल की आयु में होता है। एवं इस अवस्था में नारी में जनन की क्षमता नहीं होती।